Ram Mandir Pran Pratishtha: अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह है, जिसकी तैयारियां जोरों से चल रही हैं. वहीं इस भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए देश भर के प्रतिष्ठित लोगों को न्योता दिया जा रहा है, इस बीच कानपुर के एक परिवार ने उन्हें न्योता न मिलने पर नाराज़गी जताई है. इस परिवार को कहना है कि उनके परिवार के एक सदस्य ने कारसेवा के दौरान अपना जान दी और दूसरी सदस्य डेढ़ महीने तक जेल में रहा फिर उन्हें न्योता नहीं दिया गया है. 


कानपुर के किदवई नगर इलाके में रहने वाली बुजुर्ग महिला आदर्श नागर ने अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण पर बहुत खुशी जताई है. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इस बात को लेकर दुख भी जताया कि उनके परिवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का न्योता नहीं दिया गया है. जबकि उनके परिवार के दो सदस्यों ने कारसेवा के दौरान राम मंदिर के लिए संघर्ष किया था. 


कारसेवा के दौरान गई थी जान
पुराने दिनों को याद करते हुए बुजुर्ग महिला ने कहा कि, 2 नवम्बर 1990 को जब अयोध्या में पुलिस और सुरक्षाबलों ने कारसेवकों पर गोलियां बरसाई थीं तो उनमें उनके देवर अमित कुमार नागर भी गोली का शिकार हुए थे और उसकी लाश को सरयू नदी में फेंक दिया गया था. फिर उसी वर्ष 6 दिसंबर को जब विवादित ढांचा ढहाया गया तब वह खुद अपने पति डाक्टर सतीश कुमार नागर के साथ कारसेवा में शामिल हुईं थीं. 


महिला ने कहा, इस मामले में उनके पति का नाम भी एफआईआर में शामिल किया गया था. जिसके चलते उनके पति को 8 दिसंबर 1992 को कानपुर से गिरफ्तार कर फतेहगढ़ जेल में बंद किया गया था. करीब 50 दिन बाद वह जमानत पर बाहर आए थे. जेल से बाहर आने के बाद भी लगातार उनके पति मुकदमे का दंश झेलते रहे. समय-समय पर पर जांच एजेंसियों के सवालों का सामना करते रहे और साल 2007 में उनकी मृत्यु हो गई.


न्योता न मिलने पर जताई नाराजगी
डॉक्टर नागर की पत्नी आदर्श नागर जो काफी बुजुर्ग हो चुकी हैं उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि उनके परिवार को न्योता इसलिए नहीं मिला क्योंकि उनका परिवार साधारण है. सरकार बड़े-बड़े लोगों और वीआईपी लोगों को ही न्योता दे रही है न कि उनके परिवार को जिसने दुख यातना और कष्ट झेले. उन्हें ख़ुशी है कि जिस मंदिर के लिए उनके पति ने लंबी लड़ाई लड़ी, देवर ने अपना जीवन बलिदान किया वो कार्य अब सफल हो रहा है. 


हालांकि इस मामले में कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस में जिन अमित कुमार की मौत हुई थी वो इस परिवार के गोद लिए हुए थे. जबकि कुछ लोगों का मानना है कि अमित इस परिवार के नौकर थे. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहले भी इस मामले की जांच की थी, लेकिन आज तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. 


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