UP News: महिला कांस्टेबल के लिंग परिवर्तन मामले में हाईकोर्ट सख्त, राज्य सरकार को दिए यह आदेश
Prayagraj News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ को लेकर नियम बनाने में उदासीनता बरतने पर राज्य सरकार पर नाराजगी जाहिर की है. वहीं सरकारी वकील को तीन महीने का समय देने से इनकार किया है.
Allahabad Highcourt in Gender Change Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ (लिंग परिवर्तन सर्जरी) के लिये नियम बनाने में उदासीनता बरतने पर नाराजगी जाहिर करते हुए राज्य सरकार को सुनवाई की अगली तारीख तक लंबित आवेदन पर उचित निर्णय करने का निर्देश दिया है. राज्य सरकार ने 2014 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक, दिशानिर्देश नहीं बनाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह सुनिश्चित करने पर जोर दिया था कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अस्पताल के भीतर चिकित्सा देखभाल के साथ ही अलग से सार्वजनिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएं.
न्यायमूर्ति अजित सिंह ने उत्तर प्रदेश पुलिस में एक अविवाहित महिला कांस्टेबल की ओर से दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान उक्त टिप्पणी की. महिला कांस्टेबल ने ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ (एसआरएस) कराने की अनुमति मांगी है. याचिकाकर्ता का दावा है कि वह ‘जेंडर डाइस्फोरिया’ (वह स्थिति जिसमें व्यक्ति को यह महसूस होता है कि उसका प्राकृतिक लिंग उसके लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाता है) की अनुभूति कर रही है, इसलिए वह एसआरएस कराने की इच्छा रखती है.
सरकारी वकील को नहीं मिली मोहलत
सरकारी वकील ने याचिकाकर्ता के आवेदन पर निर्णय के लिए तीन महीने की मोहलत मांगी लेकिन हाईकोर्ट ने यह मोहलत देने से इनकार करते हुए कहा, “इस परिस्थिति में यह निर्देश दिया जाता है कि अगली तारीख 18 अक्टूबर, 2023 तक लंबित आवेदन पर उचित निर्णय किया जाए.”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट तल्ख
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अनुपालन नहीं करने पर अपना असंतोष व्यक्त करते हुए कहा, “जहां केंद्र सरकार ने 15 अप्रैल, 2014 को निर्णय आने के तुरंत बाद इस पर कार्रवाई कर कानून बनाया, वहीं राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रही और आज की तिथि तक कोई निर्णय नहीं किया गया है.”
राज्य सरकार पर जाहिर की नाराजगी
हाईकोर्ट ने कहा, “जिस तरह से तीन महीने का समय मांगा गया है, यह दर्शाता है कि राज्य सरकार फिर से बहुत हल्का नजरिया अपना रही है. इस बात का कोई कारण नहीं बताया गया कि राज्य सरकार हलफनामा दाखिल करने के लिए क्यों तीन महीने का समय चाहती है.” अदालत ने पिछले 18 सितंबर को यह निर्देश पारित किया.
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