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यूपी में 'आप' का 'पंजाब मॉडल' के जरिए किला फतेह की तैयारी, जानिए किस पार्टी को है सबसे बड़ा खतरा

अन्ना आंदोलन से निकले एक्टिविस्टों ने 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया था. उस वक्त अरविंद केजरीवाल को पार्टी का संयोजक बनाया गया था. आप ने पहला चुनाव दिल्ली में लड़ने का फैसला किया था.

राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद अरविंद केजरीवाल की नजर उत्तर प्रदेश पर है. उनकी पार्टी आप यूपी में निकाय चुनाव लड़ने की तैयारी में है. यूपी चुनाव के लिए आप पंजाब मॉडल का सहारा ले रही है. इसके लिए पार्टी ने कई स्तर पर रणनीति तैयार की है. 

सोमवार को राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि यूपी के 763 में 633 नगर निकायों में पार्टी अपने प्रभारी घोषित कर रही है. नगर पालिकाओं में 164, नगर पंचायत में 435 और नगर निगम में 34 प्रभारी बनाए जाएंगे. 

यूपी में आप पहले भी चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन इस बार पार्टी की रणनीति जमीन पर पकड़ मजबूत करने की है. निकाय चुनाव के जरिए आप यूपी के शहरी इलाकों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. 

आप ने यूपी में क्या-क्या घोषणा की है?
संजय सिंह ने कहा कि यूपी के जिन निकायों में आम आदमी पार्टी को जीत मिलेगी, वहां पर हाउस टैक्स हाफ और वाटर टैक्स माफ कर दिया जाएगा. 

आप बिजली और पानी के मुद्दे पर दिल्ली और पंजाब के शहरी इलाकों में बड़ी जीत दर्ज कर चुकी है. बीजेपी इसे फ्री स्कीम बताकर भविष्य के लिए खतरा बता चुकी है.

संजय सिंह ने आगे कहा कि निकाय चुनाव का काम तो शहरों की सफाई का है. आपके नगर से गंदगी दूर करने का है. मैं यूपी के लोगों से कहना चाहता हूं कि ये काम आप को दे दीजिए. हम इसे बेहतर तरीके से पूरा करेंगे.

एमपी निकाय चुनाव में आप ने चौंकाया था
जुलाई 2022 में मध्य प्रदेश के 11 नगर निगम में मेयर पद के लिए चुनाव कराए गए थे. इनमें खंडवा, सतना, बुरहानपुर, ग्वालियर, जबलपुर, इंदौर, भोपाल, छिंदवाड़ा, सागर, उज्जैन और सिंगरौली सीट शामिल थे.

चुनाव से पहले ये सभी सीटें बीजेपी के खाते में थी, लेकिन कांग्रेस ने ग्वालियर, छतरपुर और छिंदवाड़ा में बड़ा झटका दिया था. इतना ही नहीं सिंगरौली में आप ने उलटफेर करते हुए जीत दर्ज की थी. आप के रानी अग्रवाल ने बीजेपी को बड़ी मार्जिन से हराया था.

आप का पंजाब मॉडल क्या है?
मार्च 2022 में पंजाब विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी. आप ने यहां पर विवादित मुद्दों से दूरी बनाते हुए रोजमर्रा और जरूरी विषयों को मुद्दा बनाया था. 

आप ने पंजाब में सरकारी शिक्षा व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बनाया था और पंजाब में दिल्ली की तरह मॉडल स्कूल खोलने की बात कही थी. इसके अलावा राज्य में सरकार बनने के बाद फ्री बिजली देने की घोषणा की गई थी.

पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित आबादी है और केजरीवाल ने इसे भी साधा. आप ने घोषणा किया कि सरकार बनने पर दलित छात्रों को स्कॉलरशिप दिया जाएगा. आप का यह सभी घोषणा काम कर गई और पार्टी ने पंजाब में बड़ी जीत दर्ज की.

आम आदमी पार्टी पंजाब की तरह ही यूपी में जनाधार बनाने की कोशिश में है. पार्टी ने इसके लिए 3 स्तर पर प्लान तैयार किया है. आइए इसे विस्तार से जानते हैं...

1. यूपी में आप का फोकस शहरी सीट
आम आदमी पार्टी यूपी के शहरी सीटों पर विशेष रूप से फोकस कर रही है. राज्य में इस बार 17 नगर निगम की सीटें हैं. पार्टी दिल्ली से लगे गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ़ और मेरठ पर बड़ी जीत की तैयारी कर रही है.

इसके अलावा पूर्वांचल की लखनऊ और वाराणसी में भी पार्टी बड़ी पैठ बनाने की कोशिश में है. वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट है और यहां से 2014 में अरविंद केजरीवाल भी चुनाव लड़ चुके हैं.

आप तराई बेल्ट के बरेली और शाहजहांपुर सीट पर भी फोकस कर रही है. इन इलाकों में सिख समुदाय का दबदबा है और चुनाव में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

2. मिशन यूपी के लिए आप ने लगा रखे हैं 10 विधायक
जड़ें जमाने के लिए आम आदमी पार्टी से आने वाले दिल्ली के 10 विधायक यूपी में खाक छान रहे हैं. इनमें 2 मंत्री गोपाल राय और इमरान हुस्सैन भी शामिल हैं. पहले मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी यूपी में पार्टी के लिए अभियान चला चुके हैं.

आप यूपी से आने वाले इन विधायकों के जरिए राज्य में डोर टू डोर कैंपेन कर रही है. मुस्लिम बहुल इलाकों में इमरान हुसैन की ड्यूटी लगाई गई है. पार्टी जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण भी इन विधायकों के जरिए साध रही है.

