वाराणसी, एबीपी गंगा। वाराणसी में एक बार फिर से गंगा में अमेरिकन मछली के दोबारा मिलने से दहशत व्याप्त है. अमेरिकन कैटफिश दोबारा मिली है. इस बार कैटफिश रामनगर परिक्षेत्र में मिली है. जिसके बाद अब बीएचयू जंतु विज्ञान विभाग इसके शोध में जुट गया है.
अमेरिकन मछली कैट फिश आकार भले ही सामान्य लेकिन प्रजाति बेहद आक्रामक है. गंगा के जल में मिलने वाली कैटफिश जो हाइपो स्टोमस और प्लेकोस्टोमस प्रजाति की हैस मांसाहारी मछली होती है. बीएचयू जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर बेचन लाल की मानें तो गंगा में लगातार इन मछलियों का मिलना अच्छे संकेत नहीं हैं. अगर इन मछलियों की ब्रीडिंग हो गई होगी तो आने वाले दिनों में गंगा का जलीय वातावरण प्रभावित हो सकता है. इनकी मानें तो कैटफिश की ब्रीडिंग आम तौर पर मार्च-अप्रैल में होती है लेकिन गंगा में लगातार इसका मिलना अच्छे संकेत नहीं है. फिलहाल इस पर शोध जारी है और अभी प्रथम दृष्टया ये ऐक्वेरियम से डाली गई मछली बताई जा रही है.
अन्य प्रजातियों पर मंडरा रहा खतरा
काशी की गंगा में आम आमतौर पर रोहू, पियासी, टेंगरा मछली सहित अन्य प्रजातियां मिलती हैं. अगर इन मछलियों के बीच अमेरिकन कैट फिश आ जाये तो ये अच्छे संकेत नहीं हैं. बीएचयू आईआईटी प्रोफेसर एवं गंगा के शोधकर्ता प्रोफेसर पी के मिश्र की मानें तो ये मछली गंगा की मछलियों के लिए खतरा बन सकती है.
पहले भी मिल चुकी थी इसी प्रजाति की मछली
सितंबर माह के प्रारंभ में ही अमेरिकन कैट फिश की गोल्डन प्रजाति पहले भी मिल चुकी है. अब 24 सितम्बर को एक बार फिर से मछुआरों को इसी प्रजाति की मछली मिली. जिससे मछुआरे डरे हुए हैं. गंगा प्रहरी और मछुआरा दर्शन कुमार की मानें तो इस तरह की मछली का लगातार गंगा में मिलना अच्छा संकेत नहीं है.
जारी है शोध
कैटफिश को लेकर बीएचयू जंतु विज्ञान विभाग शोध में जुट गया है. इसकी ब्रीडिंग के साथ अन्य कई तथ्यों पर लगातार शोध जारी है. अब देखना ये होगा कि शोध के नतीजे क्या होते हैं. इतना तो तय है कि अगर गंगा में इस विदेशी मछली जैसी अन्य प्रजातियां मौजूद हैं तो ये अच्छे संकेत नहीं हैं.
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