Auraiya News: यूपी (UP) के औरैया (Auraiya) जिले में दर्दनाक हादसा सामने आया है, जहां कच्चे मकान की दीवार गिरने से एक मासूम की जान चली गई. यह घटना रात की बताई जा रही है, जब मासूम बच्ची अपने चाचा के घर सोने के लिए भाई-बहन के साथ गई हुई थी, तभी अचानक अकेले लेटी बच्ची के ऊपर दीवार गिर गई, जिसमें वह दब गई. हादसे की खबर लगते ही परिजनों ने कड़ी मशक्कत के बाद बच्ची को बाहर निकाला और आनन-फानन में अस्पताल ले गए, हालांकि डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.


पूरा मामला अयाना थाना क्षेत्र के रहटौली गांव का है. परिजनों ने आरोप लगाया है कि कई बार प्रशासन से आवास के लिए कहने के बाद भी नहीं दिया गया, जिसकी वजह से आज उनकी बच्ची इस दुनिया को छोड़ कर चली गई. गौरतलब है कि यूपी में जहां गरीबों को आवास देने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजनाओं को गांव, कस्बों के साथ-साथ शहरों तक पहुंचाया जा रहा है. लेकिन औरैया में आवास न मिलने पर एक मासूम की जान चली गई. यहां कच्चे मकान में रहने वाला शख्स कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर काटता रहा, लेकिन आवास नहीं मिला और एक दिन ऐसी घटना घट गई.


पुलिस को नहीं दी गई सूचना


इस बीच परिजनों ने घटना की जानकारी पुलिस को दिए बिना बच्ची का अंतिम संस्कार भी कर दिया. अयाना थाना के रहटौली निवासी शिवेंद्र सिंह अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ गांव के बाहर झोपड़ी में रहते हैं. आवास के लिए कई बार आवेदन करने और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद भी खाली हाथ ही लौटना पड़ा. बच्चों की सुरक्षा के लिए शिवेंद्र अपने चारों बच्चों को नितेश (10), खुशी (06), तन्नू (4) और लव (2) को बड़े भाई राजेंद्र कुमार के घर पर भेज देता था. शनिवार शाम को भी बच्चे राजेंद्र के घर पर सोने के लिए गए थे. करीब साढ़े छह बजे तन्नू के ऊपर घर के बाथरूम की दीवार गिर गई, जिसमें वह बुरी तरह घायल हो गई. परिजनों ने उसे मलबे से निकालकर आनन-फानन में सीएचसी में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने उसको मृत बता दिया.


'आज मेरी बेटी जिंदा होती'


मृतक बच्ची के पिता शिवेंद्र का कहना है कि हम और हमारी पत्नी कच्ची झोपड़ी में अपने बच्चों के साथ रहते हैं, लेकिन सुरक्षा को देखते हुए हम अपने बच्चों को रात को सोने के लिए अपने भाई के घर भेज देते थे. आज यह हादसा हो गया और मेरी बेटी की मौत हो गई. उन्होंने आगे कहा, "हमने आवास के लिए सरकारी कर्मचारियों के दफ्तर के कई बार चक्कर काटे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. थक-हार कर हम भी घर पर बैठ गए. अगर आज आवास होता तो शायद मेरी बेटी जिंदा होती."


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