Ram Lala Surya Tilak: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्री रामलला के 'सूर्य तिलक' के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं. बुधवार को रामनवमी के दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें रामलला के मस्तक पर पड़ेंगी और दर्पण व लेंस से जुड़े एक विस्तृत तंत्र द्वारा उनका 'सूर्य तिलक' संभव हो सकेगा.
अयोध्या में 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नए मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की प्रतिष्ठा के बाद यह पहली रामनवमी होगी. इस प्रणाली का परीक्षण वैज्ञानिकों ने मंगलवार को किया. इसे ''सूर्य तिलक परियोजना'' का नाम दिया गया है.
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिक डॉ एस के पाणिग्रही ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि ''सूर्य तिलक परियोजना का मूल उद्देश्य रामनवमी के दिन श्री राम की मूर्ति के मस्तक पर एक तिलक लगाना है. परियोजना के तहत, श्री रामनवमी के दिन दोपहर के समय भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी लाई जाएगी.''
उन्होंने बताया कि ''सूर्य तिलक परियोजना के तहत हर साल चैत्र माह में श्री रामनवमी पर दोपहर 12 बजे से भगवान राम के मस्तक पर सूर्य की रोशनी से तिलक किया जाएगा और हर साल इस दिन आकाश पर सूर्य की स्थिति बदलती है.''
रामनवमी की तिथि हर 19 साल में दोहराती है...
उन्होंने कहा कि ''विस्तृत गणना से पता चलता है कि श्री रामनवमी की तिथि हर 19 साल में दोहरायी जाती है.''
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई), रुड़की के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, नियोजित तिलक का आकार 58 मिमी है.
उन्होंने बताया कि रामलला के मस्तक के केंद्र पर तिलक लगाने की सही अवधि लगभग तीन से साढ़े तीन मिनट है, जिसमें दो मिनट पूर्ण रोशनी होती है.
इस बीच, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा ने कहा, 'सूर्य तिलक के दौरान, भक्तों को राम मंदिर के अंदर जाने की अनुमति दी जाएगी. इसके लिए मंदिर ट्रस्ट द्वारा लगभग 100 एलईडी और सरकार द्वारा 50 एलईडी लगाई जा रही हैं. जो रामनवमी समारोह को दिखाएगा, लोग जहां मौजूद हैं वहां से उत्सव देख सकेंगे.
इस अद्वितीय तंत्र को स्थापित करने में अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा करते हुए, सीएसआईआर-सीबीआरआई, रुड़की के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. डी. पी. कानूनगो ने कहा, 'वास्तव में यह अत्यंत सटीकता प्राप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध, डिजाइन और कार्यान्वित किया गया है.'
बादल आ गए तो?
उन्होंने कहा, 'यह हमारे देशवासियों के सामने प्रदर्शित करने के लिए हमारे वैज्ञानिक कौशल और स्वदेशी तकनीकी विकास का एक प्रमाण होगा, जिन्हें हमारे वैज्ञानिक समुदाय पर पूरा भरोसा है और उनका समर्थन है.'
यह पूछे जाने पर कि आकाश में बादल छाए रहने की स्थिति में सूर्य तिलक का क्या होगा, कानूनगो ने कहा, 'यही सीमा है. हम अपने लोगों की आस्था और विश्वास के कारण कृत्रिम रोशनी के साथ ऐसा नहीं करना चाहते हैं.'
सीएसआईआर केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, रुड़की की टीम ने भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बैंगलोर के परामर्श से मंदिर की तीसरी मंजिल से गर्भगृह तक सूर्य के प्रकाश को पहुंचाने के लिए एक तंत्र विकसित किया है. गर्भगृह में सूर्य की रोशनी लाने के लिए विस्तृत संपूर्ण डिज़ाइन सीबीआरआई द्वारा विकसित किया गया है, जिसमें आईआईए ऑप्टिकल डिजाइन के लिए अपना परामर्श प्रदान किया है.
बार-बार परीक्षण किए गए
सूर्य तिलक के लिए राम मंदिर में ऑप्टो-मैकेनिकल प्रणाली लागू करने से पहले, रुड़की इलाके के लिए उपयुक्त एक छोटा मॉडल सफलतापूर्वक मान्य किया गया है. मार्च 2024 में बेंगलुरु में ऑप्टिका साइट पर एक पूर्ण पैमाने के मॉडल को सफलतापूर्वक मान्य किया गया है.
पाणिग्रही ने कहा कि सीएसआईआर-सीबीआरआई, रुड़की टीम ने आईआईए बैंगलोर और ऑप्टिका बैंगलोर के साथ मिलकर अप्रैल के पहले सप्ताह में इंस्टॉलेशन पूरा कर लिया है और बार-बार परीक्षण किए गए हैं.
इस बीच, सूर्य तिलक के लिए ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम के बारे में बताते हुए, पाणिग्रही ने कहा, 'ऑप्टो-मैकेनिकल सिस्टम में चार दर्पण और चार लेंस होते हैं जो झुकाव तंत्र और पाइपिंग सिस्टम के अंदर फिट होते हैं.''
उन्होंने कहा, ''दर्पण और लेंस के माध्यम से सूर्य की किरणों को गर्भगृह की ओर मोड़ने के लिए झुकाव तंत्र के लिए एपर्चर के साथ पूरा कवर शीर्ष मंजिल पर रखा गया है. अंतिम लेंस और दर्पण सूर्य की किरण को पूर्व की ओर मुख किये हुए श्रीराम के माथे पर केंद्रित करते हैं.''
उन्होंने कहा कि ''झुकाव तंत्र का उपयोग प्रत्येक वर्ष श्रीराम नवमी पर सूर्य तिलक बनाने के लिए सूर्य की किरणों को उत्तर दिशा की ओर भेजने के लिए पहले दर्पण के झुकाव को समायोजित करने के लिए किया जाता है.''
पाणिग्रही के मुताबिक 'सभी पाइपिंग और अन्य हिस्से पीतल सामग्री का उपयोग करके निर्मित किए जाते हैं. जिन दर्पणों और लेंसों का उपयोग किया जाता है वे बहुत उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं और लंबे समय तक चलने के लिए टिकाऊ होते हैं. '
काले पाउडर का लेप लगाया गया
पाणिग्रही ने कहा, ''सूरज की रोशनी के बिखरने से बचने के लिए पाइपों, कोहनियों और बाड़ों की भीतरी सतह पर काले पाउडर का लेप लगाया गया है. इसके अलावा, शीर्ष एपर्चर पर, आईआर (इन्फ्रा रेड) फिल्टर ग्लास का उपयोग सूर्य की गर्मी की लहर को मूर्ति के मस्तक पर पड़ने से रोकने के लिए किया जाता है.'
उन्होंने कहा कि सीएसआईआर-सीबीआरआई रुड़की की टीम में डॉ. एसके पाणिग्रही, डॉ. आरएस बिष्ट, कांति सोलंकी, वी चक्रधर, दिनेश और समीर शामिल हैं. प्रोफेसर आर प्रदीप कुमार (निदेशक, सीएसआईआर-सीबीआरआई) ने परियोजना का मार्गदर्शन किया.
आईआईए बेंगलुरु की ओर से डॉ. अन्ना पूर्णी एस (निदेशक आईआईए), एर एस श्रीराम और प्रोफेसर तुषार प्रभु सलाहकार हैं. ऑप्टिका के प्रबंध निदेशक राजिंदर कोटारिया और उनकी टीम नागराज, विवेक, थावा कुमार निर्माण और स्थापना भाग में सक्रिय रूप से शामिल हैं.