अतीक और अशरफ पर गोली चलाने वाले तीनों आरोपी अरुण मौर्य, लवलेश तिवारी और सनी सिंह पुलिस की गिरफ्त में हैं. पिछले 6 दिनों से स्पेशल इन्वेंस्टिगेशन टीम इन आरोपियों से पूछताछ कर रही है, लेकिन अब तक उनके हाथ कोई ऐसी पुख्ता जानकारी नहीं लग पाई जिससे पता चल सके कि आखिर इन दोनों बाहुबलियों को मारने के पीछे आरोपियों का क्या मकसद हो सकता है. 


दरअसल छह दिन पहले तीन आरोपियों ने अतीक और अशरफ को प्रयागराज के कल्विन अस्पताल के बाहर मौत के घाट उतार दिया था. इस पूरे घटना को जिस तरीके से अंजाम दिया गया, वह किसी आम व्यक्ति के बस का काम नहीं लगता है. दोनों को मारने के लिए जिस पिस्टल का इस्तेमाल किया गया उससे यह भी आशंका जताई जा रही है कि अतीक और अशरफ की हत्या की सुपारी दी गई होगी. 


पुलिस की मौजूदगी के दौरान हुए इस हत्याकांड ने न सिर्फ प्रदेश बल्कि पूरे देश की जनता के जहन में कई बिखरे सवाल लाकर खड़े कर दिए हैं. एक सवाल ये कि कहीं अतीक अहमद और अशरफ की हत्या के लिए किसी ने इन तीनों आरोपियों का इस्तेमाल तो नहीं किया था? और अगर ऐसा हुआ है तो इस पूरे हत्याकांड का असली मास्टरमाइंड कौन हो सकता है? 


आरोपियों से अब तक जो पूछताछ की गई है उससे तो यही निष्कर्ष निकलता है कि इन तीनों आरोपियों ने ही आपस में मिलकर दो प्रदेश के सबसे बड़े बाहुबलियों को मारने का प्लान बनाया था. हालांकि पत्रकार का हुलिया बनाकर वहां पहुंचे इन आरोपियों को आईडी कार्ड, कैमरा कब और किसने दिए इसका पता नहीं चल पाया है. अगर आईडी कार्ड को बेचा भी गया है तो इन्होंने उसे किससे और कितने में खरीदा इसका भी पता नहीं चल पाया है. 


कई बार बदले बयान 


वहीं इस कहानी में एक मास्टरमाइंड जरूर है, ये इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि इन 6 दिनों की पूछताछ में तीनों अभियुक्तों ने कई बार अपनी कहानी बदली है. कभी आरोपियों ने कहा कि उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अतीक और अशरफ के आतंक से परेशान थे. 


तो भी इन्ही लोगों ने अपने बयान को बदलते हुए कहा कि उसने दोनों भाइयों को इसलिए मारा क्योंकि वह प्रदेश में अपना दबदबा बनाना चाहते थे और वह सनी गैंगस्टर और लॉरेंस बिश्नोई से प्रभावित थे. 


पूछताछ के दौरान आरोपियों ने ये भी कहा था कि उनके पास कोई भी फोन नहीं था और वो रेलवे स्टेशन या बस स्टॉप पर अपनी रात गुजारा करते थे. लेकिन बाद में अपना ही बयान बदलकर आरोपियों ने बताया कि वह खुल्दाबाद के होटल स्टेशन में ठहरे थे और उनके पास दो मोबाइल फोन भी थे जिसमें कोई सिम नहीं लगा था. 


पुलिस कर रही बयान की जांच


बीते रविवार तीनों को प्रतापगढ़ जेल में पहुंचा गया है. पुलिस इन आरोपियों के बयान की जांच कर रही है. इन लोगों ने जितनी भी चीजों का जिक्र किया है उसके साक्ष्य इकट्ठा किए जा रहे हैं.  


हत्या का मास्टरमाइंड कोई और भी हो सकता है


अतीक अहमद का सत्ता के गलियारों से पुराना रिश्ता रहा है. वह खुद चार बार विधायक और एक बार सांसद रह चुका था. ऐसे में सियासी गलियारों में उसके दुश्मनों की भी कमी नहीं होगी इसके अलावा कई लोग ऐसे भी होंगे जो किसी न किसी तरीके से माफिया डॉन अतीक अहमद के साथ कोई कारोबारी रिश्ता रखते होंगे. 


ऐसे लोगों में कुछ बिल्डर, अधिकारी या सफेदपोश शामिल हो सकते हैं जिन्हें ये भी डर रहा होगा कि अतीक और अशरफ उनके खिलाफ जा सकते थे. इन दोनों के कई ऐसे बिल्डरों से भी रिश्ते थे जो इन माफियाओं की अवैध पैसे को अपनी परियोजनाओं में लगाते थे.


काले धन को परियोजनाओं में लगाकर सफेद करने के बदले अतीक इन बिल्डर्स को संरक्षण देता था. अतीक की 50-100 करोड़ तक की रकम प्रयागराज से लेकर लखनऊ तक कई प्रोजेक्ट्स में लगी हुई थी. ऐसे में यह आसार जताए जा रहे हैं कि करोड़ों की रकम हड़पने के लिए यह हत्या कराई गई हो.


कुछ सालों पहले अतीक अहमद जब साबरमती जेल में था तब उसने किसी नेता को फोन किया था और मदद की गुहार लगाई थी. वह बातचीत सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी की गई थी. अभी तक उस नेता के बारे में खुलासा नहीं हुआ है लेकिन अब लोग जानना चाहते हैं कि आखिर उस आवाज के पीछे किसका चेहरा था. वो नेता किस सियासी पार्टी के थे और अतीक की मदद कैसे कर सकते थे. 


