बस्ती: मखौड़ा धाम पहुंचीं अमित शाह की पत्नी, रामजानकी मंदिर में की दर्शन-पूजन
Sonal Shah Visit Basti: केंद्रीय गृह मंत्री की पत्नी के आगमन की जानकारी होते ही उनके आवभगत में स्थानीय विधायक और योगी सरकार के मंत्री मौजूद रहे. सोनल शाह ने मंदिर की पौराणिकता के बारे में भी जाना.
Amit Shah Wife Visit Basti: केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह की पत्नी सोनल शाह आज बस्ती जनपद पहुंची. सोनल शाह ने भगवान राम की उद्भव स्थली पौराणिक मंदिर मखौड़ा धाम पहुंचकर दर्शन और पूजा अर्चना किया. इस दौरान सोनल शाह ने मंदिर के पुजारी सुरजदास से मंदिर की पौराणिकता के बारे जाना. केंद्रीय गृह मंत्री की पत्नी के आगमन की जानकारी होते ही उनके आवभगत में स्थानीय विधायक और योगी सरकार के मंत्री पूरी तन्मयता से लगे रहे.
विधायक अजय सिंह ने बताया कि गृह मंत्री की धर्मपत्नी मखौड़ा मंदिर के बारे में सुनकर आज वहा दर्शन करने पहुंची. मंदिर का इतिहास जानकर उन्हें भी काफी आश्चर्य हुआ कि भगवान राम की उद्भव स्थली होने के बावजूद आज बहुत कम लोग इस मंदिर के बारे में जानते हैं. मंदिर में दर्शन करने के बाद सोनल शाह दिल्ली के लिए फिर वापस निकल गईं. इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के तौर पर स्थानीय पुलिस काफी चक चौबंद रही. सोनल शाह ने भगवान राम के दर्शन किए और इस मंदिर के बगल से बह रही पौराणिक नदी मनोरमा के जल से आचमन भी किया.
मखौड़ा मंदिर का पौराणिक इतिहास
बस्ती जिले का मखक्षेत्र यानी मखौड़ा धाम गौरवशाली स्थलों में प्रमुख है. यह ऋषियों की भूमि है. त्रेता युग में ऋषियों ने इस स्थान को यज्ञ और धात्मिक अनुष्ठान के लिए सर्वोत्तम भूमि में चुना था. ऐसा तब हुआ जब कौशल नरेश महाराज दशरथ को उम्र के चौथेपन तक संतान उत्पत्ति नहीं हुई तो समूचे राजपरिवार के साथ राजगुरु और ऋषि, मुनियों के साथ प्रजा भी चिंतित रहने लगी. जब कौशल नरेश ने यह चिंता कुलगुरु वशिष्ठ को बताई तो उनकी तरफ से उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ संपन्न कराने की सलाह दी गई. उस समय ऋषियों द्वारा किए जा रहे याज्ञिक अनुष्ठान, तपस्या, साधना में दानवों द्वारा खलल डालने का कार्य किया जाता था. जब त्रेता युग में देश की सीमा मंगोलिया तक फैली थी.
ऋषियों ने इस विशेष यज्ञ के लिए पावन भूमि की खोज शुरू की, जो मखक्षेत्र में आकर समाप्त हुई. कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ और विश्वामित्र द्वारा इसे अनुष्ठान के लिए सर्वोत्तम भूमि शोधन करने के बाद बताए जाने पर यज्ञ की तैयारी शुरू हुई. अब दूसरी बड़ी समस्या पवित्र जल जिसके आचमन से यज्ञ संपन्न हो उसकी आई, जिस पर गुरु वशिष्ठ ने महाराज दशरथ को सलाह दी कि इस समय यज्ञ भूमि के सन्निकट अब गोंडा जनपद स्थित जंगल में तिर्रे तालाब पर महर्षि उद्दालक जी तपस्या रत है. आप उनकी शरण में जाएं तो निदान अवश्य होगा.
कोशल नरेश के अनुनय- विनय पर प्रसन्न होकर ऋषि ने तालाब से अपनी तर्जनी उंगली से एक रेखा खींची, जिसे मनोरामा नदी के रूप में मान्यता मिली. इसी कारण इसे गंगा की सातवीं धारा ओर उद्दालिकी गंगा नाम से पुराणों में स्थान मिला. यहां पर यज्ञ संपन्न होने के बाद प्राप्त हव्य यानी प्रसाद को तीनों रानियों को समान भाग में सेवन के लिए बांटा गया, जिसमें से एक तिहाई हव्य का अंश महारानी कौशल्या, कैकई ने अपने से छोटी रानी सुमित्रा को छोटी बहन के रूप में दिया. जिसके फलस्वरूप महारानी कौशल्या से राम और कैकई से भरत और हव्य का ज्यादा हिस्सा सेवन करने से सुमित्रा को लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ. आज लोग पुत्र की कामना लेकर अनुष्ठान करने यहां देश के कोने- कोने से आते हैं.
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