UP News: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में अहम फैसला सुनते हुए कहा है कि तलाक के मामले में पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेषज्ञ की राय लेना कतई गलत नहीं है. हाईकोर्ट ने हाथरस की फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को सही मानते हुए उसे बरकरार रखा है. इस मामले में हाथरस फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ता पत्नी ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. याचिकाकर्ता पत्नी की तरफ से हाथरस की फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी.


हाथरस की फैमिली कोर्ट ने पति के पत्नी से तलाक की कार्यवाही में पत्नी की मेडिकल जांच की अनुमति दी थी. मेडिकल जांच की रिपोर्ट तलाक के मामले में आधार बननी थी. हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में अपीलकर्ता पत्नी के वकील ने ट्रायल कोर्ट के मेडिकल जांच की अनुमति को विभिन्न आधार पर चुनौती दी गई थी. याचिका में पत्नी ने अपने खिलाफ जारी आदेश में ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर आपत्तियां जताई थीं. याचिका के जरिए यह आशंका जताई गई थी कि फैमिली कोर्ट की यह टिप्पणियां मामले के अंतिम निपटान के दौरान प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकते हैं.


मेडिकल बोर्ड का गठन होना चाहिए- HC
अपील में कहा गया था कि हाथरस जिले के सीएमओ को मानसिक हालत की जांच के लिए उचित मेडिकल बोर्ड का गठन करना चाहिए था. इस तर्क पर न्यायालय ने पाया कि रिपोर्ट अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मांगी गई है. दलील दी गई कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक सरकारी सुविधा नहीं है. अदालत ने इस पर हाथरस के चीफ मेडिकल ऑफिसर को निर्देश दिया कि उनके द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए. इस मेडिकल बोर्ड में योग्य न्यूरोलॉजिस्ट और मनोचिकित्सक के साथ-साथ ऐसे अन्य डॉक्टर शामिल होने चाहिए, जो जरूरी मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक हो


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अपीलकर्ता पत्नी पूजा की याचिका में कहा गया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित पहले का आदेश अंतरिम आदेश था. पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए साक्ष्य के स्तर पर मेडिकल जांच के लिए बुलाना सही था. हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के स्तर पर मेडिकल राय मांगने में कोई गलती नहीं की है. हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान में पक्षों का साक्ष्य समाप्त हो चुका है. कोर्ट ने किसी आधार पर पत्नी द्वारा दाखिल याचिका को निस्तारित कर दिया.


हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सीएमओ हाथरस द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत मेडिकल जांच रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी. मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर ट्रायल कोर्ट ही तलाक के केस को लेकर उचित फैसला लेगी. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की डिवीजन बेंच में हुई.