3. पन्ना प्रमुख की काट 'मोहल्ला प्रभारी'
आम आदमी पार्टी बीजेपी के पन्ना प्रमुख के तर्ज पर यूपी में मोहल्ला प्रभारी बनाने की तैयारी कर रही है. शहरी क्षेत्र में वार्ड कमेटी, बूथ कमेटी के बाद मोहल्ला कमेटी बनाई जा रही है.

आप के मुताबिक 25-30 घर पर एक मोहल्ला कमेटी का गठन हो रहा है. मोहल्ला कमेटी में एक प्रभारी और सदस्यों की नियुक्ति भी पार्टी कर रही है. मोहल्ला प्रभारी इन सभी घरों में रह रहे मतदाताओं को साधने की कोशिश करेंगे.

आप के इस रणनीति से किसे कितना खतरा?

बीजेपी को शहरी सीटों पर नुकसान संभव- 2017 में नगर निगम की 16 सीटों पर चुनाव हुए थे, जिसमें से बीजेपी को 14 सीटों पर जीत मिली थी. अलीगढ़ और मेरठ सीट पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. 

2014 के बाद से ही यूपी के शहरी वोटरों का रुझान बीजेपी की ओर रहा है. ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी शहरी वोटरों को साधने में सफल हो जाती है, तो इसका बड़ा नुकसान बीजेपी को ही होगा.

दिल्ली से लगे नोएडा और गाजियाबाद की सीट पिछले चुनाव में बीजेपी को मिली थी. अगर इस बार यहां आप मजबूती से चुनाव लड़ती है तो पार्टी को नुकसान संभव है.

विपक्षी वोट बंटेगा, सपा गठबंधन के लिए भी झटका- 2022 में उत्तर प्रदेश चुनाव के वक्त आप और सपा में गठबंधन की चर्चा शुरू हुई थी, लेकिन सीटों पर बातचीत नहीं बन पाने की वजह से आप अकेले चुनाव लड़ी.

2022 के बाद यूपी की सियासत में बहुत कुछ बदल चुका है. सपा और रालोद गठबंधन सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है और बीजेपी से मुकाबला कर रही है. आप के इस प्लान से सपा गठबंधन को भी झटका लग सकता है. 

पश्चिमी यूपी के शहरी सीटों पर रालोद चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जबकि पूर्वांचल, अवध और पोटेटो बेल्ट में सपा. पिछले चुनाव में सपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन पार्टी इस बार चमत्कार होने की उम्मीद है.

तीसरे दल का विकल्प बन सकती है आप- यूपी में बसपा और कांग्रेस की राजनीति ढलान पर है. तमाम कोशिशों के बावजूद दोनों पार्टियां मजबूत नहीं हो पा रही है. 1990 के बाद यूपी पॉलिटिक्स 3 दलों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है.

बसपा और कांग्रेस के शक्तिविहीन हो जाने के बाद अब आप यहां विकल्प बनने की कोशिश में है. केजरीवाल जनाधार बढ़ाकर उसे सीटों में तब्दील करने की कोशिश में है, जिससे यूपी में पार्टी तीसरी शक्ति बन जाए.

निकाय चुनाव में अगर आप का प्लान सक्सेसफुल रहा तो बीजेपी और सपा के बाद कांग्रेस और बसपा के लिए खतरा बन जाएगा.

प्रयोग पहले भी हुआ, मगर असफल रही आप
आम आदमी पार्टी ने यूपी में जड़ें जमाने के लिए पहले भी कई प्रयोग किए हैं, लेकिन असफल ही रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में आम आदमी पार्टी ने बड़े चेहरों को उतार दिया था, लेकिन यह प्लान फेल हो गया.

2014 में वाराणसी सीट से नरेंद्र मोदी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल, अमेठी सीट से राहुल गांधी के मुकाबले कुमार विश्वास, लखनऊ सीट से राजनाथ सिंह के मुकाबले जावेद जाफरी को पार्टी ने उतारा था. पार्टी को यूपी की किसी भी सीट पर जीत नहीं मिली.

आप ने इसके बाद यूपी का प्लान ठंडे बस्ते में डाल दिया. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उम्मीदवार तो उतारे, लेकिन सफलता नहीं मिली.

राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद आप का मिशन यूपी
गुजरात चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी बन गई थी. इसके बाद पार्टी ने मिशन यूपी की शुरुआत की थी. यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं और राज्यसभा में भी सबसे अधिक सीटें यूपी की ही है.

सियासी गलियारों में एक कहावत भी है कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है. ऐसे में आप अब यूपी पर विशेष फोकस कर रही है. 

अन्ना आंदोलन से निकले एक्टिविस्टों ने 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया था. उस वक्त अरविंद केजरीवाल को पार्टी का संयोजक बनाया गया था. आप ने पहला चुनाव दिल्ली में लड़ने का फैसला किया था.

2013 में 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बनाए गए थे. यह सरकार 49 दिनों तक ही चल पाई थी.

इसके बाद पूरे देश में आप ने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन पार्टी को सिर्फ पंजाब में सफलता मिली थी. आप ने उस वक्त पंजाब में 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2015 में आप दिल्ली में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार में लौटी. 

दिल्ली में सरकार बनाने के बाद अन्य राज्यों में भी आप ने धीरे-धीरे विस्तार पर काम शुरू कर दिया था. आप ने रणनीति को धारदार बनाने के लिए अपनी सबसे बड़ी पॉलिटिकल बॉडी पीएसी को छोटा कर दिया था.

दिल्ली के विधायकों को उनके गृह राज्यों का प्रभारी बनाया गया. दुर्गेश पाठक, राघव चड्ढा जैसे युवा नेताओं को संगठन में तरजीह दी गई. पार्टी ये रणनीति पंजाब में सफल हो गई. गोवा और गुजरात में भी पार्टी को फायदा मिला. 

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