प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि माता-पिता, पत्नी और संतान का भरण पोषण करना कल्याणकारी धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक विधान के तहत सामाजिक न्याय की संकल्पना है और भारतीय समाज में विवाह महत्वपूर्ण है. माता-पिता का सपना होता है कि बेटी को ससुराल में मायके से अधिक प्यार और सुख मिले. जब बेटी पर जुल्म होता है तो मां-बाप के सपने टूटते हैं. उन्हें गहरा सदमा लगता है.


चुनौती याचिका खारिज
कोर्ट ने कहा है कि हिन्दुओं में विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान होता है. बेटी दूसरे को सौंप दी जाती है. उसका भरण पोषण करना न केवल विधिक, नैतिक व सामाजिक जिम्मेदारी है वरन पति की शादी में दिए गए वचनों की वचनबद्धता भी है. कोर्ट ने परिवार न्यायालय झांसी के पत्नी और पुत्री को 35सौ रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण देने के आदेश को वैध करार दिया है और आदेश की वैधता की चुनौती याचिका खारिज कर दी है.


एफआईआर दर्ज कराई गई
लगातार हिन्दी भाषा में फैसले सुना रहे न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने ये आदेश अश्वनी यादव की याचिका पर दिया है. मालूम हो कि याची की शादी ज्योति यादव से 29 सितंबर 15 को हुई. शादी में कुल 15 लाख खर्च हुए थे. ससुराल वालों पर दहेज के लिए प्रताड़ित करने के आरोप में ज्योति ने एफआईआर दर्ज कराई है. 28 जनवरी 19 को ज्योति मायके आई थी.


कार की मांग पर अड़े रहे ससुराल वाले
ससुराल वालों ने पंचायत बैठाई और कार की मांग पर अड़े रहे तो ज्योति ने धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत वाद दायर किया. परिवार न्यायालय ने पति अश्वनी को पत्नी को 2500 व पुत्री को 1000 रूपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. जिसकी वैधता को चुनौती दी गई थी.



यह भी पढ़ें:



प्राइमरी टीचर्स ट्रांसफर मामलाः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तबादलों पर लगी रोक हटाई, यूपी सरकार को मिली राहत


लखनऊ: CAA-NRC की आड़ में हिंसा फैलाने के आरोपी, डुगडुगी बजवा कर घरों पर नोटिस चस्पा किया गया