Assembly Election 2022: ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में क्या अंतर हैं और दोनों को लेकर क्या हैं नियम और कानून, जानिए
Assembly Election 2022: ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल में जनता से मिली राय के आधार पर मीडिया संस्थान यह बताते हैं कि चुनाव में किसी पार्टी, गठबंधन या उम्मीदवार के जीतने-हारने की संभावना क्या है.
इस समय देश के 5 राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो रहा है. ऐसे समय में बहुत से मीडिया संस्थान ओपिनियन पोल करा रहा है. इसके जरिए वो यह बताने की कोशिश करते है कि किसी राज्य में जनता किसी पार्टी, गठबंधन या उम्मीदवार को लेकर क्या सोच रही है. वह किसे वोट देने की सोच रही है. जनता से मिली इस राय के आधार पर मीडिया संस्थान यह बताते हैं कि चुनाव में किसी पार्टी या गठबंधन के जीतने-हारने की संभावना क्या है. किसे कितनी सीटें मिल रही हैं या किसी नेता को कितने फीसदी जनता पसंद करती है. वहीं अंतिम चरण के मतदान का समय खत्म होने के बाद मीडिया संस्थान एग्जिट पोल के आंकड़े जारी करते हैं. इसमें किसी पार्टी की जीत का संभावना बताई जाती है.
ओपिनियन पोल क्या है
ओपिनियन पोल चुनाव से पहले कराया जाता है. इस दौरान मतदाताओं से पूछा जाता है कि आप कौन सी पार्टी को वोट देंगे. आपको कौन सा उम्मीदवार या नेता पसंद है. आप किस नेता को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद करते हैं. ओपिनियन पोल से पहले मतदाताओं की राय जानी जाती है. ओपिनियन के बारे में कहा जाता है कि इसमें जितने अधिक लोगों से राय ली जाएगी, सर्वे की विश्वसनियता उतनी ही अधिक होगी.
एग्जिट पोल क्या होता है
मतदान के दिन जब मतदाता वोटिंग करके मतदान केंद्र से बाहर आता है तो इस दौरान उससे पूछा जाता है कि उसने किस पार्टी को वोट दिया है. इसके बाद लोगों से मिली प्रतिक्रिया का विश्लेषण करने के बाद यह अनुमान लगाया जाता है कि किसा चुनाव में किसी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं.
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल करने का काम सर्वे एजेंसियां करती हैं. इन एजेंसियों के प्रतिनिधि संबंधित राज्य या इलाके के अलग-अलग हिस्सों में जाकर कई आधार पर डाटा जमा करते हैं. इस आधार में लिंग, जाति, धर्म और इलाके का प्रकार (ग्रामीण या शहरी) प्रमुख हैं. सर्वे से मिले आंकड़ों का विश्लेषण कर किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार की जीत हार का अनुमान लगाया जाता है.यह एक गणितिय प्रक्रिया है, इसलिए ऐसे नहीं है कि इसके नतीजे एकदम सटीक ही हों.
ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल पर क्या है कानून
इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रसार होने के साथ ही ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल की संख्या भी बढ़ती चली गई है. अक्सर ऐसा होता है कि अपने पक्ष में इनके आंकड़े होने पर राजनीतिक दल ओपिनियन पोल या एग्जिट पोल को सही बता देते हैं और पक्ष में न होने पर गलत. कई दलों ने इनके प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग भी की. इस साल भी सपा और बसपा जैसे राजनीतिक दलों ने ओपिनियन पोल पर पाबंदी लगाने की मांग की है. चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल को लेकर कुछ नियम बनाए हैं. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार ने 2009 में जनप्रतिनिधि कानून 1951 में धारा 126 (ब) को जोड़ा था. इसका मकसद एग्जिट पोल पर कानूनी पाबंदी लगाना है. उस समय सरकार ने ओपीनियन पोल को इससे बाहर रखा था.
पांच राज्यों के चुनाव को देखते हुए चुनाव आयोग ने 10 फरवरी की सुबह 7 बजे से 7 मार्च की शाम साढे 6 बजे तक एग्जिट पोल के प्रकाशन या इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसे दिखाने पर पाबंदी लगा दी है. इसका दोषी पाए जाने पर 2 साल की सजा का प्रावधान है. वहीं किसी चरण के मतदान खत्म होने के समय से 48 घंटे पहले किसी ओपिनियन पोल के प्रकाशन या इलेक्ट्रानिक मीडिया में उसे दिखाने पर भी पाबंदी लगाई गई है.