देहरादून: इतिहास के पन्ने पलटने के शौकीन जानते हैं कि शौहरत कैसे आती जाती रहती है. अभी गैरसैण को कमिश्नरी बनाने के फैसले को ही लीजिए. अतीत में अल्मोड़ा का एक गौरवशाली इतिहास रहा है. 18वीं सदी में जिला बना और ब्रिटिशकाल में कमिश्नरी रहा और अपने भूभाग से कुमाऊं के तकरीबन सभी जिले भी दिए. ये जलवा रहा है अल्मोड़ा का. लेकिन आज वक्त बदल गया है, जिस अल्मोड़ा जिले से कुमाऊं के सभी जिलों का उदय हुआ हो आज वही अल्मोड़ा जिला खुद से डेढ़ सौ साल बाद जन्मे चमोली जिले में नवगठित कमिश्नरी गैरसैण के अधीन हो गया है. चीन के साथ तनाव के चलते 24 फरवरी 1960 को एक ही दिन पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों को गठन किया था.


कुमाऊं की आत्मा है अल्मोड़ा
आज अल्मोड़ा को कुमाऊं से हटाकर गैरसैण नाम से गठित नई कमिश्नरी में शामिल किए जाने को लेकर कांग्रेस ने विरोध किया. कांग्रेस का कहना है कि अल्मोड़ा कुमाऊं की आत्मा है, इसे अलग नहीं किया जा सकता और फिर अल्मोड़ा का अपना राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व है. कुमाऊं के सभी जिले पहले अल्मोड़ा का हिस्सा रहे हैं. अंग्रेजों के समय में कमिश्नरी रहे अल्मोड़ा को इसीलिए ज्यादातर लोग कुमाऊं की आत्मा कहते हैं. अल्मोड़ा के लोग नहीं चाहते हैं कि ये रुतबा कम हो लेकिन राजनीतिक फैसले होते रहते हैं.


उठने लगी गैरसैण को जिला बनाने की मांग
गैरसैण को कमिश्नरी बनाए जाने के बाद अब जिला बनाने की मांग उठने लगी है. गैरसैण को कमिश्नरी बनाने पर हरीश रावत ने कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि गैरसैण को कमिश्नरी घोषित किया है. मैं बधाई देता, यदि गैरसैंण को जिला भी घोषित कर देते, एक प्रशासनिक कन्फ्यूजन मुख्यमंत्री की घोषणा से पैदा हुआ है, इसको दूर करिए और साथ-साथ कुछ उन कमिश्नरियों के विषय में भी सोचिए जिसमें पौड़ी की कमिश्नरी सम्मिलित हैं. कुछ पौड़ी में भी ऐसा करिए ताकि पौड़ी जो हमारे राज्य आंदोलन की जन्मस्थली है, लगे कि उत्तराखंड उसका भी ख्याल कर रहा है.


नई गैरसैण कमिश्नरी, क्या होगा प्रशासनिक सिस्टम
गैरसैण अभी तहसील है, वहां पर एसडीएम के बाद सीधा कमिश्नर होगा. क्योंकि, ये पहली कमिश्नरी है जो जिला मुख्यालय पर नहीं है. जिस जिले में ये कमिश्नरी है उस जिले का मुख्यालय तकरीबन 70 किमी दूर गोपेश्वर में है. दरअसल, कमिश्नरी का ये नया कांसेप्ट है जिसे बगैर जिले के बनाया गया है. अन्यथा अभी तक किसी जिले को ही कमिश्नरी गठित किया जाता रहा है. इस कमिश्नरी के कमिश्नर को यदि अपने जिले चमोली के जिला प्रशासन के साथ बैठक करनी है तो काफी दूर जाना पड़ेगा या बुलाना पड़ेगा.


