प्रयागराज, मोहम्मद मोईन। एससी एसटी एक्ट को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि इस एक्ट के तहत किसी के खिलाफ तभी केस दर्ज किया जा सकता है, जब घटना कुछ लोगों के सामने हुई हो। लोग इस मामले में गवाही दे सकें और शिकायतकर्ता इस बात को साबित कर सके कि लोगों के सामने उसे जातिसूचक शब्दों के ज़रिये अपमानित किया गया हो। बंद कमरे में या सिर्फ दो लोगों के बीच हुई घटना में एससी एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। ऐसे मामलों में न तो एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और न ही ट्रायल कोर्ट को मुकदमा चलाना चाहिए और न ही समन जारी करना चाहिए।


अदालत ने इसी आधार पर सोनभद्र जिले के खनन विभाग के अफसर के तहत एससी एसटी के तहत दर्ज केस को रद्द करते हुए उन्हें बड़ी राहत दी है। हालांकि, अदालत ने एफआईआर से सिर्फ एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज धारा को ही हटाया है, अधिकारी के खिलाफ मारपीट, गाली-गलौच और धमकी देने की आईपीसी की धाराओं के तहत केस चलता रहेगा। जस्टिस आरके गौतम की बेंच ने यह आदेश सोनभद्र के खनन विभाग के अधिकारी केपी ठाकुर की अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट भी पहले ही यह साफ़ कर चुका है, पब्लिक व्यू में नहीं होने वाली घटना में एससी एसटी एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।


मामले के मुताबिक, सोनभद्र के खनन विभाग के अधिकारी केपी ठाकुर अपने अधीनस्थ विनोद कुमार तनया के खिलाफ चल रही विभागीय जांच कर रहे थे। बयान के लिए बुलाए जाने पर विनोद तनया साथी कर्मचारी एमपी तिवारी के साथ ठाकुर के चैंबर में गए। ठाकुर ने एमपी तिवारी को बाहर कर कमरा अंदर से बंद कर लिया था। कमरे में सिर्फ ठाकुर और तनया ही थे। विनोद कुमार तनया दलित समुदाय के हैं। बाद में विनोद कुमार तनया ने अदालत के ज़रिये केपी ठाकुर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। आरोप लगाया कि बयान के लिए कमरे में बुलाकर अधिकारी ने उनके साथ मारपीट व गाली गलौच की और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इतना ही नहीं, जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल कर उन्हें अपमानित भी किया। इसी आधार पर केपी ठाकुर के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के साथ ही एससी-एसटी एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया। ठाकुर ने इसी एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।


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