प्रयागराज, एबीपी गंगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर बजाए जाने से इलाके का सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है तो यह प्रशासन की ड्यूटी बनती है कि वहां पर साउंड सिस्टम का इस्तेमाल होने से रोके, क्योंकि साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रखना सरकारी अमले की ज़िम्मेदारी है।
अदालत ने यह भी कहा है कि भारत में हर किसी को अपने मजहब के हिसाब से ज़िंदगी जीने और धार्मिक भावनाएं प्रकट करने का अधिकार हासिल है, लेकिन इस अधिकार के जरिये किसी के निजी जीवन में छेड़खानी करने या उसे परेशान करने की इजाजत कतई नहीं दी जा सकती है। अदालत ने इसी आधार पर जौनपुर की एक मस्जिद में अज़ान के लिए लाउडस्पीकर बजाए जाने की परमीशन दिए जाने के मामले में दखल देने से इंकार कर दिया और अर्जी को खारिज कर दिया।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जौनपुर जिले के बद्दोपुर गांव में एसडीएम ने इस आधार पर अज़ान के लिए लाउडस्पीकर बजाए जाने की अनुमति नहीं दी क्योंकि गांव में सिर्फ दो फीसदी मुस्लिम ही रहते हैं। लाउडस्पीकर बजने से सामाजिक संतुलन और साम्प्रादायिक सौहार्द बिगड़ सकता है। मस्जिद से जुड़े मसरूर अहमद ने एसडीएम द्वारा परमीशन नहीं दिए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जस्टिस पंकज मित्तल और वीसी दीक्षित की डिवीजन बेंच ने कहा है कि यह मामला दखल देने लायक नहीं है। अगर एसडीएम ने किसी अप्रिय घटना को बचाने के लिए आदेश देने से मना कर दिया है तो ऐसा करना उनका अधिकार है, क्योंकि साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रखना उनकी ज़िम्मेदारी है।