UP High Court: भारत विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है. आबादी बढ़ने से भले ही कई समस्याओं का निदान होता है, लेकिन वह अपने साथ उससे ज्यादा समस्याएं पैदा करती है. आबादी बढ़ने पर लोगों के बीच आपसी सामंजस्य, सौहार्द, प्रेम, समाज में शांति की स्थापना के लिए सबसे जरुरी है, एक सुदृढ़ न्याय व्यवस्था. भारत में बेहतर न्याय व्यवस्था के लिए छोटी अदालतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और 25 हाई कोर्ट (High Court) हैं. जहां सुप्रीम कोर्ट में साल के 193 कार्य दिवस होता हैं, तो वहीं हाई कोर्ट में 210 और ट्रायल कोर्ट में साल के 245 दिन लोगों की समस्याओं को सुना जाता है. 


रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे भारत में 44 मिलियन मुकदमें पेंडिंग हैं, जिनमें से अकेले 19 फ़ीसदी पिछले साल रजिस्टर हुए हैं. इन मुकदमों के जल्द निपटारे के लिए न्यायालयों में अलग-अलग श्रेणी के तहत जजों की नियुक्ति की जाती है. लेकिन इन लंबित मामलों पर निगाह डालने के बाद यह सवाल उठता है कि एक दिन में सबसे अधिक मुकदमों की सुनवाई किस कोर्ट में होती है, या भारत का सबसे बड़ा कोर्ट कौन सा है? आइये इसी पर चर्चा करते हैं.


इलाहाबाद हाईकोर्ट को विश्व के सबसे बड़े हाईकोर्ट का ओहदा मिला हुआ है, जो भारत के सबसे अधिक आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में स्थित है. यह भारतीय न्यायिक व्ययवस्था के इतिहास का चौथा सबसे पुराना हाई कोर्ट है, इसकी स्थापन अंग्रेजों ने 1886 में की थी. इससे पहले 1862 में सबसे पहले कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में हाई कोर्ट की स्थापना की जा चुकी थी. जो बाद में ब्रिटिश भारत के हर प्रान्त का अपना हाई कोर्ट बन गया, जबकि 1950 के बाद प्रान्त का हाई कोर्ट संबंधित राज्य का हाई कोर्ट बन गया. संविधान के भाग 6 में अनुच्छेद 214 से अनुच्छेद 231 हाई कोर्ट के गठन, स्वतंत्रता, न्यायिक क्षेत्र, शक्तियां और प्रक्रिया से संबंधित बातें बताई गई हैं.


इलाहाबाद हाई कोर्ट का इतिहास
इलाहाबाद उच्च न्यायालय मूल रूप से ब्रिटिश राज में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के अन्तर्गत आगरा में 17 मार्च 1866 को स्थापित किया गया था. जहां इसके कार्य क्षेत्र में ब्रिटिश भारत का उत्तर पश्चिम प्रान्त आते थे. इस कोर्ट के पहले मुख्य न्यायधीश के रूप में सर वाल्टर मॉर्गन को नियुक्त किया गया था, जबकि पहले रजिस्ट्रार के रूप में मिस्टर सिम्पसन नियुक्त किया गया था. 1869 में इसको आगरा से इलाहाबाद ट्रांसफर कर दिया गया. 11 मार्च 1919 से इसका नाम बदलकर इलाहाबाद में न्यायिक उच्च न्यायालय कर दिया गया था.


2 नवम्बर 1925 को अवध न्यायिक आयुक्त (Oudh Judicial Commissioner) ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम (Oudh Civil Courts Act) 1925 की गवर्नर जनरल से स्वीकृति लेकर संयुक्त प्रान्त विधानमण्डल (United Provinces Legislature) के जरिये मंजूर करवा कर इस कोर्ट को अवध चीफ कोर्ट (Oudh Chief Court) के नाम से लखनऊ में ट्रांसफर कर दिया गया. 2 नवंबर 1925 को, अवध न्यायिक आयुक्त के फैसले को लखनऊ में अवध मुख्य न्यायालय के जरिये बदल दिया गया. 


