प्रयागराज: इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने मौजूदा सत्र में अपने पाठ्यक्रमों में 30 फ़ीसदी तक की कटौती किए जाने का फैसला किया है. यूनिवर्सिटी के ज्यादातर विभाग अपने पाठ्यक्रमों में दस से लेकर 30 फ़ीसदी तक की कटौती कर रहे हैं. कोर्स में कटौती का यह फैसला कोरोना की महामारी के चलते लिया गया है. यूनिवर्सिटी ने इसके लिए यूजीसी से परमिशन भी ले ली है. कोरोना की वजह से इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में ऑफलाइन क्लासेस अभी तक शुरू नहीं हो सकी हैं. ऑनलाइन क्लास करने में तमाम छात्रों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यूनिवर्सिटी ने इसी वजह से पाठ्यक्रमों में कटौती करने का फैसला किया है. पाठ्यक्रम में कितनी कटौती होगी इसका फैसला खुद विभाग के टीचर्स करेंगे.


पाठ्यक्रम कम करने के पीछे दलील यह दी गई है कि यह फैसला स्टूडेंट्स को हो रही दिक्कतों के मद्देनजर किया गया है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि इस फैसले से छात्रों को फायदा होगा या नुकसान. निश्चित तौर पर कोर्स कम होने से छात्रों को इस बार इम्तिहान देने में सहूलियत होगी, लेकिन आगे की पढ़ाई या कैरियर बनाने में छूटे हुए पाठ्यक्रम उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. यही वजह है कि पाठ्यक्रम कम किए जाने के फैसले पर स्टूडेंट्स ने मिली जुली प्रतिक्रिया जताई है. कुछ छात्र जहां इस फैसले से खुश हैं तो वहीं कुछ यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्हें जो पाठ्यक्रम पढ़ने को नहीं मिलेगा, उसकी भरपाई भविष्य में किस तरह से होगी.


इन विभागों ने कोई भी कटौती नहीं करने की बात कही


दरअसल, कोरोना की महामारी के मद्देनजर यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी यूजीसी ने देश की सभी यूनिवर्सिटीज़ को यह अधिकार दिया था कि वह जरूरत के मुताबिक अपने यहां के पाठ्यक्रमों में कटौती कर सकते हैं. इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने इस बारे में यूजीसी से मंजूरी लेकर यह अधिकार अपने सभी डिपार्टमेंट्स को दे दिए. इसके तहत अब तक हिंदी- अंग्रेजी- भूगोल-डिफेंस स्टडीज और फिजिक्स समेत कई डिपार्टमेंट ने पूरे 30 फ़ीसदी की कटौती का एलान कर दिया है. इसके अलावा कई दूसरे डिपार्टमेंट ने दस-पन्द्रह या बीस फ़ीसदी तक की ही कटौती किए जाने का फैसला किया है.


शिक्षाशास्त्र समेत कुछ विभागों ने कोई भी कटौती नहीं करने की बात कही है. यूनिवर्सिटी की पीआरओ डॉ. जया कपूर के मुताबिक विभाग अपने स्टूडेंट व टीचर्स से बात कर इस बारे में खुद ही फैसला लेंगे. उनके मुताबिक कोरोना की वजह से दिक्कत हो रही थी, इसलिए ऐसा फैसला लेना पड़ा है. विभागों को यह हिदायत जरूर दी गई है कि वह पाठ्यक्रम में कटौती कुछ इस तरह से करें कि क्वालिटी और छात्रों की पढ़ाई पर कोई खास असर ना पड़े. सिर्फ ऐसे ही लेसन हटाए जाएं जो बहुत ज्यादा जरूरी ना हों और इस बारे में विशेषज्ञों व अन्य लोगों से राय भी ली जाए.


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