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Assembly Election 2022: शिक्षा पर खर्च करने में कौन रहा आगे अखिलेश यादव या योगी आदित्यनाथ, क्या कहते हैं रिजर्व बैंक के आंकड़े

Assembly Election 2022: राज्यों पर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने में औसत से पीछे है और शिक्षा पर खर्च करने में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है.

देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में इन दिनों चुनाव की बहार है. चारों तरफ चुनाव का माहौल है. राजनीतिक पार्टियां वादे करने और एक-दूसरे के कमियां निकालने में व्यस्त हैं. इस बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के कुछ आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं. राज्यों पर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे बड़े राज्य शिक्षा पर खर्च करने के राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा पीछे हैं. पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में महंगाई की दर भी पिछले 5 में से 3 साल में राष्ट्रीय दर से अधिक रही है.

किस क्षेत्र में कौन सा राज्य आगे या पीछे है

पंजाब स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने में औसत से पीछे है. शिक्षा पर खर्च करने में उत्तर प्रदेश बहुत पीछे है. साल 2021-22 के बजट अनुमानों के मुताबिक शिक्षा पर खर्च का राष्ट्रीय औसत 13.9 फीसदी का है. उत्तर प्रदेश में इसमें गिरावट दर्ज की गई है. प्रदेश में 2016-17 में शिक्षा पर 16.7 फीसदी खर्च किया जा रहा था, यह 2021-22 में घटकर 12.5 फीसदी रह गया है. यह कुल खर्च में शिक्षा पर खर्च का अनुपात है. उत्तर प्रदेश में 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार थी. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार 2017 में सत्ता में आई थी. 

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वहीं पंजाब में शिक्षा पर खर्च में थोड़ा सुधार तो हुआ है, लेकिन वह अभी भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है. आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 2016-17 में शिक्षा पर 8.6 फीसदी खर्च हो रहा था, जो 2021-22 में भड़कर 10 फीसदी हो गया. चुनाव वाले राज्यों में केवल उत्तराखंड ही एक ऐसा राज्य है, जहां शिक्षा पर राष्ट्रीय औसत से अधिक 17.3 फीसदी खर्च किया गया. वहीं मणिपुर में 10.7 फीसदी और गोवा में 13.1 फीसदी खर्च किया गया.  

राज्यों का स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कितना है

वहीं अगर कुल खर्च में स्वास्थ्य सेवाओं पर किए गए खर्च का अनुपात देखें तो पंजाब में 3.4 फीसदी और मणिपुर में 4.2 फीसदी खर्च हुआ. यह राष्ट्रीय औसत 5.5 फीसदी से कम है. वहीं गोवा में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च का अनुपात 6.8 फीसदी था. उत्तराखंड में यह 6.1 और उत्तर प्रदेश में 5.0 था. साल 2016-17 और 2021-22 के बीच मणिपुर को छोड़कर चुनाव वाले सभी राज्यों में स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाया गया. इस दौरान राष्ट्रीय औसत 4.6 से 5.5 फीसदी हो गया.

चुनाव वाले राज्यों में महंगाई की मार

वहीं कुछ राज्यों में राष्ट्रीय औसत से अधिक महंगाई दर दर्ज की गई.  उत्तराखंड में 2017 से 2020-21 में अधिक महंगाई की दर दर्ज की गई. साल 2020-21 में उत्तराखंड के लिए सालाना महंगाई दर 8.2 फीसदी थी, जबकि राष्ट्रीय दर 6.2 फीसदी थी. वहीं 2019-20 में यह 4.8 के राष्ट्रीय औसत की जगह 5.9 फीसदी थी.  वहीं पंजाब में पिछले 5 साल में 3 साल महंगाई दर राष्ट्रीय औसत से अधिक बनी रही.  साल 2019-20 में यह 4.8 फीसदी की राष्टीय दर की जगह 5 फीसदी थी. वहीं 2018-19 में यह 3.4 फीसदी की जगह 3.8 फीसदी थी और 2017-18 में 3.6 के राष्ट्रीय औसत की जगह 3.7 फीसदी थी.

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मणिपुर में पिछले पिछले 5 सालों में अधिक महंगाई की दर दर्ज की गई. वहां 2016-17 में महंगाई की दर 10.1 फीसदी, 2017-18 में 12.4 फीसदी, 2018-19 में 8.7 फीसदी, 2019-20 में 6.9 फीसदी और 2020-21 में 6.7 फीसदी थी. 

चुनाव में सरकार को महंगाई के मुद्दे का सामना करना पड़ता है. कई बार तो सरकारों को बढ़ी हुई महंगाई की वजह से हार का भी सामना करना पड़ा है. वहीं पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में इसका उल्टा भी होता है. वहां 2020-21 में राष्ट्रीय औसत के 6.2 फीसदी की दर से अधिक 8.7 फीसदी महंगाई होने के बाद भी ममता बनर्जी सत्ता में वापसी करने में सफल रही थीं.

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