नई दिल्ली, एबीपी गंगा। 2019 में मिली प्रचंड जीत ने भाजपा के इतिहास को बदल दिया। नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी वो प्रधानमंत्री बने जिन्होंने पहली सरकार चलाने के बाद दोबारा न केवल सत्ता में वापसी की बल्कि पहले से ज्यादा बहुमत हासिल किया। जाहिर है किसी भी सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती होती है कि वो अपने काम को आत्मविश्वास के साथ भुना पाए। लेकिन संगठन मजबूत हो तो ये मुमकिन कैसे होता है इसे अमित शाह से बेहतर भला कौन समझ सकता है। एक पॉजिटिव चेंज के साथ संगठन को कैसे खड़ा किया जाता है, उसमें कैसे बदलाव किए जाते हैं और जमीन पर वो कैसे काम करता है अमित शाह इसी मैनेजमेंट के लिए जाने जाते हैं।



बारीकी से अध्ययन करते हैं अमित शाह


अमित शाह हर चीज का अध्ययन बड़ी बारीकी के साथ करते हैं। न सिर्फ चुनौतियों समझते हैं बल्कि उसका हल भी निकालते हैं। अमित शाह ने एक बार हिंदुस्तान की कालजयी शख्सियत चाणक्य को लेकर कहा था कि किसी का मूल्यांकन उस दौर की चुनौतियों को नजरअंदाज कर नहीं किया जा सकता है। और बात अगर आज की करें तो भविष्य पलट कर इतिहास में अमित शाह का मूल्यांकन  जरूर करेगा। ये वही वक्त होगा जब चुनौतियों को नजरअंदाज कर पाना मुमकिन नहीं होगा। आखिर इन्ही चुनौतियों से पार पाकर ही तो अमित शाह ने न केवल बीजेपी को सत्ता के शीर्ष पर बिठाया बल्कि संगठन को दुनिया में सबसे बड़ा बना दिया।



डटकर किया चुनौतियों का सामना


इतिहास इस बात का भी आंकलन करेगा कि अमित शाह ने चुनौतियों के सामने हार नहीं मानी और उनका डटकर सामना किया। पीएम मोदी के लिए जीत का रास्ता बनाते हुए शाह कड़ी मेहनत की और हर परेशानी को सूझ-बूझ के साथ किनारे कर दिया। वैसे एक आंकलन को लेकर खुद अमित शाह कहते हैं कि 'गुजरात के नारनपुर में एक बूथ से भाजपा कार्यकर्ता किस तरह आगे बढ़ा और वरिष्ठ नेताओं से गुण और खासियत सीखी, जबकि जिदगी इम्तेहान लेती रही...लेकिन अपनी अगुवाई....संगठन प्रणाली को धीरे-धीरे न केवल कबूल किया गया...बल्कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया...ऐसा केवल भारतीय जनता पार्टी कर सकती है...व्यक्ति आधारित और सिद्धांत आधारित दलों में यही फर्क है।'


पार्टी में किए बड़े बदलाव


बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने चुनौतियों को बाहर से ज्यादा पार्टी के भीतर महसूस किया। तभी तो पार्टी की कमान जब उन्हें सौंपी गई तो उन्होंने सबसे पहले पार्टी के तौर तरीकों में बदलाव की बड़ी पहल की। शाह ने बुनियादी दर्शन और आधुनिक प्रयोगों को अपनाकर पार्टी का जो नया रूप खड़ा किया उसने बीजेपी की लोकप्रियता के ग्राफ को लगातार ऊंचा किया है। इतना ही नहीं मुद्दों को लेकर साफगोई से जिस तरह मीडिया और सोशल मीडिया में बीजेपी ने राय रखी वो कहीं न कहीं देश के दिल में उतरती चली गई। पार्टियों के भीतर पनपती वंश परंपरा की सियासत, जातिवादी संस्कृति और तुष्टीकरण की काट के तौर पर जिस राष्ट्रवाद को तवज्जो दी गई उसने बीजेपी की सियासत को स्पष्ट किया तो देश की विचारधारा में बड़ा बदलाव भी आया।



कामयाब रहा सदस्यता अभियान


दरअसल, अमित शाह ने पहला प्रयोग पार्टी में संगठनात्मक बदलाव के साथ शुरू किया। इसके लिए सबसे पहला प्रयास पार्टी की सदस्यता अभियान के जरिए लोगों को जोड़ा। नतीजा ये रहा कि चंद महीनों के भीतर 11 करोड़ सदस्यों के साथ बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। शाह ने प्रकोष्ठों को खत्म करके उनकी जगह विभाग और प्रकल्पों पर जोर दिया। इन प्रकल्पों और विभागों के जरिए सरकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाने और पार्टी के सिद्धांतों पर संगठन को मजबूत करने की पहल थी।


इस काम में माहिर हैं अमित शाह


अमित शाह के काम को लेकर जितनी बात की जाए वो कम है लिए सबसे खास बात ये है कि शाह जिस काम में सबसे ज्यादा माहिर समझे जाते हैं वो है बूथ मैनेजमेंट। शाह के करीबियों का मानना है कि वो बूथ को लेकर सबसे ज्यादा फिक्रमंद रहते आए हैं और उन्हें यकीन है कि चुनाव की इस सबसे निचली ईकाई को जिसने जीत लिया वो सीट पर जीत गया। यही वजह है कि उन्हें जब-जब चुनाव का जिम्मा दिया गया तो उन्होंने बूथ पर सबसे ज्यादा काम किया। अपने इसी बूथ मैनेजमेंट की बदौलत अमित शाह ने देश के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी के प्रत्याशियों की जीत का अंतर बढ़ा दिया और आज नतीजे हम सबके सामने हैं।