UP News: गाजियाबाद में बिल्डर से सांठगांठ कर करोड़ों की ज़मीन के फर्जीवाड़े  के आरोपी एसएसबी के पूर्व आईजी एससी कटोच को इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) से फिलहाल कोई राहत नहीं मिल सकी है. हाईकोर्ट ने पूर्व आईजी समेत घोटाले के सात अन्य आरोपियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द किए जाने के मामले में फिलहाल कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया है. मामले की सुनवाई कर रही हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इस मामले में गाजियाबाद पुलिस और यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. अदालत ने जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते की मोहलत देते हुए सुनवाई के लिए अगली तारीख तीन अगस्त तय की है. मामले में राहत पाने के लिए आरोपी बिल्डर ने अलग से अर्जी दाखिल की हुई है.  


गाजियाबाद के विवेक नगर थाने
बता दें कि यह मामला गाजियाबाद के विवेक नगर थाने से जुड़ा हुआ है. आरोप है कि सेवा सुरक्षा सहकारी आवास समिति के नाम से बनी सोसाइटी ने अकबरपुर बहरामपुर इलाके के पास 196 सदस्यों को प्लाट आवंटित कर साल 2006 में ही कब्ज़ा दे दिया. साल 2012 में सीमा सुरक्षा बल के तत्कालीन आईजी एससी कटोच इस समिति के अध्यक्ष थे. एससी कटोच की अध्यक्षता वाली समिति ने साल 2012 में इन 196 सदस्यों से प्लाट लेकर उन्हें फ्लैट देने का ऑफर दिया. इसके लिए समिति से जुड़े इन सभी सदस्यों से सहमति ली गई. कहा गया कि सदस्यों को एक मई 2016 तक तैयार फ्लैट दे दिए जाएंगे. फ्लैट का कब्ज़ा देने में देरी होने पर हर महीने आठ हज़ार रूपये किराया देने की भी बात कही गई. तय समय पर फ्लैट न बनने पर समिति के सदस्यों ने पता किया तो जानकारी मिली कि पूर्व आईजी और दूसरे पदाधिकारियों ने मनमाने तरीके से किसी दूसरे बिल्डर से एग्रीमेंट कर लिया था.


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हाईकोर्ट में दाखिल की थी याचिका 
बिल्डर और समिति के सदस्यों ने काफी ज़मीन बेचकर दो सौ करोड़ रूपये के करीब का फर्जीवाड़ा किया. नौ साल बीतने के बाद भी जब न तो फ्लैट मिला और न ही किराया तो आरएस चौहान नाम के सदस्य ने इसी साल 26 अप्रैल को गाजियाबाद के विवेक नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई. इसमें पूर्व आईजी एससी कटोच समेत सात पदाधिकारियों और बिल्डर के खिलाफ आईपीसी की छह गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ. इसी मामले में आरोपी पूर्व आईजी और अन्य आरोपियों ने एफआईआर रद्द किए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस याचिका पर आज जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस उमेश शर्मा की डिवीजन बेंच में हुई. याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई कि यह सिविल नेचर का मामला है और इसमें क्रिमिनल केस दर्ज नहीं हो सकता.    


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