UP News: 'सप्तपदी हिंदू विवाह में अनिवार्य, बिना इसके शादी वैध नहीं', इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
Allahabad High Court News: एक महिला के खिलाफ उसके ससुराल वालों ने आरोप लगाया था कि उसने तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली है. इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये टिप्पणी की है.
Allahabad High Court On Hindu Marriage: हिंदू विवाह को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि सप्तपदी हिंदू विवाह का अनिवार्य तत्व है. रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह को ही कानून की नजर में वैध विवाह माना जा सकता है. कोर्ट ने कहा यदि ऐसा नहीं है तो कानून की नजर में ऐसा विवाह वैध विवाह नहीं माना जाएगा.
जस्टिस संजय कुमार सिंह की सिंगल बेंच में वाराणसी की स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह की याचिका पर सुनवाई हो रही थी. कोर्ट ने याची के खिलाफ दर्ज परिवाद और जारी समन आदेश को रद्द कर दिया है. याची के खिलाफ उसके पति सहित ससुराल वालों ने तलाक दिए बगैर दूसरा विवाह करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी जिला अदालत में परिवाद दायर किया था. जिस पर कोर्ट ने याची को समन जारी कर तलब किया था.
क्या है पूरा मामला
इस परिवाद और समन को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. याची का कहना था कि उसका विवाह 5 जून 2017 को सत्यम सिंह के साथ हुआ था. दोनों की शादी चल नहीं पाई और विवादों के कारण याची ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न वह मारपीट आदि का मुकदमा दर्ज कराया था. ये भी आरोप लगाया कि ससुराल वालों ने उसे मारपीट कर घर से निकाल दिया.
बिना तलाक के दूसरी शादी का लगाया आरोप
पुलिस ने पति व ससुराल वालों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल की है. इस दौरान पति और ससुराल वालों की ओर से पुलिस अधिकारियों को एक शिकायती पत्र देकर कहा गया कि याची ने पहले पति से तलाक लिए बिना दूसरी शादी कर ली है. इस शिकायत की सीओ सदर मिर्जापुर ने जांच की और उसे झूठा करार देते हुए रिपोर्ट लगा दी.
इसके बाद याची के पति ने जिला न्यायालय वाराणसी में परिवाद दाखिल किया. अदालत ने इस परिवाद पर याची को समन जारी किया था. जिसे चुनौती देते हुए कहा गया कि याची द्वारा दूसरा विवाह करने का आरोप सरासर गलत है. यह आरोप याची की ओर से दर्ज कराए गए मुकदमे का बदला लेने की नीयत से लगाया गया है.
कोर्ट ने क्या कुछ कहा?
परिवाद में विवाह समारोह संपन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है. न ही सप्तपदी का कोई साक्ष्य है जो कि विवाह की अनिवार्य रस्म है. एकमात्र फोटोग्राफ साक्ष्य के तौर पर लगाया गया है जिसमें लड़की का चेहरा स्पष्ट नहीं है. कोर्ट ने कहा कि याची के खिलाफ दर्ज शिकायत में विवाह समारोह संपन्न होने का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है. जबकि वैध विवाह के लिए विवाह समारोह का सभी रीति-रिवाज के साथ संपन्न होना जरूरी है.
कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा नहीं है तो कानून की नजर में यह वैध विवाह नहीं होगा. हिंदू विवाह की वैधता को स्थापित करने के लिए सप्तपदी एक अनिवार्य तत्व है. वर्तमान मामले में इसका कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सिर्फ याची को परेशान करने के उद्देश्य से एक दूषित न्यायिक प्रक्रिया शुरू की गई है. जो न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है.
कोर्ट ने कहा अदालत का यह दायित्व है कि वह निर्दोष लोगों को ऐसी प्रक्रिया से बचाए. हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल को याची के खिलाफ जारी समन आदेश और परिवाद की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है.