प्रयागराज, एबीपी गंगा। लोकसभा चुनाव के छवें चरण में 12 मई को यूपी की वीवीआईपी सीट मानी जानी वाली इलाहाबाद सीट पर मतदान है। इस बार इलाहाबाद संसदीय सीट पर 2019 का मुकाबला काफी दिलचस्प होता दिख रहा है। जहां कुंभ मेले में आकर्षण का केंद्र रहे किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां (चिरपी भवानी) इन चुनावों में भी चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। दरअसल, आम आदमी पार्टी ने भावनी मां पर दांव चलते हुए उन्हें इलाहाबाद के चुनावी दंगल में उतारा है। 2014 में आम आदमी पार्टी की लगभग हर जगह जमानत जब्त हो गई थी, ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि भवानी मां आप की नईया पार लगा पाएंगी या नहीं? उधर, बीजेपी ने रीता बहुगुणा जोशी और कांग्रेस ने योगेश शुक्ला को मैदान में उतारा है। सबसे पहले जान लेते हैं, आखिर कौन है मां चिरपी भवानी जिस पर आप ने दांव चला है।


कौन हैं मां चिरपी भवानी?


किन्नर अखाड़े का नेतृत्व आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी कर रही हैं। इसी अखाड़ें की दूसरी प्रमुख हैं महामंडलेश्वर चिपरी भवानी या कहें भवानी मां। भवानी मां अकेली ऐसी हिंदू साध्वी हैं, जिन्हें हाजी का भी पद मिला है।


13 साल की उम्र में किन्नर समाज से जुड़ीं


चिरपी भवानी के घरवालों को 2005 में ये पता चला कि वो एक किन्नर हैं। इस खुलासे ने उनकी पूरी जिंदगी बदलकर रख दी। परिवारवालों ने भवानी से कटने लगें, उन्हें बेइज्जती से महसूस होने ली। स्कूल से भी उन्हें निकाल दिया गया। समाज से मिले तिरस्कार के बाद महज 13 साल की उम्र में चिरपी भवानी ने अपना घर छोड़ दिया और किन्नर समाज से जुड़ गईं। भवानी के मां का नाम राजवती और पिता का नाम चंद्रपाल है। मां-पिता को छोड़ने के बाद उन्होंने दोबारा परिवार की तरफ पलटकर नहीं देखा।



इस्लाम धर्म अपनाया, हज भी किया


चिरपी भवानी की 2007 में किन्नर गुरु हाजी नूरी से मुलाकात हुई। इस मुलाकात के बाद उनकी जीवन में एक नया अध्याय जुड़ गया। 2010 में इस्लाम से प्रभावित होकर उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। इसके बाद 2011 में हज भी किया। चिरती भवानी बताती हैं कि उन्होंने अपनी गुरु के कहने पर इस्लाम धर्म अपनाया, ताकि वे किन्नर समाज का हिस्सा बन सकें।


ट्रांसजेंडर बिल 2014 को लेकर लड़ी लंबी लड़ाई


किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर के अलावा भवानी वर्तमान में दिल्ली इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की जूरी मेंबर भी हैं। इसके अलावा ट्रांसजेंडर बिल 2014 को लेकर भवानी ने लंबी जंग लड़ी है। इसी संघर्ष के दौरान उनकी मुलाकात किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से हुई। लक्ष्मी भी उन दिनों ट्रांसजेंडर बिल को लेकर आंदोलन कर रही थीं।


2014 में थर्ड जेंडर में जुड़वाया नाम


ट्रांसजेंडर बिल को लेकर किन्नरों के आंदोलन कामयाब रहा। सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर को पहचान दे, किन्नरों को नई पहचान दी। 2014 में भवानी ने अपना नाम थर्ड जेंडर से जुड़वाया। इसके बाद भवानी के जीवन का एक और नया अध्याय शुरू हुआ।


2015 में उज्जैन कुंभ में हुईं शामिल


एक साल बाद 2015 में उज्जैन कुंभ से पहले किन्नर अखाड़े की नींव रखी थी। लेकिन उनकी ये राह इतनी आसान नहीं थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14वें अखाड़े के रूप में दर्जा देने से इनकार कर दिया। इस कारण अखाड़े को शाही स्नान में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाया।



उज्जैन कुंभ में हुईं शामिल


भवानी 2015 में उज्जैन कुंभ में किन्नर अखाड़े में शामिल हुईं। उज्जैन कुंभ से पहले किन्नर अखाड़े की नींव रखी गई थी। हालांकि ये राह आसान नहीं थी। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने किन्नर अखाड़े को 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता देने से इन्कार कर दिया। हालांकि 2019 प्रयागराज कुंभ में किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़े में अपने में सम्मिलित कर लिया था। बता दें कि उज्जैन कुंभ के दौरान उन्होंने दोबारा सनातन धर्म अपनाया। 2019 में प्रयागराज में हुई कुंभ में उन्हें महामंडलेश्वर का उपाधि दी गई।


बीजेपी ने रीता बहुगुणा जोशी पर चला दांव



उधर, भाजपा ने इलाहाबाद की मेयर रह चुकीं और वर्तमान में प्रदेश सरकार में मंत्री डॉ. रीता जोशी पर अपना दांव चला है। वे अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की सीट से अपना भाग्य आजमाएंगी।


उधर, कांग्रेस ने रीता बहुगुणा को टक्कर देने के लिए योगेश शुक्ला को मैदान में उतारा है। इलाहाबाद के लिए रीता बहुगुणा और योगेश शुक्ला कोई नए चेहरे नहीं है। हालांकि इस बार दोनों के दल अलग-अलग हैं। जहां रीता बीजेपी और योगेश कांग्रेस के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं। बता दें कि योगेश शुक्ला कभी बीजेपी का हिस्सा थे। वे बीजेपी के कई पदों की जिम्मेदारी निभा चुके हैं। 2009 में बीजेपी के टिकट से इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। हालांकि टिकट न मिलने से नाराज थे। जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया।