Aligarh News: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति को लेकर चल रहे विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू के वर्तमान कुलपति प्रोफेसर नईमा खातून सहित अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है, जिसमें उनसे अगले चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया है. इस मुद्दे पर न्यायमूर्ति प्रकाश पड़िया की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई करते हुए 21 अक्टूबर 2024 को यह आदेश जारी किया.


एएमयू के प्रोफेसर मुजाहिद बेग ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में अनियमितताएं हुई हैं. याचिका के अनुसार, प्रोफेसर नईमा खातून के नाम को लेकर जो आपत्तियां थीं, उन्हें ठीक से संबोधित नहीं किया गया, और उनकी नियुक्ति में पक्षपात हुआ है. याचिकाकर्ता का आरोप है कि जब प्रोफेसर नईमा खातून को कुलपति नियुक्त किया गया था, तब उनके पति प्रोफेसर गुलरेज एएमयू के कार्यवाहक कुलपति थे. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, याचिकाकर्ता ने इस नियुक्ति प्रक्रिया में हितों के टकराव और पक्षपात की संभावना जताई है.


कुलपति की नियुक्ति में पक्षपात का आरोप
याचिका में दावा किया गया है कि कुलपति पद के लिए जिन अन्य उम्मीदवारों का नाम पैनल में था, उन्हें उचित मौका नहीं दिया गया. इस पैनल में प्रोफेसर मुजफ्फर उरूज रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफा जैसे प्रतिष्ठित शिक्षाविदों के नाम शामिल थे, जिनके पास व्यापक अनुभव और योग्यता थी. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इन अनुभवी उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दिया गया और प्रोफेसर नईमा खातून को कुलपति पद पर नियुक्त किया गया, जो कि अनुचित और नियमविरुद्ध है.


प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति के साथ एक ऐतिहासिक घटना भी जुड़ी हुई है. हालांकि, उनकी नियुक्ति के बाद से ही इस प्रक्रिया पर सवाल उठते रहे हैं, और यह विवाद हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह अनुरोध किया है कि नियुक्ति प्रक्रिया की जांच की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इसमें किसी भी प्रकार की अनियमितता या पक्षपात नहीं हुआ है. यदि इस प्रक्रिया में कोई खामी पाई जाती है, तो कुलपति की नियुक्ति को रद्द किया जाना चाहिए.


हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी संबंधित पक्षों से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है. अदालत ने दोनों पक्षों से उचित और सटीक जानकारी प्रस्तुत करने को कहा है ताकि एक निष्पक्ष निर्णय लिया जा सके. इस प्रकरण ने उच्च शिक्षा संस्थानों में नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक व्यापक बहस को जन्म दिया है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का यह मामला इस बात की ओर इशारा करता है कि शिक्षा के क्षेत्र में भी राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की समस्या गहरी है, जिसे सुधारने की आवश्यकता है.


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