नई दिल्ली, एजेंसी। अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। फैसले से पहले देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने बुधवार को कहा कि बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि जमीन विवाद पर शीर्ष अदालत का जो भी फैसला होगा, उसे माना जाएगा। उन्होंने सभी से न्यायालय के फैसले का सम्मान करने की अपील की। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने प्रेस वार्ता में कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट में अपने सबूत पेश किए हैं और अब जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान करना चाहिए।


मदनी ने यह भी उम्मीद जताई कि शीर्ष अदालत कानून के आधार पर फैसला देगी न कि आस्था के आधार पर। उन्होंने यह भी कहा कि देश में सांप्रदायिक सौहार्द हर-हाल में कायम रहना चाहिए। मदनी ने कहा कि कुछ महीने पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से उनकी मुलाकात भी इसी मुद्दे को लेकर हुई थी।


अदालत के फैसले से पहले किसी तरह की मध्यस्थता की सम्भावना को खारिज करते हुए मदनी ने कहा कि, 'बाबरी मस्जिद शरिया के मुताबिक एक मस्जिद है और कयामत तक मस्जिद रहेगी। किसी शख्स के पास यह अधिकार नहीं है कि वह किसी विकल्प की उम्मीद में मस्जिद के दावे से पीछे हट जाए।' मदनी ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद का मुकदमा न केवल जमीन की लड़ाई है, बल्कि मुकदमा देश के संविधान और कानून की सर्वोच्चता का भी मुकदमा है।



गौरतलब है कि, सुप्रीम कोर्ट धार्मिक भावनाओं एवं राजनीति के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में 17 नवंबर से पहले फैसला सुना सकती है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई उसी दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे हैं।