प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस के पीड़ित परिवार की तरफ से दाखिल की गई अर्जी पर कोई दखल देने से इंकार करते हुए उसे खारिज कर दिया है. मामले की सुनवाई करने वाली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस अर्जी को तकनीकी आधार पर खारिज किया है. अदालत ने पांच पन्नों के फैसले में कहा है कि हाथरस से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच पहले ही सुनवाई कर रही है, ऐसे में इस अर्जी पर दखल देना कतई उचित नहीं है. अदालत ने पीड़ित परिवार के सीधे अर्जी दाखिल करने के बजाय बाहरी व्यक्ति के बिना किसी वकालतनामे के याचिका दाखिल करने को भी सही नहीं माना है और अर्जी को खारिज कर दिया है.


फैसले में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार ने जानकारी दी है कि सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेश पर ही पीड़ित परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई गई है. उनकी सुरक्षा के मद्देनज़र ही सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. याचिकाकर्ता के वकील कोर्ट को यह भी नहीं बता पाए कि पीड़ित परिवार दिल्ली क्यों जाना चाहता है. क्या वह दिल्ली जाकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखना चाहता है. कोर्ट ने इन्हीं सब आधार पर दखल देने से इंकार करते हुए अर्जी को खारिज कर दिया.


गौरतलब है कि पीड़ित परिवार के छह सदस्यों की तरफ से अखिल भारतीय वाल्मीकि महापंचायत के राष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र कुमार चौधरी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी. यह याचिका मृतका के पिता, मां, दादी, दो भाइयों और भाभी की तरफ से दाखिल की गई थी. दावा यह किया गया था कि मृतका के भाई ने व्हाट्सएप्प पर मैसेज भेजकर मदद के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करने की गुहार लगाई है. हालांकि याचिकाकर्ताओं के वकील पीड़ित परिवार का कोई वकालतनामा नहीं दिखा सके.


बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में पीड़ित परिवार को अवैध रूप से कस्टडी में रखे जाने, उन्हें लोगों से बेरोकटोक मिलने जुलने व अपनी बात रखने में बंदिश लगाए जाने और खुद को असुरक्षित महसूस करते हुए दिल्ली जाने से रोकने के आरोप लगाए गए थे. यूपी सरकार ने इन आरोपों को गलत बताया था और कोर्ट में कहा कि पीड़ितों की हर संभव मदद की जा रही है. उन्हें सरकार व प्रशासन से कोई शिकायत नहीं है. कुछ लोग बेवजह उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं. पीड़ित परिवार के किसी से मिलने, अपनी बात रखने और कहीं भी आने -जाने पर कोई रोक नहीं है.


मामले की सुनवाई जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस प्रकाश पाडिया की डिवीजन बेंच में हुई. याचिकाकर्ताओं की तरफ से उनके वकील काशिफ अब्बास रिज़वी और जान अब्बास ने ओपन कोर्ट में बहस की, जबकि सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये अपनी दलीलें पेश की थीं. यूपी सरकार का पक्ष एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने रखा. हाईकोर्ट से अर्जी खारिज होने के बाद यूपी सरकार को बड़ी राहत मिली है.


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