अतीक-अशरफ का मारा जाना कानून-व्यवस्था पर उठा रहा सवाल


योगी सरकार खुद सख्त कानून व्यवस्था लागू करने का श्रेय देती रही है. सीएम योगी ने सार्वजनिक मंचो पर यह दावा भी किया है कि उनके सत्ता में आने के बाद से उत्तर प्रदेश में अपराध कम हुए हैं. लेकिन अतीक- अशरफ की हत्या ने इन दावों पर सवाल उठा दिए हैं. किसी की भी पुलिस कस्टडी में हत्या किया जाना, मीडिया के कैमरों के सामने मार देना कई बड़े सवाल खड़ करता है. 


वरिष्ठ पत्रकार रुमान हशमी ने एबीपी से बातचीत में कहा इस हत्या से योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक नुकसान ही हुआ है. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अतीक और अशरफ एक बड़ा मुद्दा बन सकते थे. अगर ये दोनों बाहुबली नेता जिंदा होते तो साल 2024 के चुनाव में पार्टी इस मुद्दे को भुनाती. 


हालांकि इस हत्याकांड का योगी सरकार को कोई पोलिटिकल फायदा मिला या नहीं ये सवाल काफी पेचीदा है क्योंकि भले ही अतीक और अशरफ की हत्या का योगी आदित्यनाथ को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला हो. लेकिन अतीक के बेटे असद का एनकाउंटर हुआ तो उसका काफी पॉलिटिकल माइलेज योगी आदित्यनाथ को मिला. 


अतीक को मारने के लिए किस पिस्टल का किया गया था इस्तेमाल 


अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में मीडिया के सामने हत्या की वारदात कैमरे में रिकॉर्ड हो गई है. वीडियो में देखा गया कि पुलिस की मौजूदगी में ये बदमाश बिना रुके अतीक और अशरफ पर लगातार फायर करते रहे. इस हत्याकांड के लिए जिगाना पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था. दावा है कि ये वही पिस्टल है, जिससे पिछले साल पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या की गई थी.


यह पिस्टल ऑटोमेटिक है जो तुर्की में बनी थी. यह पिस्टल फायरिंग के दौरान जल्दी गर्म नहीं होती और यही इसकी खासियत भी है क्योंकि इससे फायरिंग के दौरान हाथ नहीं जलते और चलाने वाले के लिए सुरक्षित होती है. इस पिस्टल पर एडजस्टेबल साइट लगा सकते हैं. यह एक बार में बिना रुके 15-17 राउंड फायर कर सकती है.


बता दें कि इस पिस्टल को सबसे पहले साल 2001 में तुर्की की एक कंपनी टीआईएसएएस ने बनाया था. तब से इसके 16 अपडेटेड मॉडल मार्केट में आ चुके हैं. इसका 9 एमएम मॉडल भारत में सबसे ज्यादा मौजूद है. हालांकि, यह पिस्टल भारत में प्रतिबंधित है लेकिन पाकिस्तान के रास्ते इसकी अवैध सप्लाई की जाती है.


तुर्की में इस पिस्टल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, इसके साथ ही अजरबैजान और मलेशिया की सेना, फिलीपींस पुलिस और अमेरिकी कोस्टगार्ड भी इसका प्रयोग करते हैं.


अतीक की हत्या के बाद पुलिस की चूक पर सवाल क्यों उठ रहा है?


अतीक अहमद पर 100 से ज्यादा मामले और अशरफ पर 52 आपराधिक मुकदमा दर्ज है. ऐसे में पुलिस दोनों को एक ही हथकड़ी में बांधकर रखी थी. हत्याकांड के वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि हत्यारों ने पहले अतीक अहमद को गोली चलाई, जिसके बाद अशरफ भी जमीन पर गिरता है और हमलावर उन दोनों को  गोलियों से भून देता है. 


इस हत्याकांड से पहले भी अतीक अहमद अपनी सुरक्षा को लेकर कई बार-बार चिंता जाहिर कर चुका था. इसके बावजूद सावधानी नहीं बरती गई. अतीक पुलिसकर्मी के बीच रुककर मीडिया से बात कर रहा था. आमतौर पर अंडर ट्रायल कैदियों को पुलिस मीडिया से बात नहीं करने देती है. त्वरित एक्शन लेते हुए यूपी सरकार ने 17 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है.


पहली बार नहीं जब पुलिस कस्टडी के दौरान हुई हत्या


यूपी में पुलिस कस्टडी में साल 2017 से लेकर साल 2022 तक 41 लोगों की मौत हो चुकी है. लोकसभा में गृह मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक 2017 में 10, 2018 में 12, 2019 में 3, 2020 में 8 और 2021 में 8 लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई है.


यूपी में पुलिस कस्टडी में मौत को लेकर सवाल उठ चुका है और कई बार सपा योगी सरकार को घेर चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के एक आदेश में कहा था कि पुलिस कस्टडी में हत्या जघन्य अपराध है.


सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल, 28 अप्रैल को सुनवाई संभव
पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ की हत्या का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. एडवोकेट विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हत्या पर सवाल उठाया है. याचिका में कहा गया है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. न्यायपालिका के सिवाय किसी को भी मौत की सजा देने का अधिकार नहीं है. 


तिवारी ने 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हुई 183 एनकाउंटर की जांच की भी मांग की है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इसको हम 28 अप्रैल को लिस्ट करेंगे.