उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव अगले साल के शुरू में और गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अंत में होने हैं. इनमें से पंजाब को छोड़कर हर राज्य में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी इन राज्यों की सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगा रही है. बीजेपी ने यूपी में एक बार फिर 300 सौ से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है. आइए जानते हैं कि इन चुनावों के जरिए बीजेपी आखिर हासिल क्या करना चाहती है.


ब्रांड नरेंद्र मोदी पर पड़ेगा असर?


18वीं लोकसभा का चुनाव 2024 में होना है. बीजेपी ने कह रखा है कि 2024 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. ऐसे में अगले साल होने वाले 7 राज्यों के विधानसभा चुनाव उसके लिए काफी अहम हैं. इसलिए वह हर राज्य में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. इन राज्यों के चुनाव नतीजे एक तरह से मोदी की लोकप्रियता भी तय करेंगे. इन सात राज्यों में लोकसभा की 132 सीटें हैं. सबसे अधिक 80 सीटें उत्तर प्रदेश में हैं. इसलिए बीजेपी इन राज्यों में अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहती है, ताकी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बनी रहे और इसका उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में फायदा मिले.


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राज्य सभा में बीजेपी का बहुमत भी 7 राज्यों के इन चुनावों से ही जुड़ा हुआ है. राज्य सभा की 245 में से 74 सीटों पर अगले साल इन विधानसभा चुनावों के बाद चुनाव होना है. इनमें से 11 सीटें उत्तर प्रदेश, 5 पंजाब में और 1 सीट उत्तराखंड में हैं. इन 17 सीटों में से 6 बीजेपी के सदस्य अगले साल रिटायर होंगे. ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के पास राज्य सभा में 123 सदस्यों का बहुमत होगा या नहीं. अभी राज्य सभा में बीजेपी के 93 सदस्य हैं.


राष्ट्रपति चुनाव का गणित


इन विधानसभा चुनावों के जरिए बीजेपी राष्ट्रपति चुनाव का लक्ष्य भी हासिल करना चाहती है. राष्ट्रपति का चुनाव जुलाई 2022 में प्रस्तावित है. इससे पहले 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे. इन राज्यों की विधानसभाओं में कुल 690 सीटें हैं. राष्ट्रपति चुनाव में इनके वोटों का मूल्य 103756 है. यह कुल वोटों का करीब 10 फीसदी के बराबर है. इनका 80 फीसदी या 83824 वोट तो अकेले उत्तर प्रदेश में है. अभी बीजेपी के पास इनका अधिकांश हिस्सा है. बीजेपी ने इन राज्यों के चुनावों में अगर अच्छा प्रदर्शन किया तो राष्ट्रपति चुनाव में उसे अपने उम्मीदवार को जिताने में आसानी होगी.  


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बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था. उसने अकेले के दम पर 303 सीटें जीती थीं. वहीं अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सीटों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या बढ़कर 353 हो जाती है. इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बाद भी उसे 2020 और 2021 में हुए दो बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली.


बंगाल और बिहार के नतीजों का प्रभाव


बिहार विधानसभा के चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगी जदयू को वह सफलता नहीं मिल सकी, जिसकी उसे उम्मीद थी. तमाम तरह के संसाधन झोंकने के बाद भी बीजेपी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी नहीं बन पाई और उसकी गठबंधन सहयोगी जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई. हालांकि बीजेपी अपनी सीटें बढ़ाने में जरूर कामयाब रही. बीजेपी के दिग्गज नेताओं को 31 साल के तेजस्वी यादव ने दिन में ही तारे दिखा दिए और राजद को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया.


वहीं इस साल हुए पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी ममता बनर्जी को मात नहीं दे पाई. बीजेपी की लाख कोशिशों के बाद भी ममता बनर्जी पिछली बार से भी अधिक सीटें जीतने में कामयाब रहीं. हालांकि बीजेपी बंगाल में अपनी सीटें बढ़ाने और कांग्रेस-वामदलों का सफाया करने में कामयाब रही. इसी तरह दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी चारो खाने चित हो गई थी. 


इन तीन राज्यों के चुनाव परिणाम को मोदी मैजिक के कम होते प्रभाव के रूप में देखा गया. ऐसे में अगले साल होने वाले 7 राज्यों के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए अपनी ताकत और मनोबल बढ़ाने का मौका होंगे. इसलिए बीजेपी ने विधानसभा के इन चुनावों में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है.