CAA Protest: यूपी सरकार के रवैये पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, कही बड़ी बात
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में यूपी में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के मामलों की न्यायिक जांच कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल अर्जियों पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है।
प्रयागराज, एबीपी गंगा। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा के मामलों की न्यायिक जांच कराए जाने की मांग को लेकर दाखिल अर्जियों पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर यूपी सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है। अदालत में सोमवार को सरकार की तरफ से 611 पन्नों का जवाब दाखिल किया गया, लेकिन अदालत इतने लम्बे हलफनामे से भी संतुष्ट नहीं हुई और उसने सरकार को फिर से जवाब दाखिल करने को कहा है।
यूपी सरकार की तरफ से सोमवार को 600 पन्नों से अधिक का जो हलफनामा दाखिल किया गया, उसमें यूपी में हुए प्रदर्शनों में 50 के करीब नागरिकों और तीन सौ से ज़्यादा पुलिसवालों के घायल होने का दावा किया गया है। हालांकि, जवाब में न तो घायल पुलिसवालों की डिटेल्स दी गई है और न ही उनकी मेडिकल रिपोर्ट।
इसके अलावा यह भी माना गया कि प्रदर्शन के दौरान पुलिस ज्यादतियों को लेकर अब तक सरकारी अमले के खिलाफ 10 शिकायतें आई हैं, लेकिन इनमें से किसी एक पर भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।अदालत ने इस पर हैरानी जताई और यूपी सरकार से जवाब-तलब किया है। अदालत ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ एक भी एफआईआर दर्ज नहीं होने पर नाराजगी जताई और सरकार से जवाब देने को कहा है।
यूपी सरकार की तरफ से सभी अर्जियों में कही गई बातों को निराधार बताते हुए उन्हें खारिज किये जाने की दलील दी गई, लेकिन अदालत ने उन्हें खारिज करने से फिलहाल मना कर दिया। मामले की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की डिवीजन बेंच ने यूपी सरकार को अब सभी 14 अर्जियों पर अलग-अलग जवाबी हलफनामा विस्तृत जवाब के साथ दाखिल करने को कहा है।
अदालत ने इसके लिए यूपी सरकार को एक महीने की मोहलत दी है। यूपी सरकार को 16 मार्च तक अपना जवाब दाखिल करना होगा, जबकि अदालत इस मामले में 18 मार्च को अगली सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच इससे पहले भी यूपी सरकार के जवाब पर असंतोष जता चुकी है।
गौरतलब है कि मुम्बई के वकील अजय कुमार और पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया समेत तमाम व्यक्तियों व संगठनों ने सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में पुलिस व प्रशासन पर बर्बरता करने, फायरिंग व लाठीचार्ज करने के आरोप लगाते हुए न्यायिक जांच की मांग की थी।