Asaduddin Owaisi Family: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) को लेकर सभी दलों ने कमर कस ली है. इस चुनाव के लिए हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) भी तैयारी कर रही है. इस बीच असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. आइए आपको बताते हैं कि यूपी चुनाव में दमखम से उतरे असदुद्दीन अवैसी के परिवार में कितने सदस्य हैं. उनके कितने बच्चे हैं.
कौन है असदुद्दीन ओवैसी? (Who is Asaduddin Owaisi?)
असदुद्दीन ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष हैं. वे हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं. उस्मानिया विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्ट्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे उच्च अध्ययन के लिए लंदन चले गए. उन्होंने लंदन के लिंकन इन में बैचलर ऑफ लॉज और बैरिस्टर-एट-लॉ का अध्ययन किया और वे अधिवक्ता बन गए.
उनका घर का नाम नकीब-ए-मिल्लत, कायद है, और आमतौर पर उन्हें असद भाई के नाम से जाना जाता है. उनकी राजनीति मुख्य रूप से मुसलमानों और दलितों जैसे अल्पसंख्यकों के आसपास केंद्रित थी. ओवैसी अपनी राजनीति के कारण और अपने भाषणों के कारण विवादों और खबरों में रहे हैं.
ओवैसी के कितनी संतान हैं?
असदुद्दीन ओवैसी का जन्म 13 मई 1969 को हुआ. उनकी पांच संतान हैं. एक बेटा और पांच बेटियां. बेटे का नाम सुल्तान उद्दीन है. उसका जन्म 2010 में हुआ है. बेटियों के नाम कुदसिया ओवैसी, यासमीन ओवैसी, अमीना ओवैसी, महेन ओवैसी, और अतिका ओवैसी है.
असदुद्दीन ओवैसी का परिवार
असदुद्दीन ओवैसी के पिता का नाम सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी है. ये भी कई बार सासंद रह चुके हैं. असदुद्दीन ओवैसी की माता का नाम नजमुन्निसा बेगम है. वहीं उनकी पत्नी गृहिणी हैं और उनका नाम फरहीन ओवैसी है. असदुद्दीन ओवैसी के दो भाई हैं. अकबरुद्दीन ओवैसी और बुरहानुद्दीन ओवैसी. अकबरुद्दीन ओवैसी भी राजनीति के क्षेत्र में हैं और सबसे छोटे भाई बुरहानुद्दीन ओवैसी उर्दू न्यूज पेपर एत्मादाद के संपादक हैं.
पहले भी यूपी में चुनाव लड़ चुकी है AIMIM
आपको बता दें कि एआईएमआईएम ने 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव 38 सीटों पर लड़ा था, लेकिन 37 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. एआईएमआईएम को 2 लाख 4 हजार 142 वोट मिले थे. एआईएमआईएम ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, वो मुख्य तौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल सीटें थीं. लेकिन मतदाताओं ने उन्हें बहुत तरजीह नहीं दी.