नई दिल्ली, एबीपी गंगा। नरेंद्र मोदी की जीत भारतीय राजनीति के इतिहास का वो अध्याय है जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। इस अभूतपूर्व जीत के महानायक हैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी। वहीं, जीत की रणनीति तैयार करने वाले चाणक्य हैं खुद अमित शाह। राजनीति के बड़े दिग्गज भी शाह के चुनावी प्रबंधन का लोहा मान चुके हैं। आखिर शाह की इस कौशल के पीछे की कहानी क्या है और वह इसके महारथी कैसे बने। हम आपको बताते हैं सियासत की इस जोड़ी की कैमिस्ट्री की वो कहानी जिसे आप जरूर पढ़ना चाहेंगे। यही नहीं हम आपको यह भी बतायेंगे कि कब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मुलाकात हुई। कैसे अमित शाह मोदी के विश्वासपात्र हो गये। पार्टी संगठन से मोदी कैबिनेट में गृह मंत्री का सफर कुछ ऐसा रहा।



अमित शाह की बतौर गृहमंत्री नई इनिंग कैसी होगी, आज अमित शाह की जिंदगी के एक-एक पन्ने खुलेंगे। जो अब तक अनसुने और अनदेखे थे। क्योंकि मोदी के चाणक्य को करीब से समझने के लिए अमित शाह के अतीत से लेकर वर्तमान तक हर पन्ने को टटोलना होगा।



हिंदुस्तान की सियासत की सुपरहिट जोड़ी को साथ में जोड़ने वाले धागे का नाम है राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ। कहा जाता है की नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पहली मुलाकात 1982 में हुई। ये वो दौर था जब नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में संघ के जिला प्रचारक हुआ करते थे और अमित शाह अखिल भारतीय विधार्थी परिषद की गुजरात इकाई के संयुक्त सचिव थे। धीरे-धीरे दोनों की मुलाकात का सिलसिला आगे बढ़ता गया। 1987 में अमित शाह भाजपा की यूथ विंग में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी में। शुरुआती दिनों में ही नरेंद्र मोदी ने अमित शाह की प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें सपोर्ट करने लगे।



शंकर सिंह वाघेला ने शाह से जुड़ा किस्सा सुनाया


ये उस दौर की बात है जब गुजरात भाजपा के अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला हुआ करते थे। वाघेला ने एक इंटरव्यू के दौरान अमित शाह के भाजपा में शामिल होने का पूरा किस्सा सुनाया था। 'मैं अपने पार्टी दफ्तर में बैठा था, मोदी मेरे पास एक लड़के को लेकर आए और कहा ये अमित शाह हैं, कारोबारी और युवा मोर्चा से जुड़े हैं आप इन्हें पार्टी में कुछ काम दे दीजिए'।' ऐसे हुई उनकी एंट्री।


शाह ने पार्टी के जबरदस्त काम किया। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ने के साथ-साथ अमित शाह का कद बढ़ता गया। तब किसे पता था की भाजपा का यही कार्यकर्ता एक दिन भाजपा का सबसे कामयाब राष्ट्रीय अध्यक्ष और सबसे कुशल नेता साबित होगा।



साल 1991 में भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवानी ने गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तब अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से चुनाव का मैनेजमेंट संभालने की गुजारिश की। ये दावा करते हुए कि अगर लाल कृष्ण आडवानी चुनाव प्रचार के लिए नहीं आते हैं तो भी जीत उनकी होगी। अमित शाह की इस बात से नरेंद्र मोदी बहुत प्रभावित हुए और उन्हें चुनाव की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी। चुनाव नतीजे जब आए तो आडवानी भारी वोटों से जीते। यानी अमित शाह ने चुनाव लड़ाने और जीताने का पहली परीक्षा पास कर ली थी। इस तरह अमित शाह मोदी के सबसे भरोसेमंद सेनापति बन गये।



