Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिहाज से उत्तर प्रदेश सभी पार्टियों के लिए बेहद अहम है. यहां की 80 सीटें काफी हद तक दिल्ली का रास्ता तय कर देती हैं. इसलिए बीजेपी (BJP) और विपक्षी दल माहौल तैयार करने में जुटे हुए हैं. यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा ने पहले रामचरितमानस का मुद्दा उठाया और अब जातीय जनगणना (Caste Census) का शिगूफा छोड़ कर सियासी बढ़त लेने की फिराक में है. बीजेपी के लिए ये मुद्दा बड़ी मुसीबत बन सकता है.
दरअसल, हिंदुत्व के रथ पर सवार बीजेपी को घेरने के लिए जातीय जनगणना समाजवादी पार्टी के पास सबसे बड़ा मुद्दा है. अब इस मुद्दे पर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी के सहयोगी संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल का भी साथ अखिलेश यादव को मिल गया है.
केशव प्रसाद मौर्य की है ये मजबूरी
यूपी की सियासत को समझने वालों की मानें तो सभी दल पिछड़े वर्ग के वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए यह प्रयास तेज कर रहे हैं. इसी को देखते हुए केशव प्रसाद मौर्य को भी जातीय जनगणना का समर्थन करना पड़ा. यही नहीं बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी और अनुप्रिया पटेल की पार्टी भी जातीय जनगणना के पक्ष में है. यह ऐसा मुद्दा है कि इसे हर कोई लपकने को तैयार है. केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ''मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूं. उन्होंने कहा, न तो मैं और न ही मेरी पार्टी इस विषय पर विपक्ष में हैं.'' हालांकि, उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि उत्तर प्रदेश ने अभी तक बिहार के उदाहरण का अनुसरण क्यों नहीं किया है, जहां जातिगत जनगणना की घोषणा की गई है.
बीजेपी के किले में सेंध लगाना इतना आसान नहीं
समाजवादी पार्टी की रणनीति के जरिए अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित और ओबीसी को अपने पक्ष में एकजुट कर बीजेपी को पटखनी देना चाहते हैं. हालांकि 2024 में बीजेपी के किले में सेंध लगाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि तब तक राम मंदिर तैयार हो जाएगा और भाजपा का हिंदुत्व मुद्दा पहले की तरह सिर उठाएगा.