जहां अवध सिविल कोर्ट अधिनियम 1925 (Avadh Civil Courts Act 1925) के जरिये, गवर्नर जनरल की पिछली मंजूरी के साथ इस कानून को पारित करने के लिए संयुक्त प्रांत विधानमंडल का जरिये अधिनियमित (Enacted) किया गया. 25 फरवरी 1948 को अवध के मुख्य न्यायालय को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ मिला दिया गया. इलहाबाद हाई कोर्ट दो हिस्से हैं- एक कोर्ट की बिल्डिंग इलाहबाद शहर में ही है, जबकि दूसरा लखनऊ में स्थित है. यहां पर स्वतंत्र भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) के रूप में बिधु भूषण मलिक (1947-1955) के रूप में नियुक्त किया गया, इस अवसर पर उन्हें भारत की पहली महिला राज्यपाल सरोजिनी नायडू ने शपथ दिलाई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य भवन का उद्घाटन 105 साल पहले पहले 27 नवम्बर 1916 को हुआ था.


कैसे चलती है कार्यवाही
इलहाबाद हाई कोर्ट की कार्यवाही लखनऊ और इलाहाबाद दोनों जगहों से चलती है. वर्तमान में इलाहाबद कोर्ट के मुख्य न्यायधीश (Chief Justice) जस्टिस राजेश बिंदल अपनी सेवाएं दे रहे हैं. स्वतंत्रता के बाद से यहां पर 36 न्यायधीशों ने मुख्य न्यायधीश के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. हालिया दिनों में इलाहबाद हाई कोर्ट में 65 जज अपनी सीवाएं दे रहे हैं, जबकि लखनऊ बेंच में 27 जज हैं, जबकि 68 पद अभी खाली हैं.


साल 2017 में पहली बार इलाहाबाद स्थित प्रधान पीठ (Head Bench) में एकसाथ कुल 59 और लखनऊ खंडपीठ में कुल 21 कोर्ट चलीं थीं. इसके बाद एक दिन में सबसे अधिक 80 बेंच चलाने का गौरव भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के नाम दर्ज होगा. दुनिया में इतनी बड़ी तादाद में कहीं भी एक हाईकोर्ट में कोर्ट नहीं चली थी. प्रधान पीठ में दो न्यायाधीशों की कुल 20 खंडपीठ और एकल न्यायाधीश वाली कुल 39 एकल पीठों ने काम किया था. इसके बाद पहली बार ऐसा हुआ था 160 न्यायिक पदों वाले हाई कोर्ट में 109 न्यायधीश अपनी सेवा दे रहे थे.


इलाहबाद हाई कोर्ट में पेंडिंग मुकदमों का यह है आंकड़ा
इलाहबाद हाई कोर्ट के दोनों बेंचों में 10 लाख 31 हजार 590 मुकदमे पेंडिंग हैं. इन मुकदमों में से इलाहाबाद कोर्ट के अधीन 8 लाख 3 हजार 516 मुकदमें जबकि लखनऊ बेंच के सामने 2 लाख 28 हजार 74 मुकदमें पेंडिंग हैं. यह आंकड़े 1 जनवरी 2022 तक के हैं. पेंडिंग मुकदमों पर बात करते हुए एक रिटायर्ड जज ने बताया कि, "इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा 10 से लेकर 30 साल तक के पुराने मुकदमे पेंडिंग हैं. इन्हें कोई भी जज नहीं छूना चाहता. जब तक हर जज को हफ्ते में पांच से 10 मुकदमे पुराने नहीं एलॉट होंगे तब तक पुराने मुकदमे कभी नहीं खत्म होंगे."


आंकड़ों पर गौर करें तो पांच से 10 साल पुराने मुकदमों की संख्या कुल पेंडिंग मुकदमों में 22 फ़ीसदी है और 10 से 20 साल पुराने मुकदमों की संख्या सबसे ज्यादा 26 फ़ीसदी है. यहां 30 साल से पुराने पेंडिंग मुकदमों पर बात करें तो 6.64 फ़ीसदी यानि 27 हजार से अधिक सिविल मुकदमें, 15 हजार से अधिक क्रिमिनल लगभग 4.12 फ़ीसदी मुकदमें पेंडिंग हैं. 


यहां न्यायधीशों ने एक दिन में निपटाए पांच सौ से सात सौ मुकदमे
इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई ऐसे भी न्यायधीश रहे रहे हैं, जिन्होंने एक दिन में पांच सौ से सात सौ मुकदमे निपटाने का कीर्तिमान बनाया है. इनमें प्रमुख रूप से जस्टिस बीके नारायण, जस्टिस शशिकांत गुप्ता, जस्टिस रवींद्र, जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस अरुण टंडन, जस्टिस बीके शुक्ला, जस्टिस तरुण अग्रवाल शामिल रहे हैं. यह सभी न्यायधीश रिटायर हो चुके हैं.


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