इस तरह बढ़ी मोदी-शाह की करीबी


मोदी और शाह की जोड़ी गुजरात में मशहूर हो गई। तभी गुजरात में केशू भाई मुख्यमंत्री बने और मोदी को संगठन के काम से दिल्ली जाना पड़ा। माना जाता है कि केशूभाई से मतभेद की वजह से मोदी को गुजरात से हटाया गया था। उन दिनों सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा आम थी कि मोदी का गुजरात की राजनीति से काम खत्म हो गया। ये वो दौर था जब गुजरात के ज्यादातर नेताओं ने मोदी से दूरी बना ली थी, लेकिन उस दौरान भी अमित शाह लगातार नरेंद्र मोदी के संपर्क में रहे। जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। कहते हैं कि पार्टी में उनके सियासी कद को घटा दिया गया, बावजूद इसके अमित शाह ने नरेंद्र मोदी से दूरी नहीं बनाई। कुछ सालों तक मोदी गुजरात से बाहर रहे और उन्होंने इस वक्त का बखूबी इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय संगठन को अपनी दक्षता और ताकत का अहसास कराया। जब मोदी की 2001 में वापसी हुई तो 2002 का चुनाव जीतने के बाद से मोदी ने अपने सबसे विश्वसनीय अमित शाह को गृह मंत्रालय का कार्यभार दिया और 2007 के बाद तो वो गुजरात की मोदी सरकार में स्वतंत्र प्रभार के साथ 10 मंत्रालय देखते थे।



अमित शाह की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया जब सियासी साजिश के तहत उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। कानूनी लड़ाई के बाद अमित शाह को सशर्त बेल मिल गई कि उन्हें गुजरात के बाहर रहना होगा। इसे समय का फेर कहें या फिर नियति, एक बार मोदी को गुजरात छोड़ना पड़ा था, ऐसी ही स्थिति अमित शाह के साथ भी आई।


अमित शाह के राजनैतिक करियर खत्म होने की भविष्यवाणी हो चुकी थी। ये वो दौर था जब अमित शाह अंदर तक टूट गए थे। तब मोदी उनके संकट मोचक बने। जानकार बताते हैं कि मोदी की सलाह पर अमित शाह ने दिल्ली में रहने का फैसला किया और इस वक्त का इस्तेमाल उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीतने में किया। ये वही दौर था जब अमित शाह ने देशभर में धर्म यात्राएं की। जब अमित शाह का वनवास खत्म हुआ तो मोदी की तरह ही उन्होंने भी गुजरात में धमाकेदार वापसी की।



डूबते हुये बैंक को मुनाफे में ले आये शाह


अमित शाह महज 36 साल की उम्र में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक के सबसे युवा प्रेसिडेंट बने, जब उन्होंने अहमदाबाद जिला सहकारी बैंकी की कमान संभाली तो बैंक करीब 20 करोड़ के घाटे में था। सामने बड़ी चुनौती थी लेकिन अमित शाह ने बैंक में सुधार के लिये एक प्रस्ताव रखा। उनके प्रपोजल का खूब मज़ाक बनाया गया, लेकिन अपनी सटीक रणनीति और कार्यशैली से महज एक साल के अंदर अमित शाह ने लोन में डूब रहे बैंक के बहीखाते को घाटे से उबारकर मुनाफे में ला दिया। उन्होंने ना केवल 20.28 करोड़ घाटा पूरा किया बल्कि करीब 7 करोड़ का मुनाफा भी हुआ।


शाह की सूझबूझ से कर्ज में डूबा बैंक उनके कार्यकाल में गुजरात का नंबर वन बैंक बना। बहुत कम लोग जानते हैं की गुजरात में पले बढ़े अमित शाह बंगाली भाषा पढ़ना जानते हैं। करीब 5 साल पहले अमित शाह ने बंगाली भाषा की क्लास शुरू की थी। अमित शाह आजतक कोई चुनाव नहीं हारे लेकिन क्या आप जानते हैं कि महज 13 साल की उम्र में अमित शाह ने पहला चुनाव लड़ा था? ये चुनाव क्लास में मॉनिटर बनने का था।



हर बार चुने जाते थे मॉनिटर


बात उन दिनों की है जब शाह सातवीं क्लास में पढ़ते थे। सातवीं कक्षा में मॉनिटर बनाए जाने के लिए उन्हें 50 बच्चों की क्लास में कुल 70 फीसदी बच्चों ने चुना था। अमित शाह के दोस्त याद करते हैं कि शांत लेकिन तेज दिमाग वाले शाह हर बार क्लास के मॉनिटर चुन लिए जाते थे। वो आरबीएलडी हाई स्कूल में पढ़ते थे। अमित शाह ने नवीं क्लास तक की पढ़ाई अपने पैत्रिक कस्बे मानसा के आरबीएलडी हाई स्कूल में की और 1989 में आगे की पढ़ाई के लिए अहमदाबाद आ गए। ये बात 1980 के दशक के शुरुआत की है, राम मंदिर आंदोलन से जुड़े स्वामी वामदेव आरएसएस के एक कार्यक्रम में अहमदाबाद आए हुए थे, जिसका जिम्मा तब अमित शाह संभाल रहे थे। अमित शाह स्वामी वामदेव के दिए गए हिंदू दर्शन के प्रवचन से बहुत प्रभावित हुए, जब तक स्वामी वामदेव अहमदाबाद रहे...अमित शाह उनका सारा काम करते रहे।



