Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने नाबालिग लड़के को बालिग लड़की के साथ लिव-इन में रहने की इजाजत नहीं दी. कोर्ट ने ये तर्क देते हुए लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship) की इजाजत देने इंकार कर दिया है कि जो लड़का खुद अपने पिता पर निर्भर है वह कैसे अपनी प्रेमिका की देखभाल कर सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने आंचल राजभर और उसके नाबालिग प्रेमी की याचिका पर दिया है. 


प्रेमिका के पिता दर्ज कराया था अपहरण का केस
प्रेमिका के पिता ने गाजीपुर के बहरिया थाने में नाबालिग प्रेमी के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कराया था. इसकी वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि प्रेमिका और नाबालिग प्रेमी दोनों रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं, इसलिए प्राथमिकी रद्द की जाए. जिस पर कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 226 की अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर प्राथमिकी रद्द करने का प्रश्न ही नहीं उठता. कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत देने से भी मना कर दिया है.


कोर्ट से लिव इन में रहने देने की मांग की
याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील दी गई कि दोनों काफी समय से अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं. इसलिए नाबालिग प्रेमी के खिलाफ एफआईआर रद्द की जानी चाहिए. दोनों याची एक-दूसरे के साथ खुश हैं. अपनी जिंदगी साथ जीना चाहते हैं. उन्हें साथ रहने की इजाजत और सुरक्षा भी दी जानी चाहिए.


कोर्ट ने याचियों द्वारा दाखिल दस्तावेजों में पाया कि प्रेमिका बालिग है लेकिन प्रेमी नाबालिग है. आश्चर्य जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक नाबालिग प्रेमी अपनी प्रेमिका की जिम्मेदारी कैसे निभा सकता है जो खुद पिता के सहारे जिंदगी जी रहा है. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए एफआईआर रद्द करने और याचियों को लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत देने से इनकार कर दिया.


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