Allahabad High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि महिलाओं के यौन उत्पीडन से जुड़े हुए कानून महिला केंद्रित है. महिलाओं और युवतियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर मामले में पुरुष ही दोषी हो. ऐसे मामलों में सबूत पेश करने की जिम्मेदारी महिला और पुरुष दोनों की है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ऐसा कोई फार्मूला नहीं है जिससे यह तय किया जा सके कि महिला के साथ शारीरिक संबंध शादी का झूठा वादा करके बनाए गए या फिर दोनों की सहमति से. अलग-अलग मामलों में तथ्यों के विश्लेषण के जरिए ही यह पता लगाया जा सकता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने वाला पुरुष दोषी है या नहीं. हाईकोर्ट ने अपनी इसी टिप्पणी के साथ यौन उत्पीड़न और एससी एसटी एक्ट के आरोपी युवक को सेशन कोर्ट से बरी किए जाने के फैसले को सही करार देते हुए शिकायतकर्ता महिला की अपील को खारिज कर दिया है.
मामला संगम नगरी प्रयागराज से ही जुड़ा हुआ है. यहां कर्नलगंज इलाके में रहने वाली एक युवती की शादी साल 2010 में हुई थी. शादी के दो साल बाद ही वह पति से अलग हो गई और बिना तलाक लिए ही मायके में रहने लगी. साल 2019 में उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि शादी का झांसा देकर एक युवक पिछले पांच सालों से उसके साथ शारीरिक संबंध बना रहा था. इस शिकायत पर आरोपी युवक के खिलाफ रेप और एससी एसटी एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज हुआ. इलाहाबाद की सेशन कोर्ट ने इसी साल फरवरी महीने में आरोपी युवक को रेप और दूसरी गंभीर धाराओं से पूरी तरह बरी कर दिया. उसे सिर्फ मारपीट के मामले में दोषी माना.
सेशन कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की. जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस में नंदप्रभा शुक्ला की डिवीजन बेंच ने अपील पर फैसला सुनाते हुए सेशन कोर्ट के फैसले को सही माना और आरोपी युवक को बरी किए जाने के फैसले पर अपनी मुहर लगाई. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि महिला पहले से शादीशुदा थी. उसे शारीरिक संबंधों के बारे में अच्छे से जानकारी थी. पति से तलाक लिए बिना ही दूसरी शादी के वादे पर तैयार होना कतई उचित नहीं था. ऐसा व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं है कि सिर्फ शादी के वादे पर पांच सालों तक शारीरिक संबंध बनाया जाए.
अदालत ने कहा कि यह भरोसा करने लायक नहीं है कि पति से तलाक लिए बिना कोई महिला दूसरी शादी के लिए किसी पुरुष को पांच सालों तक संबंध बनाने की इजाजत देती रहे. अदालत में अपने फैसले में यह भी कहा कि महिला और पुरुष दोनों बालिग थे और शारीरिक संबंधों के अंजाम को बखूबी समझते थे. ऐसे में सिर्फ पुरुष को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
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