Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संदेह के आधार पर 17 साल जेल में बिताने वाले वाले महफूज नाम के शख्स को बरी कर दिया है. उसे साल 2013 में सेशन कोर्ट के द्वारा हत्या के दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. महफूज ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता और प्रत्यक्षदर्शी के बयान में भौतिक विरोधाभास थे. जिसके बाद संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने उसकी सजा को रद्द कर दिया है. 


हाईकोर्ट में जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि अपीलकर्ता महफूज 17 साल से न्यायिक हिरासत में था बावजूद इसके इस मामले में समय से पहले रिहाई के लिए विचार नहीं किया गया. जिसके बाद कोर्ट ने उसे बरी करने का फैसला लिया.


जानें- क्या है पूरा मामला?
ये मामला साल 2006 का है जब कन्नौज में कोतवाली थाना क्षेत्र के मलिकापुर में रहने वाले सुभाष कहार ने अपने भाई की हत्या के आरोप में मुक़दमा दर्ज कराया था. सुभाष ने बताया कि वो अपने भाई दिनेश के साथ 19 अक्टूबर 2006 को मछली बेचकर वापस लौट रहा था, तभी रास्ते में महफूज और उसके भाई मुद्दू ने उन्हें रास्ते में रोककर पैसे मांगे जब दिनेश ने पैसे देने से मना कर दिया को मुद्दू ने उसे पकड़ लिया और महफूज ने गोली मार दी. 


जिसके बाद गांववालों ने मुद्दू को पकड़ने की कोशिश की जिसमें उसे चोटें भी आईं थी, लेकिन वो भाग निकला, बाद में मुद्दू की मौत हो गई. इस मामले में पुलिस ने  दिनेश की मौत मामले पर मुक़दमा दर्ज किया लेकिन मुद्दू की मौत पर कार्रवाई नहीं हुई. सेशन कोर्ट ने दिनेश की हत्या मामले में महफूज को उम्रक़ैद की सजा सुना दी लेकिन मुद्दू मामले पर कुछ नहीं हुआ. 


महफूज ने हाईकोर्ट में दी सजा को चुनौती
जिसके बाद महफूज ने इस सजा के विरुद्ध हाईकोर्ट में चुनौती दी. सुनवाई के दौरान महफूज के वकील ने दलील दी कि तब दिनेश और मुद्दू दोनों की मौत हुई थी लेकिन पुलिस ने सिर्फ शिकायतकर्ता को बचाने के लिए एक ही मामले में शिकायत दर्ज की. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद शिकायतकर्ता और प्रत्यक्षदर्शी के बयान में भौतिक विरोधाभास पाया, जिसके बाद हाईकोर्ट ने पूछा कि मुद्दू की हत्या में मुक़दमा दर्ज क्यों नहीं किया. 


अपीलकर्ता ने भीड़ पर मुद्दू की हत्या का आरोप लगाया. कोर्ट ने कहा कि इससे साफ होता है कि इस मामले की जांच ठीक से नहीं की गई. जिसके बाद कोर्ट ने संदेह के आधार पर जेल की सजा काट रहे महफूज को बरी करने का आदेश सुना दिया.


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