गोरखपुर (नीरज श्रीवास्तव). आजादी की लड़ाई में काकोरी कांड इतिहास के पन्नों में दर्ज है. इस कांड के नायकों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमकर देश के नाम प्राणों की आहुति दे दी. हंसते-हंसते जब वे फांसी के फंदे को चूमकर लटके, तो अंग्रेज अफसरों के सिर शर्म से झुक गए. उसी काकोरी के नायकों ने फांसी के फंदे पर लटककर क्रांतिकारी आंदोलन का रूप दे दिया. जब उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया गया, तो युवाओं का खून उबाल मारने लगा. वे बड़ी संख्या में आजादी की लड़ाई में कूद गए. बहुतों ने तो सरकारी नौकरी तक को लात मार दी.
काकोरी कांड को आज 95 साल पूरे हो गए. इस अवसर पर गुरुकृपा संस्थान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बलिदानी मेला खेल महोत्सव आयोजन समिति के संयुक्त तत्वावधान में जेल के सेंट्रल कक्ष में तैलीय चित्र स्थापित किया गया. बिस्मिल के बलिदान स्थली गोरखपुर मंडलीय कारागार में वरिष्ठ जेल अधीक्षक डॉ. रामधनी और जेलर प्रेम सागर शुक्ला को संगठन प्रमुख बृजेश राम त्रिपाठी और अनिरूद्ध पांडेय एडवोकेट सहित संस्था के सदस्यों ने शहीद पं.राम प्रसाद बिस्मिल का चित्र भेंट किया.
इस अवसर पर गुरुकृपा संस्थान के संस्थापक बृजेश राम त्रिपाठी ने कहा कि बहुप्रतीक्षित घड़ी आज पूरी हुई. जब अगस्त क्रांति के दिन पर बिस्मिल का चित्र उनके बलिदान स्थली गोरखपुर को समर्पित करते हुए स्थापित किया गया. उन्होंने जेल अधीक्षक डॉ. रामधनी और जेलर प्रेम सागर शुक्ला के प्रति संस्था की तरफ से आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह चित्र जेल में आने वाले आगन्तुकों को यह जानने और समझने का अवसर प्रदान करेगा कि बिस्मिल विराट व्यक्तित्व के स्वामी थे देश प्रेम उनके लिए सर्वोपरि रहा है.
काकोरी कांड की कहानी
9 अगस्त 1925 को आजादी के दीवानों ने ट्रेन से जा रहे खजाने को लूटने का प्लान बनाया. 9 अगस्त 1925 की तारीख मुकर्रर हुई. चन्द्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह समेत 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच में ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटकर अंग्रेज अफसरों को बड़ा झटका दिया.
इस ट्रेन डकैती में कुल 4,601 रुपये लूटे गए थे. इस घटना के बाद देश के कई हिस्सों में बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां हुई. हालांकि काकोरी ट्रेन डकैती में 10 क्रांतिकारी ही शामिल रहे हैं., लेकिन 40 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. अंग्रेजों की इस धरपकड़ से प्रांत में काफी हलचल मच गई. क्रांतिकारियों की ओर से मुकदमा कलकत्ता के बीके चौधरी ने लड़ा. काकोरी कांड का ऐतिहासिक मुकदमा लगभग 10 महीने तक लखनऊ की अदालत रिंग थियेटर में चला.
बिस्मिल को सुनाई गयी फांसी की सजा
छह अप्रैल 1927 को इस मुकदमे का फैसला हुआ जिसमें जज हेमिल्टन ने धारा 121अ, 120ब, और 396 के तहत क्रांतिकारियों को सजाएं सुनाईं. इस मुकदमे में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह खां को फांसी की सजा सुनाई गई. शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी और मन्मथनाथ गुप्त को 14 साल की सजा हुई. योगेशचंद्र चटर्जी, मुकंदीलाल, गोविन्द चरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल की सजा हुई. विष्णुशरण दुब्लिश और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य को सात और भूपेन्द्रनाथ, रामदुलारे त्रिवेदी और प्रेमकिशन खन्ना को पांच-पांच साल की सजा हुई.
फांसी की सजा की खबर सुनते ही जनता आंदोलन पर उतारू हो गई. अदालत के फैसले के खिलाफ शचीन्द्रनाथ सान्याल और भूपेन्द्रनाथ सान्याल के अलावा सभी ने लखनऊ चीफ कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. शहीद राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई. बिस्मिल ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया.
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