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बेटी बालिग होने तक पिता से गुजारा भत्ता पाने की हकदार, इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला

UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि हिंदू पिता को बेटी की शादी होने तक उसका खर्च उठाना होगा. बेटी के बालिग होने के आधार पर पिता उसके भरण-पोषण का खर्च बंद नहीं कर सकता. 

Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि हिंदू पिता को बेटी का खर्च तब तक उठाना पड़ेगा, जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि बेटी के बालिग होने के आधार पर पिता उसके भरण पोषण का खर्च बंद नहीं कर सकता. हाईकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि देश के कानून से पहले धर्म शास्त्रों में दिए गए नियमों में एक हिंदू पुरुष को हमेशा अपने बच्चों का भरण पोषण करने के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार माना गया है. अदालत ने इसी आधार पर हाथरस के अवधेश सिंह की याचिका को खारिज कर दिया है.

मामले के मुताबिक यूपी के हाथरस जिले के रहने वाले अवधेश सिंह की शादी 1992 में उर्मिला देवी से हुई थी. 25 जून 2005 को उर्मिला देवी ने एक बेटी को जन्म दिया है. परिवार ने बेटी का नाम गौरी नंदिनी रखा वह. साल 2009 में अवधेश और उर्मिला के रिश्ते खराब हो गए. अवधेश ने उर्मिला को बेटी समेत घर से निकाल दिया. इसके बाद उर्मिला ने हाथरस कोर्ट में भरण पोषण के लिए केस दाखिल किया. फैमिली कोर्ट के आदेश में कहा गया कि अवधेश सिंह को हर महीने पत्नी उर्मिला को भरण पोषण के लिए पचीस और बेटी गौरी नंदिनी को 20 हजार रुपये देने होंगे. 

अवधेश सिंह ने हाईकोर्ट में दी चुनौती
इस बीच पत्नी उर्मिला देवी ने भरण पोषण का खर्च बढ़ाए जाने की मांग करते हुए अलग केस दाखिल किया. अवधेश सिंह ने इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. अवधेश सिंह की याचिका में यह भी कहा गया कि उनकी बेटी अब बालिग हो चुकी है. उम्र 18 साल की हो गई है, इसलिए अब वह उसे भरण पोषण का खर्च नहीं दे सकते. दूसरी तरफ पत्नी और बेटी की तरफ से कहा गया कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 के मुताबिक हिंदू बेटी बालिग होने तक नहीं, बल्कि शादी होने तक भरण पोषण पाने की हकदार है.

किसी भी हिंदू की यह कानूनी जिम्मेदारी
जस्टिस मनीष कुमार निगम की सिंगल बेंच ने अवधेश सिंह और पत्नी उर्मिला की याचिका पर दिए गए 24 पन्ने के फैसले में मुख्य रूप से कहा है कि कानून से पहले, हिंदू धर्म शास्त्रों में दिए गए नियमों के मुताबिक कोई भी हिंदू पुरुष अपने बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी और बच्चों का भरण पोषण करने के लिए नैतिक और कानूनी दोनों ही तरीके से जवाबदेह माना जाता था. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1956 की धारा 20 (3) का भी हवाला दिया है, जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी हिंदू की यह कानूनी जिम्मेदारी है कि वह अपनी अविवाहित बेटी का भरण पोषण करें. 

 HC ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी इन्हीं दलीलों के आधार पर पत्नी व बेटी को भरण पोषण भत्ता दिए जाने के हाथरस फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. हालांकि हाईकोर्ट ने पत्नी और बेटी का गुजारा भत्ता बढ़ाए जाने की मांग के मामले में दखल देने से इंकार कर दिया है. अदालत ने कहा है कि अगर पत्नी खुद अपना व बेटी का गुजारा भत्ता बढ़वाना चाहती है तो वह हाथरस की फैमिली कोर्ट में इसके लिए आवेदन कर सकती है.

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