चिन्मयानंद के खिलाफ FIR दर्ज कराने वाली छात्रा को नहीं मिली हाईकोर्ट से राहत, सभी अर्जियां खारिज
स्वामी चिन्मयानंद पर रेप का आरोप लगाने वाली छात्रा को हाई कोर्ट से झटका लगा है। छात्र ने एसआईटी की जांच पर सवाल उठाते हुये एक याचिका डाली थी..जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया
प्रयागराज, एबीपी गंगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के शाहजहांपुर के स्वामी सुखदेवानंद लॉ कालेज की एलएलएम छात्रा द्वारा पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर लगाए गए रेप के आरोप और साथ ही पीड़ित छात्रा के खिलाफ लगे ब्लैकमेलिंग के आरोपों की एसआईटी द्वारा की गई जांच को सही माना है। हाईकोर्ट ने पीड़ित छात्रा द्वारा एसआईटी की जांच प्रक्रिया पर उठाये गये सवालों को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने पीडिता द्वारा नई दिल्ली के लोधी रोड पुलिस स्टेशन में की गयी शिकायत की अलग से जांच करने की मांग को भी मंजूर नहीं किया है। अदालत ने इस मामले में यह कहते हुए दखल देने से इंकार कर दिया है कि एसआईटी ने पीड़िता के बयान व शिकायत सहित सभी पहलुओं पर विचार करते हुए अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है। इस मामले में अब ट्रायल कोर्ट ही नियमानुसार कार्यवाही करेंगी।
कोर्ट ने पीड़िता की तरफ से बाथरूम में नहाते हुए स्वामी चिन्मयानंद द्वारा ली गई उसकी तस्वीर की अलग से जांच कराने की मांग को भी निराधार बताया है और साथ ही एसआईटी द्वारा पीड़िता के परिवार के उत्पीड़न के आरोपों को भी गलत मानते हुए इस मामले में भी राहत देने से इंकार कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा तथा न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर लापता छात्रा केस की मानीटरिंग के लिए गठित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।
गौरतलब है कि स्वामी सुखदेवानंद लॉ कालेज शाहजहांपुर की एल एल एम छात्रा 24 अगस्त 2019 को लापता हो गई थी। इस खबर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने लडकी की तलाश करने का सख्त निर्देश दिया। 2 सितंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वह विशेष जांच टीम गठित कर लापता लड़की को कोर्ट में पेश करें। एसआईटी ने राजस्थान से लड़की को उसके दोस्तों के साथ बरामद किया और सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। जहां उसका बयान दर्ज कर पीड़िता व परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया गया।
इस बीच दुराचार के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद से पांच करोड़ रुपए की मांग करने का वीडियो वायरल हुआ। स्वामी चिन्मयानंद की तरफ से पीड़िता पर ब्लैकमेलिंग करने का आरोप लगाते हुए एफ आई आर दर्ज कराई गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुओ मोटो लेते हुए ब्लैकमेलिंग और दुराचार दोनों मामलों की विवेचना की मानिटरिंग इलाहाबाद हाईकोर्ट को सौपी दी। हाईकोर्ट के निर्देशानुसार एसआईटी ने सभी पहलुओं पर विचार कर पुलिस रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर दी है। हाईकोर्ट के ही आदेश के तहत इस मामले का ट्रायल अब लखनऊ की अदालत में हो रहा है।
पीडिता की तरफ से हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की गई कि 5 सितंबर 2019 को लोधी रोड में दर्ज शिकायत की अलग से एफ आई आर दर्ज कर विवेचना की जाए और पक्षपात न कर निष्पक्ष विवेचना कराई जाए। एक अर्जी में पीड़िता ने एस आई टी पर अपने परिवार के उत्पीड़न का आरोप लगाया और एसआईटी टीम के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। कोर्ट ने कहा चिन्मयानंद पर दुराचार के आरोप में एफ आई आर पहले से दर्ज है। दिल्ली में की गई शिकायत पहले से कायम की गई प्राथमिकी का विस्तृत स्वरूप है। अलग से एफआईआर दर्ज करने की जरूरत नहीं है। पीड़िता के धारा 164 के बयान, उसकी लिखित शिकायत को एसआईटी ने जांच के दायरे में लेकर विवेचना की है। एसआईटी जांच में कोई अवैधानिकता नहीं है।
छात्रा की तरफ से यह भी कहा गया कि आरोप पत्र धारा 376 (सी ) में दाखिल किया है जबकि 376 के आरोप में पुलिस को रिपोर्ट पेश करनी चाहिए थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि पुलिस विवेचना के दौरान अपनी राय कायम करने के लिए स्वतंत्र है। पुलिस रिपोर्ट पेश होने के बाद साक्ष्यों व तथ्यों के आधार पर कोर्ट को भी अपनी राय बनाने का स्वतंत्र अधिकार है। कोर्ट साक्ष्यों के आधार पर पुलिस द्वारा लगाई गई धाराओं में परिवर्तन कर सकती है। पुलिस ने किस धारा में रिपोर्ट पेश की है, इससे मुकदमे की सुनवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
पीड़िता की तरफ से यह भी कहा गया कि स्वामी चिन्मयानंद ने नहाते समय उसकी वीडियो क्लिपिंग ली थी। उस मोबाइल फोन को एसआईटी ने जांच में बरामद नहीं किया है। पीड़िता फोन नंबर बताने में असमर्थ है। ऐसे में फोन की बरामदगी करने का औचित्य नही है। जहां तक पुलिस अभिरक्षा में पीड़िता के परिवार का उत्पीड़न करने का प्रश्न है जिस पर कोर्ट द्वारा कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। कोर्ट ने कहा कि प्रेस कांफ्रेंस करने से जांच प्रभावित होने के आरोप में बल नही है। कोर्ट ने पीड़िता की तरफ से दाखिल अर्जियो पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और उन्हें खारिज कर दिया।