UP News: अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण प्रगति पर है और 2023 दिसंबर तक मंदिर आम जनमानस के लिए बनकर तैयार हो जाएगा. मंदिर निर्माण की प्रगति के लिए भवन निर्माण समिति की बैठक प्रत्येक माह की जाती है. इस बार राम मंदिर निर्माण समिति की बैठक के बाद ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय (Champat Rai) ने बयान जारी किया. 


उन्होंने कहा कि रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान रामलला की मूर्ति उत्सव और चल मूर्ति के नाम पर रहेगी जबकि मुख्य मूर्ति (अचल मूर्ति) की स्थापना होगी. उस मूर्ति के स्वरूप और उसके निर्माण को लेकर धार्मिक विद्वानों से मंथन किया जाएगा और उसके बाद उस पर आखिरी फैसला होगा.


क्या बोले अयोध्या के संत 
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के बयान से एक बात तो तय है कि भगवान रामलला जो पिछले 70 वर्षों से भगवान राम जन्म स्थली पर विराजमान है, उनके साथ मुख्य मूर्ति अचल मूर्ति (जिनको गर्भ ग्रह से बाहर नहीं निकाला जा सकता) के रूप में प्रतिष्ठित करने की तैयारी में है. ट्रस्ट के ताजा बयान से अयोध्या के संतों में रोष है. रामलला के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि विराजमान रामलला की मूर्ति ही मुख्य मूर्ति है. उन्हीं के नेतृत्व में राम मंदिर विवाद पर फैसला आया और न्यायाधीशों की बेंच ने विराजमान रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया. विराजमान रामलला श्री मुख्य मूर्ति के रूप में स्थापित हो इसके अलावा अगर कोई अन्य मूर्ति की स्थापना ट्रस्ट करना चाहता है तो वह कर सकता है. आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला के भक्तों की भावना को ध्यान में रखते हुए यह अपील की है कि जो मुख्य मूर्ति है वहीं नए भव्य दिव्य मंदिर में भी मुख्य मूर्ति के रूप में स्थापित हो.


क्या है मामला
राम मंदिर विवाद सैकड़ों वर्ष पुराना है जिस पर कई बार संघर्ष भी हुआ. 23 दिसंबर 1949 को विवादित परिसर में रामलला प्रकट हुए तब से ही भगवान राम की जन्म स्थली पर यह मूर्ति स्थापित है. भगवान राम लला के प्रकट होने के बाद बढ़े विवाद के कारण विवादित स्थल मानकर भगवान राम लला की जन्मस्थली पर ताला लगा दिया गया है. 1 फरवरी 1986 में कोर्ट के आदेश के बाद खुला, 1949 से ही विराजमान रामलला की ही मूर्ति की पूजा राम जन्म भूमि की जा रही है. 9 नवंबर 2019 को विराजमान रामलला के पक्ष में ही फैसला भी आया और फैसले के बाद 25 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे वैदिक रीति रिवाज के साथ रामलला के विग्रह को अपनी गोद में लेकर अस्थाई मंदिर में विराजमान कराया. भगवान राम के जन्म स्थली पर भव्य मंदिर निर्माण शुरू हो सका.


क्या दिया था बयान
बीते दिनों भवन निर्माण समिति की बैठक के बाद ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बयान दिया कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति होती है, जो अचल रहती है और स्थिर रहती है. उनको हटाया नहीं जा सकता है, जो आकृति में बड़ी होती है. दूसरी प्रतिमा चल प्रतिमा होती है, जिन्हें उत्सव मूर्ति भी कहते हैं. किसी भी पूजा और उपासना में उन्हें गर्भ गृह के बाहर भी निकाला जा सकता है. इसलिए 70 वर्षों से समाज जिन मूर्तियों का पूजन कर रहा है वह नए भव्य दिव्य मंदिर में उत्सव मूर्ति का स्वरूप ग्रहण करेंगी. वहीं चंपत राय ने कहा कि किसी भी बड़े मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां और उत्सव मूर्तियां एक साथ रहती हैं, एक ही सिंहासन पर.


क्या बोले मुख्य पुजारी
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के बयान पर राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने एतराज जताया है. आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि जिस मूर्ति को उत्सव मूर्ति बता रहे हैं वह उत्सव मूर्ति नहीं है. 70 वर्षों से यह मूर्ति राम जन्मभूमि परिसर में विराजमान है. इसी मूर्ति की तरफ से मुकदमा लड़ा गया था. इसी मूर्ति के वजह से कोर्ट ने यह प्रमाण माना कि जहां पर विराजमान रामलला मौजूद हैं. वहीं रामलला की जन्मस्थली है, इसी मूर्ति को लेकर के 9 नवंबर 2019 में आदेश भी हुआ. विराजमान रामलला की मूर्ति सबसे श्रेष्ठ सर्वमान्य और पूजनीय है.


प्रधान पुजारी ने कही ये बात
रामलला के प्रधान पुजारी ने कहा कि भगवान रामलला की मूर्ति को केवल उत्सव मूर्ति कहकर उपेक्षित करना यह सही नहीं है. राम जन्मभूमि परिसर में जितनी मूर्तियां चाहे उतनी स्थापित कर ले लेकिन वरीयता विराजमान रामलला को होना चाहिए. इसी मूर्ति के नाम से हमको विजय मिली, जिस वजह से आज भव्य दिव्य मंदिर बन रहा है. अगर इस मुख्य मूर्ति को प्रेषित किया जाएगा तो रामलला के भक्तों को ठेस पहुंचेगी. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के तरफ से की जा रहे बयान बाजी उचित नहीं है. राम जन्मभूमि परिसर में और भी मूर्तियां स्थापित करें और उससे बड़ी भी मूर्ति रखें. इस पर किसी को एतराज नहीं होगा लेकिन वरीयता इन्हीं मूर्तियों की होनी चाहिए. जो अस्थाई मंदिर में विराजमान है, जिनकी पूजा 70 वर्षों से होती चली आ रही है.


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