UP Electricity Crisis: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बिजली कर्मियों की हड़ताल  (Electricity Workers Strike) को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने सोमवार को कहा कि लोगों के जीवन की कीमत पर मांगें नहीं की जा सकती हैं और सरकार से पूछा कि हड़ताली कर्मचारियों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? कार्यवाहक चीफ जस्टिस प्रिंतिकर दिवाकर और जस्टिस. डी. सिंह की पीठ ने अपर महाधिवक्ता से दोषी कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में पूछा.


अदालत ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि लोगों के जीवन की कीमत पर मांगें नहीं की जा सकती हैं और राज्य सरकार से इस हड़ताल से हुए राजस्व और अन्य नुकसान के बारे में बताने को कहा. अदालत ने कहा, 'मामला यह नहीं है कि हड़ताल खत्म हो गई है, बल्कि यह बहुत गंभीर मामला है. किसी को भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.'


संघर्ष समिति के पदाधिकारियों के खिलाफ जारी हुआ था वारंट
अदालत ने पूछा, 'इन लोगों को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया. लोगों के जीवन को मुश्किल में डालकर मांग नहीं की जा सकती.' 17 मार्च को जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आयोजक शैलेंद्र दुबे और कई अन्य लोगों के माध्यम से इसके पदाधिकारियों के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था और उन्हें 20 मार्च को सुबह 10 बजे अदालत में पेश होने के लिए कहा था.


इसलिए एक दिन पहले खत्म की गई हड़ताल
बिजली विभाग के कर्मचारी गुरुवार रात से तीन दिन के हड़ताल पर थे और उनके नेताओं और राज्य के ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा के बीच कई दौर की वार्ता के बाद हड़ताल खत्म हो गई. उन्होंने कहा कि सीएम के निर्देशों का सम्मान करते हुए हड़ताल खत्म करने का फैसला किया गया. प्रदर्शनकारी कर्मचारियों ने 16 मार्च को रात 10 बजे से अपनी हड़ताल शुरू की थी और रविवार को दिन में करीब तीन बजे उन्होंने हड़ताल खत्म की. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के आयोजक शैलेंद्र दुबे ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा, 'सीएम (योगी आदित्यनाथ) के निर्देशों का सम्मान करते हुए, ऊर्जा मंत्री के साथ सकारात्मक बातचीत और उच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए हमने व्यापक जनहित में 72 घंटे की अपनी सांकेतिक हड़ताल को एक दिन पहले खत्म करने का फैसला किया है.'


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