Independence Day: आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर देश जश्न मना रहा है. आज हम आपको आजादी के इस मौके पर ऐसे वीर सैनिक से मिलाने जा रहे हैं, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में हिस्सा लेकर घूसपैठियों के सिर कलम कर दिए थे और इस युद्ध को फतेह करने में अपनी अहम भूमिका अदा की. पौड़ी के बकूल रावत 1994 में सेना का हिस्सा बने और 18 गढ़वाल राईफल में रहकर 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के घुसपैठियों को धूल चटा दी.
साल 1994 में सेना का हिस्सा बनने के बाद बकूल रावत की पहली पोस्टिंग कलकत्ता की रही और इसके बाद उनकी पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हो गई. यहांकूपवाडा लोली वैली का जिम्मा बकूल ने ही संभाला. इस वैली में तीन साल बिताने के बाद बकूल की पोस्टिंग अन्य जगह होनी थी, लेकिन कारगिल की जंग छिड़ गई.
दुश्मनों के सिर कलम कर कैंप में ले आए थे बकूल
करगिल युद्ध के दौरान शरहद पर घुसपैठियों ने टोलोलिंग और 4700 की पहाडियों पर चोरी छिपे अपना डेरा डाल लिया. जिसके बाद सीओ के निर्देशों पर बकूल रावत और पूरी 18 गढ़वाल राईफल की बटैलियन को दुश्मनो से भिड़ जाने के लिए रवाना किया गया.
बकूल बताते है कि इस लडाई में उनके कंधों पर खान पान की सामग्री के बजाय हथियार हुआ करते थे, जिससे वे दुश्मनों को मात दे सके. कई दिनों तक बिना भूख प्यास भुलाए वे बस कारगिल युद्ध को फते करने का संघर्ष करते रहे. इसके बाद उन्होंने कई घुसपैठियों को मार गिराया, जबकि 4 आंतकियों के सिर कलम करके वे अपने कैंप में ले आए. इसके लिए उन्हें और पूरे बटेलियन को कई मैडल भी मिले. हालांकि इस युद्ध में कई भारतीय जाबांज भी शहीद हो गए.
शादी करने वाले थे, लेकिन युद्ध छिड़ गया
बकूल की साल 1999 में सगाई हो गई थी और इसी दौरान करगिल का युद्ध छिड़ गया. बकूल की पत्नी विनिता रावत ने बताया कि वो समय उनके लिए बहुत चुनौतियों से भरा हुआ था, क्योंकि उस वक्त फोन नहीं हुआ करते थे और उन्हें युद्ध से जुड़ी कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद जब वह घर आए तो उन्होंने शादी कर ली.
देश आज भी ऐसे वीर सैनिकों की बदौलत सुरक्षित है, जिन्होंने अपने कंथे पर भारत माता की सुरक्षा का जिम्मा संभाला.