कहते हैं कि बातचीत के दौरान वामदेव ने अमित शाह को हिंदू संस्कृति को समझने के लिए और कुंभ मेले में आकर साधू संतों से मिलने का सुझाव दिया। 1986 में स्वामी वामदेव की सलाह को मानते हुए 21 साल के अमित शाह हरिद्वार कुंभ में शामिल हुए। रोज सुबह अमित शाह अलग-अलग संतों के प्रवचन सुनते साधुओं के साथ लंगर करते और स्वामी वामदेव के लिए दक्षिणा जुटाते। यही अमित शाह की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट था, जिसने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। छोटी उम्र में अमित शाह पढ़ने में काफी तेज थे, तो स्कूल में होने वाले नाटकों में भी हिस्सा लेते थे। शाह के बचपन के दोस्तों के साथ ऐसे कई किस्से हैं जो मीडिया में आये हैं।



अमित शाह से ज़ुड़ा एक दिलचस्प किस्सा उन दिनों का है जब उन्होंने एक नाटक में हिस्सा लिया। नाटक का नाम था ‘पापा नो पक्ष पलटो'। नाटक में अमित शाह ने एक अनुभवी पिता का किरदार निभाया था जो अपने 6 बिगड़ैल बच्चों को अच्छी परवरिश देकर सही रास्ते पर लाता है। कहते हैं कि अपने से अधिक उम्र के किरदार को भी शाह ने बखूबी निभाया था। नाटक देखने आए लोगों ने अमित शाह के लिए बहुत तालियां बजाईं। सियासत में अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त करने वाले अमित शाह शतरंज के मझे हुये खिलाड़ी हैं। जब कभी अमित शाह को खाली वक्त मिलता है तो वो शतरंज खेलना नहीं भूलते। वैसे अमित शाह को क्रिकेट भी बेहद पसंद है, अमित शाह के करीबी बतातें हैं कि वो एक अच्छे खिलाड़ी हैं और उनके वर्किंग स्टाईल में भी उनकी ये छवि खूब झलकती है। वे एक खिलाड़ी की तरह ही लक्ष्य तय करते हैं और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी रणनीति बनाकर ताकत झोंकते हैं।



संघ से जुड़ने की कहानी


एक कारोबारी परिवार में जन्में अमित शाह के संघ से जुड़े होने की कहानी भी दिलचस्प है। गुजरात के छोटे से कस्बे मानसा में अमित शाह के दादा और पिता पुश्तैनी कारोबारी थे। यही वजह है कि छोटी सी उम्र में शाह ने फैक्ट्री और शेयर ब्रोकर का भी काम किया लेकिन अमित शाह का मन कारोबार में नहीं लगा वो आरएसएस के एक स्वयं सेवक प्रतिभाई के संपर्क में थे। कहते हैं कि एक वक्त था, प्रतिभाई पटेल अपनी साइकिल पर अमित शाह को ले जाते थे। आरएसएस का पहला पाठ अमित शाह को प्रतिभाई ने पढ़ाया था।



नरेंद्र मोदी एक जमाने में चाय बेचते थे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमित शाह को चाय पीना पसंद है। अमित शाह के चाय पीने से जुड़ा एक मशहूर किस्सा है। अमित शाह का चाय को ठंडा करके पीने की आदत है, शाह कभी गर्म चाय नहीं पीते। चाहे कितनी भी जल्दी क्यों ना हो..वो चाय को हमेशा ठंडी करके ही पीते हैं।



टाइम मैनेजमेंट के मास्टर हैं शाह


बहुत कम लोग जानते हैं कि अमित शाह वक्त के पाबंद हैं। अमित शाह को आपने कार की ड्राइविंग सीट के बगल वाली सीट पर बैठे हुए तो ज़रूर देखा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमित शाह को कार चलाना नहीं आता। उन्होंने कभी कार चलाई ही नहीं, जब वो भाजपा के नेता थे..और एमएलए बने..वो अक्सर बाइक चलाते नजर आते थे।