जयंती विशेष: जीवन से भरी इन कालजयी रचनाओं से अमर हैं कवि हृदय अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी बाजपेयी वह नाम जिसने राजनीति विनम्रता के साथ अपनी बात कहने का ढंग सिखाया। उन्होंने कविताओं के माध्यम से देशप्रेम व जीवन के प्रति नजरिया कैसा हो, यह बताया
भारत रत्न व देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का आज 95वां जन्मदिन है। उनके व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। एक ऐसा राजनेता जिसका सभी राजनीतिक दल सम्मान करते थे। यही नहीं अटल जी कुशल वक्ता थे। संसद में जब भी वह किसी विषय पर बोलते तो पक्ष क्या, विपक्ष क्या पूरा सदन शांत होकर उनकी बात सुनता। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक अटल जी ने राजनीति को एक नयी परिभाषा दी। उनकी विनम्रता की मिसाल देते हुये उनके विरोध कहते थे कि अटल जी तो अच्छे हैं लेकिन सही पार्टी में नहीं है। सबसे बड़ी विशेषता जो अटल जी को औरों से अलग करती थी वह था उनका कविता प्रेम। उन्होंने जीवन और देश प्रेम पर आधारित कालजयी रचनाओं को गढ़ा। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस विषय पर सबसे ज्यादा लिखा वह 'मौत' था। उनके निधन के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में एक कविता रही है 'मौत से ठन गई'।
1- मौत से ठन गई ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज तूफान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।
2- उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा. कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा. क़दम मिलाकर चलना होगा.
3- हरी हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं| ऐसी खुशियां जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं।
क्कांयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूं या उसके ताप से भाप बनी, ओस की बूंदों को ढूंढूं?
4-सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता मगर ओस भी तो एक सच्चाई है यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं? कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं?
सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी।