"अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?" HC ने शवों के निपटान वाली याचिका की खारिज
वकील ने प्रार्थना की कि उत्तर प्रदेश सरकार को धार्मिक संस्कारों के अनुसार अंतिम संस्कार करने और इलाहाबाद के विभिन्न घाटों पर गंगा नदी के पास दफन शवों को जल्द से जल्द निपटाने और गंगा नदी के पास शवों को दफनाने से रोकने के लिए निर्देशित किया जाए.

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को प्रयागराज में गंगा नदी के विभिन्न घाटों के पास दफन शवों के निपटान की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?
मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति प्रकाश पाड़िया की खंडपीठ ने वकील प्रणवेश से पूछा कि इसमें उनका व्यक्तिगत योगदान क्या रहा है? और क्या उन्होंने खुद खोदकर शवों का अंतिम संस्कार किया है?
वकील ने प्रार्थना की कि उत्तर प्रदेश सरकार को धार्मिक संस्कारों के अनुसार अंतिम संस्कार करने और इलाहाबाद के विभिन्न घाटों पर गंगा नदी के पास दफन शवों को जल्द से जल्द निपटाने और गंगा नदी के पास शवों को दफनाने से रोकने के लिए निर्देशित किया जाए.
मुख्य न्यायाधीश संजय यादव ने याचिकाकर्ता से यह दिखाने के लिए कहा कि इस मामले में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से क्या किया है. कोर्ट ने पूछा, "आप अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के समक्ष कैसे आ सकते हैं?" उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा, "यदि आप एक लोकहितैषी व्यक्ति हैं, तो हमें बताएं कि आपने कितने शवों की पहचान की है और क्या उन शवों का सम्मानजनक दाह संस्कार किया है?"
वकील प्रणवेश ने केंद्र और राज्यों को मृतकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी की गई एडवाइजरी को रिकॉर्ड पर रखा. उन्होंने इसके अलावा तर्क दिया कि धार्मिक संस्कारों के अनुसार दाह संस्कार करना और गंगा नदी के किनारे दफन किए गए शवों का निपटान करना राज्य की जिम्मेदारी है.
मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा, "राज्य ऐसा क्यों करे? अगर किसी की मृत्यु होती है तो क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है?"
मुख्य न्यायाधीश ने इसके अलावा मौखिक रूप से टिप्पणी की कि हम इस याचिका को अनुमति नहीं देंगे. इसके लिए आपको कुछ व्यक्तिगत योगदान दिखाना होगा, अन्यथा हम भारी जुर्माना लगा सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि, "यह जनहित याचिका नहीं, बल्कि प्रचार हित याचिका है."
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