ये बड़े अफसर बैठेंगे कमिश्नरी मुख्यालय गैरसैण में
कमिश्नर (एक ऐसा आईएएस जो सचिव रैंक में कार्यरत हो)
पुलिस उप महानिरीक्षक (एक ऐसा आईपीएस डीआईजी रैंक में कार्यरत हो)
मुख्य वन संरक्षक (एक ऐसा आईएफएस जो मुख्य वन संरक्षक रैंक में कार्यरत हो)
उपरोक्त के अलावा दर्जन भर से ज्यादा अन्य विभागीय मंडलीय अफसर


नौकरशाही में चर्चा
गैरसैण को कमिश्नरी बनाने के बाद नौकरशाही में अजीब सन्नाटा पसरा है. कुछ नौकरशाह तो यहां तक कह रहे हैं कि अब उत्तराखंड में अधिकृत रूप से पनिशमेंट पोस्ट क्रिएट हो गई है, गैरसैण कमिश्नर के रूप में. चर्चा यही हो रही है आखिर इस पद पर किसकी नियुक्ति होगी. यही हाल भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अफसरों का है.


कौन बन सकता है कमिश्नर
वैसे तो कमिश्नर बनने के लिए सचिव होना जरूरी है लेकिन उत्तराखंड में नई परिपाटी जन्म ले चुकी है और प्रभारी सचिव भी कमिश्नर बन रहे हैं. यदि हम आईएएस की ग्रेडेशन लिस्ट के हिसाब से सचिवों की बात करते है तो सचिवों में अमित नेगी, आर मीनाक्षी सुंदरम, नितेश कुमार झा, राधिका झा, शैलेश बगोली, डी सेंथिल पांडियन वरिष्ठ सचिवों में हैं और सरकार इनमें से किसी को बना सकती है. लेकिन, इनकी सम्भावना कम लगती है. क्योंकि, ये सभी प्रभावशाली अफसरों में गिने जाते हैं. इसके बाद नंबर आता है सौजन्य, दिलीप जावलकर, सचिन कुर्वे का. इनमें से भी कोई हो सकता है. इसके बाद पंकज पांडेय, रंजीत सिन्हा, एसए मुरुगेशन, विनोद रतूड़ी, सुशील कुमार, हरीश चंद्र सेमवाल, चंद्रेश कुमार, बृजेश संत और भूपाल सिंह मंडल को भी भेजा जा सकता है. या फिलहाल दोनों मंडल के आयुक्तों में से किसी को जिम्मेदारी दी जा सकती है.


कौन बनेगा डीआईजी
सबसे वरिष्ठ डीआईजी 2004 बैच के केवल खुराना है, वो जनवरी 2021 में आईजी पद पर पदोन्नत हो जाएंगे. इसके बाद 2005 बैच में नीरू गर्ग तो पहले ही डीआईजी रेंज हैं इसके अलावा नीलेश भरणे, रिद्धिम अग्रवाल, मुख़्तार मोहसिन, कृष्ण कुमार वीके के अलावा 2006 बैच में अरुण मोहन जोशी, राजीव स्वरूप भी डीआईजी गैरसैण हो सकते हैं. कुछ अफसर बाहर प्रतिनियुक्ति पर हैं. इसके अलावा जिसकी ज्यादा सम्भावना है, कोई ऐसा प्रमोटी आईपीएस जो डीआईजी रैंक में हो उसको गैरसैण पुलिस रेंज की जिम्मेदारी दी जा सकती है.


कुछ सवाल भी हैं
गढ़वाल कमिश्नरी का मुख्यालय पौड़ी है. कायदे से कमिश्नर, डीआईजी, मुख्य वन संरक्षक के अलावा सभी मंडलीय अफसरों को पौड़ी बैठना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कई बार अफसरों को पहाड़ चढाने का एलान सरकारें करती रही हैं लेकिन ये सभी एलान हवा हवाई साबित हुए. सवाल यही है जब अफसर पौड़ी नहीं गए तो उससे सैकड़ों किलोमीटर आगे गैरसैण कैसे जाएंगे? और जाएंगे तो बहानेबाजी करके देहरादून में टहलते रहेंगे.


ये भी पढ़ें:



कृषि कानूनों के विरोध में किसान ने 10 बीघा गेहूं की फसल को किया नष्ट, बोले- खा लेंगे जहर