Allahabad High Court News: दंपत्ति से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि पति-पत्नी रिश्ते से नाखुश हैं तो उन्हें साथ रहने के लिए विवश करना क्रूरता होगा. लंबे समय से अलग रह रहे जोड़े को एक साथ लाने के बजाय उनका तलाक कर देना अधिक जनहित में है. 


इसी के साथ कोर्ट ने अपर प्रधान न्यायाधीश परिवार अदालत गाजियाबाद के पति की तलाक अर्जी खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने दोनों के बीच हुए विवाह को भंग कर दिया है. कोर्ट ने स्थाई विवाह विच्छेद के एवज में पति को तीन महीने में एक करोड़ रुपये पत्नी को देने का भी निर्देश दिया है. पति की वार्षिक आय दो करोड़ रुपये है. 


देना होगा छह फीसदी ब्याज


कोर्ट ने कहा यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो छह फीसदी ब्याज देना होगा. याची अशोक झा की प्रथम अपील को स्वीकार करते हुए ये आदेश दिया गया. कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के केस में पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की. याची को अदालत से बरी कर दिया गया है. 


झूठे केस में फंसाना क्रूरता


दोनों ने ही आरोप प्रत्यारोप लगाए थे. स्थिति यहां तक पहुंच गई कि समझौते की गुंजाइश खत्म हो गई और झूठे केस कायम किए गए. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि झूठे केस में फंसाना क्रूरता है. जस्टिस एसडी सिंह और जस्टिस एके एस देशवाल की खंडपीठ ने आदेश सुनाया है. 


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में शादी से जुड़े मामलों में कई बार अहम टिप्पणी की है. इसी महीने की शुरुआत में हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह में सप्तपदी को अनिवार्य तत्व बताते हुए कहा था कि रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुई शादी को ही कानून की नजर में वैध विवाह माना जा सकता है. अगर ऐसा नहीं है तो शादी को वैध नहीं माना जाएगा.


ये भी पढ़ें- 


Gyanvapi Case: ज्ञानवापी में वजूखाने का ASI से सर्वे कराने पर आज सुनवाई, हिन्दू पक्ष ने दाखिल की है याचिका