प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। पूरब के आक्सफोर्ड के नाम से मशहूर इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी का नाम बदलने की केंद्र सरकार की मंशा को बड़ा झटका लगा है. तकरीबन 135 साल पुरानी इस यूनिवर्सिटी की कार्य परिषद के सभी सदस्यों ने नाम बदले जाने को गैर जरूरी बताते हुए इस प्रस्ताव के खिलाफ अपनी राय जाहिर की है.


कार्य परिषद के जिन 12 सदस्यों ने ई-मेल के जरिये अपनी राय दी है, सभी ने नाम नहीं बदलने को कहा है. कार्य परिषद के सदस्यों की राय के साथ यूनिवर्सिटी ने अपनी सिफारिश मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेज दी है. यूनिवर्सिटी द्वारा नाम बदले जाने का प्रस्ताव भेजे जाने से इन्कार किये जाने के बाद मामला ठंडे बस्ते में जाना तय हो गया है.



हालांकि, मंत्रालय अब भी वीटो का इस्तेमाल कर नाम बदल सकता है, लेकिन कोरोना की महामारी और लॉकडाउन की बंदिशों में नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू किये जाने के उतावलेपन पर हुई किरकिरी के बाद ऐसा होना फिलहाल मुमकिन नहीं नजर आ रहा है.


गौरतलब है कि, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पिछले दिनों इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से कार्य परिषद के सदस्यों की राय लेकर इसका नाम बदले जाने का प्रस्ताव भेजने को कहा था. इस पर यूनिवर्सिटी ने सभी 15 सदस्यों को ई-मेल भेजकर दो दिनों में अपनी राय देने को कहा था. इस पर जहां खूब सवाल उठे थे, वहीं सियासी कोहराम भी मचा था.



समाजवादी पार्टी के एमएलसी वासुदेव यादव ने इस मामले में राष्ट्रपति को चिट्ठी भेज दी थी. कयास यह लगाए जा रहे थे कि सदस्य सरकार की मंशा को अपनी राय के जरिये पूरा कर सकते हैं, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा. विपक्षी पार्टियों और छात्रों व टीचर्स ने कार्य परिषद सदस्यों की राय से इत्तफाक जताया है और उन्हें इस तरह की राय देने के लिए शुक्रिया अदा किया है. ज्यादातर लोगों का मानना था कि यह गैरजरूरी है और इससे इस पुरानी यूनिवर्सिटी की पहचान प्रभावित होगी.