Asian Games 2023: होटल में वेटर, मनरेगा में मजदूरी, सोनभद्र से हांगझोऊ तक का सफर, एशियन गेम्स में राम बाबू ने किया कमाल
Asian Games: एशियन गेम्स में गरीब दिहाड़ी मजदूर मां-बाप के बेटे ने देश का नाम रोशन किया है. राम बाबू की कहानी युवाओं को संघर्ष और मेहनत की प्रेरणा दे रही है.
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Hangzhou Asian Games-2023: "कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों". एशियाई खेलों की पैदल चाल स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता राम बाबू पर कविता की पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है. सोनभद्र के राम बाबू का हांगझोऊ तक का सफर आसान नहीं रहा. पेट पालने के लिए पैदल चाल खिलाड़ी को कभी होटल में वेटर और कभी मनरेगा में मजदूर बनना पड़ा है. दिहाड़ी मजदूर पिता के बेटे ने एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीतकर भारत का मान सम्मान बढ़ाया है. गांव में 5वीं की पढ़ाई के बाद मां ने जवाहर नवोदय विद्यालय भेज दिया. 12वीं तक स्कूल में मैराथन का प्रशिक्षण हासिल किया. लॉकडाउन में मनरेगा मजदूरी से लेकर राष्ट्रीय खेल 2022 में एनआर को हराने तक, राम बाबू की यात्रा कड़ी मेहनत और धैर्य से भरी है.
राम बाबू की कामयाबी का सफर नहीं था आसान
मां बताती हैं कि कोविड लॉकडाउन के दौरान सोनभद्र जिले में बेटे ने मनरेगा की मजदूरी भी की है. एशियाई खेलों की 35 किमी पैदल चाल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने पर बेटे की चर्चा से परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं है. मां का कहना है कि राम बाबू संघर्ष के आगे सरेंडर नहीं किया. बुलंद हौसले की बदौलत अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में कांस्य पदक जीत कर मां का सपना पूरा किया. पदक हासिल करने के बाद राम बाबू ने मां को फोन पर सफलता की जानकारी दी. बहुआरा गांव से ताल्लुक रखनेवाले राम बाबू ने मैराथन धावक के रूप में शुरुआत की. लेकिन पैसे के अभाव में पीछे हटना पड़ा.
एशियाई खेलों में सोनभद्र के लाल ने किया कमाल
2014 में एहसास हुआ कि मैराथन में आवश्यक आहार और प्रशिक्षण का खर्च वहन करना बहुत ही लिए कठिन था. राम बाबू की मां ने याद करते हुए कहा, "राम बाबू ने नवोदय विद्यालय से 12वीं पास करने के बाद बनारस में वेटर का काम किया. एथलीट में बेटे का जुनून देख मां-बाप मेहनत मजदूरी कर पैसे भेजा करते थे. उस समय दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था. होटल में वेटर का काम करने से राम बाबू की ट्रेनिंग प्रभावित हो रही थी. राम बाबू ने कई नौकरियां बदलीं.
बेटे को कभी जूट की बोरी भी सिलना पड़ा. कोरोना काल में दिहाड़ी मजदूर बनकर प्रतिदिन 200 रुपये कमाए. नॉर्दर्न कोल फील्ड लिमिटेड ने एथलेटिक्स कैंप के लिए बेटे को चुन लिया. कोच ने राम बाबू से मैराथन दौड़ को बदलने और रेस वॉक करने का सुझाव दिया.
वेटर और मनरेगा में मजदूरी का भी करना पड़ा काम
रेस वॉक राम बाबू के लिए कठिन थी. राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद राम बाबू का चयन विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए हुआ. ट्रायल्स में अच्छा प्रदर्शन काम नहीं आया. विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हैमस्ट्रिंग की चोट लग गई. हैमस्ट्रिंग की चोट राम बाबू के लिए कठिन थी. राम बाबू ने 35 किमी पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया'और एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता.
एक वेटर के रूप में शुरुआत करने और अब अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक के रूप में खड़े होने तक राम बाबू की यात्रा धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानी है. राम बाबू की बेटे की सफलता से उत्साहित हैं. उन्होंने बताया कि बेटे ने चीन से फोन कर सपना पूरा होने की खुशखबरी सुनाई. राम बाबू के परिवार को परिवार को अब जमीन से हटाया जा रहा है. मां मीना देवी बताती हैं कि 35 साल से जमीन पर परिवार रह रहा है. बेटे के राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ने पर जिलाधिकारी ने एक हैंडपंप और 10 बिस्वा जमीन दी थी.
जमीन नदी किनारे होने की वजह से घर नहीं बनाया जा सकता. उन्होंने पीएम मोदी और मुख्यमंत्री योगी से गुहार लगाई है. ग्रामीणों का कहना है कि राम बाबू के पदक जीतने से सभी खुश हैं. हम भी बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करेंगे. राम बाबू और भी मेडल जीतकर देश प्रदेश और जिले का नाम रोशन करे. राम बाबू की मां ने मेहनत मजदूरी कर चार बच्चों का पालन पोषण किया.
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