ये तो आप जानते ही हैं ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन ने एक साथ पहले निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म ‘कभी कभी’ में काम किया। बाद में दोनों नसीब, कुली और अजूबा जैसी फिल्मों में भी साथ दिखे। फिल्म ‘खुदा गवाह’ ‘अमर अकबर एंथनी’ के बीच में ही बननी शुरू हुई थी।



मनमोहन देसाई ने अपनी फिल्म ‘खुदा गवाह’ में अमिताभ बच्चन का डबल रोल रखा था और फिल्म में उनके साथ थे ऋषि कपूर और परवीन बाबी। फिल्म की शूटिंग भी कुछ दिनों चली लेकिन देसाई को मामला कुछ जमता दिखा नहीं तो उन्होंने ये फिल्म बीच में ही रोक दी। फिर उसके बाद मनमोहन देसाई के बेटे केतन देसाई ने अपनी डेब्यू फिल्म में इस्तेमाल किया। इस फिल्म का नाम था ‘अल्ला रखा’ और फिल्म के हीरो थे, जैकी श्रॉफ।



फिल्म ‘खुदा गवाह’ जब दोबारा बननी शुरू हुई तो इसके निर्माता, निर्देशक सब बदल गए। बस बाकी रहे तो सुपरस्टार अमिताभ बच्चन। तब फिल्म का नाम था, कैदी नंबर 786 और फिर अमिताभ बच्चन और मुकुल आनंद ने एक साथ तीन फिल्में बनाने की योजना बनाई थी। तय ये हुआ था कि पहले ‘अग्निपथ’ बनेगी, फिर हम पर काम शुरू होगा और उसके बाद बनेगी ‘कैदी नंबर 786’ बीच में फिल्म का नाम कुछ दिनों के लिए बादशाह खान भी पड़ा लेकिन आखिर में फिल्म बनी और रिलीज हुई ‘खुदा गवाह’ के नाम से।



फिल्म में अमिताभ बच्चन, श्रीदेवी के अलावा डैनी, नागार्जुन और शिल्पा शिरोडकर की अहम भूमिकाएं हैं। नागार्जुन की एंट्री फिल्म में कैसे हुई, इसकी भी कई कहानियां हैं। लेकिन, पहले आपको बताते हैं वो एहसास जो अमिताभ बच्चन को इस फिल्म की शूटिंग करते हुए। सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान के हालात पर अपने एक लेख में खुद अमिताभ बच्चन लिखते हैं, 'सोवियत के लोग देश छोड़कर जा चुके थे और सत्ता आ चुकी थी नजीबुल्ला अहमदजई के हाथों जो खुद लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के बड़े वाले प्रशंसक थे। वह मुझसे मिलना चाहते थे और हमारा आदर सत्कार बिल्कुल शाही अंदाज में हुआ। हमारा मजार ए शरीफ में वीवीआईपी स्वागत हुआ और हमने उस बेहद खूबसूरत देश को एयरफोर्स के जहाजों के साये में करीब करीब पूरा मथ डाला था। हमें कहा गया कि हम होटल में नहीं रुकेंगे। हमारे लिए किसी ने अपना पूरा महल खाली कर दिया और जब तक हम रहे वह पास में ही किसी दूसरे घर में रहता रहा।



अफगानिस्तान की कुछ लोकेशंस ऐसी भी थी जहां सिर्फ घोड़ों के जरिए पहुंचा जा सकता था और तब अमिताभ बच्चन और उनके काफिले को छोटे छोटे हवाई जहाजों से नेपाल की सीमा तक पहुंचाया जाता और वहां से पूरी यूनिट घोड़ों की पीठ पर लोकेशन तक पहुंचती। कुछ रातें अमिताभ बच्चन ने लोकेशन पर ही मिट्टी के बने ऐसे घरों में बिताईं, जहां वो खड़े हो जाएं तो सिर छत से टकरा जाता था। ऐसे भी मौके आए जब पूरी यूनिट पानी के सिर्फ एक नलके से काम चलाती थी और सारा दिशा मैदान सब खुले में ही जाना होता था। फिल्म ‘खुदा गवाह’ एक बहुत मेहनत से बनाई गई फिल्म है और मुकुल आनंद ने इसके लिए अपने जीवन के कई साल लगा दिए। फिल्म में श्रीदेवी और अमिताभ बच्चन की कमाल की अदाकारी थी।




फिल्म का एक बड़ा सा सेट मुंबई में भी लगा। राजेश खन्ना ने इसी सेट को अपनी एक फिल्म में इस्तेमाल करने के लिए अमिताभ बच्चन से बात भी कर ली थी, लेकिन राजेश खन्ना की ये फिल्म ही नहीं बन पाई। फिल्म खुदा गवाह को इसके निर्माताओं ने एक करोड़ रुपये प्रति वितरण क्षेत्र के हिसाब से बेचा था। फिल्म की ओपनिंग साल 1992 की सबसे बड़ी ओपनिंग रही थी लेकिन इतवार के बाद फिल्म का कलेक्शन गिरना शुरू हो गया।