अयोध्या में बनने वाली मस्जिद और अस्पताल को विदेश के फंड का इंतजार, लोग बोले- 'अब कोई नहीं आता'
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के प्रवक्ता अतहर हुसैन का कहना है कि 100 बेड का भी अस्पताल हम बनाते हैं तो कम से कम 100 करोड़ रुपए की लागत आएगी जो अभी तक नहीं इंतजाम हो पाया है.
Ayodhya Dhanni Pur Masjid: सुप्रीम कोर्ट का अयोध्या को लेकर फैसला आए 5 साल का वक्त बीत चुका है. इस फैसले में अयोध्या में मंदिर के अलावा मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन देने की बात कही गई थी, जो अयोध्या से 22 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में दी गई है. मस्जिद के लिए जमीन मिलने के बाद भी आज यहां पर मस्जिद निर्माण का काम शुरू नहीं हो पाया है. एबीपी न्यूज की टीम मस्जिद बनाने के लिये मिली जमीन की मौजूदा स्थिति जानने ग्राउंड जीरो पर पहुंची और जानने की कोशिश की कि अभी वहां की क्या स्थिति है.
दरअसल, 26 जनवरी 2021 को यहां सुन्नी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा बनाए गए इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट के लोग पहली बार मस्जिद की जगह जाकर झंडा फहराए थे और पौधारोपण करने के बाद जल्द ही मस्जिद निर्माण का काम शुरू करने का आश्वासन दिया था. इसके बाद कुछ दिन बाद जब वहां का नक्शा आया उसमें मस्जिद के साथ एक मल्टी स्पेशलिटी 300 बेड का अस्पताल, एक कम्युनिटी किचन और एक म्यूजियम बनाने की बात कही गई थी. उसके बाद फंडरेजिंग को लेकर काम शुरू हुआ लेकिन आज 2024 में 6 दिसंबर तक यहां कोई काम शुरू नहीं हो पाया.
इस मामले में एबीपी न्यूज से फ़ोन पर बातचीत करते हुए इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के प्रवक्ता अतहर हुसैन कहते हैं कि इस पूरे प्रोजेक्ट में लगभग 300 करोड रुपए की जरूरत मस्जिद के साथ अन्य चीज बनाने को लेकर है, जिसमें हमारी प्राथमिकता वहां मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल को लेकर है और अगर पहले फेस में 100 बेड का भी अस्पताल हम बनाते हैं तो कम से कम 100 करोड़ रुपए की लागत आएगी जो अभी तक नहीं इंतजाम हो पाया है. उन्होंने कहा कि हमने अब FCRA के लिए भी अप्लाई किया हुआ है, उम्मीद है कि एफसीआरए की अनुमति मिलने के बाद जल्द ही विदेश से भी हमें बड़े स्तर पर फंड मिलेगा और आने वाले समय में हम मस्जिद निर्माण का काम शुरू कर सकेंगे.
5 साल बाद अयोध्या में बनने वाली मस्जिद का क्या हुआ? कितने पैसे जुटे
क्या बोले वहां के लोग
धन्नीपुर के स्थानीय निवासी मोहम्मद इस्लाम ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा कि पहले तो 26 जनवरी और 15 अगस्त को लोग यहां झंडा फहराने भी आते थे लेकिन इस बार ना 26 जनवरी ना 15 अगस्त को कोई आया और गांव वाले लोगों ने ही यहां पर झंडा फहराने का काम किया है. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद तो थी बन जायेगा तो स्थिति बेहतर होगी. अस्पताल को लेकर काफी उम्मीदें हैं क्योंकि अभी लखनऊ जाना पड़ता है और काफी समय लग जाता है. लोगों की जान बचाने के लिए खुल जाए तो बेहतर है, लेकिन अल्लाह जाने कब तक खुलेगा. उन्होंने कहा कि हमारी जो आशा थी वह निराशा में बदल गई है. अगर बन जाएगी तो निराशा को आशा में फिर बदल लेंगे.
मस्जिद जहां बननी हैं, वहां अभी एक दरगाह भी है. इस दरगाह का नाम शाहगदा दरगाह है. जिस दरगाह पर लोग इबादत करने आते हैं. यहीं इबादत करने आये शकील अहमद का कहना है कि इस दरगाह पर लोग दूर-दूर से आते हैं और उनकी मुराद यहां पूरी होती है. उन्होंने आरोप लगाया कि शासन प्रशासन के लापरवाही के कारण ऐसा हो रहा है. पैसे के अभाव जैसी कोई बात नहीं है और हिंदुस्तान के अंदर मुसलमान और हिंदू दोनों धर्म के लिए जान न्योछावर कर सकता है. अगर आज इजाजत दे तो आज रुपए आ जाएगा. हम दो वक्त की रोटी कम खाएंगे लेकिन अस्पताल पहले बनवाएंगे, जिससे हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सबको अस्पताल की सुविधा मिल सके.