Uttar Pradesh News: नेपाल से बिहार होते हुए देवशिला (Shaligram Devshila) अयोध्या (Ayodhya) पहुंच चुकी है. लोगों के जहन में यह उत्सुकता जरूर होगी कि अब इसका क्या होगा और किस तरह की पूजा होगी. इन सब सवालों के साथ यह भी जान लीजिए कि जिन रास्तों से यह देवशिला लाई गई है उन्हीं रास्तों से त्रेता युग में भगवान श्री राम खुद बिहार होते हुए जनकपुर गए थ, इसीलिए लोगों ने दो शिलाओं में से बड़ी को श्री राम मान लिया तो छोटी को माता सीता मान लिया. दृश्य ऐसा था कि मानों सीता की विदाई हो रही हो और लोग दुखी इसलिए भी थे कि एक बार श्री राम गए तो वापस फिर कभी मिथिला नहीं आए तो इस बार भी राम जा रहे हैं तो वापस आएंगे कि नहीं.
गुरुवार 2 फरवरी को अयोध्या के श्रीराम कारसेवक पुरम में लाई गई इन दोनों शिलाओं की पूजा किस तरह होगी इसको लेकर हर किसी के मन में उत्सुकता जरूर होगी. यह जानने के पहले यह जान लीजिए कि यह दोनों शिलाएं नेपाल सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को दान स्वरूप दी हैं. शिलाओं को हस्तांतरित करने के लिए प्रतिनिधि के तौर पर नेपाल से जानकी धाम के मुख्य महंत और वहां के पूर्व उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि भी शिला के साथ आए हैं. शास्त्रनुसार पूरे विधि विधान से नेपाल सरकार की तरफ से यह दोनों प्रतिनिधि श्री राम मंदिर ट्रस्ट को सौंपेंगे. इस दौरान जो विधि विधान और दान अर्पित करने की पद्धति होती है वैसा ही कुछ आपको श्रीराम कारसेवक पुरम में देखने को मिलेगा.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने बताया कि, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को नेपाल सरकार द्वारा यह दान दिया गया है और उनके अधिकृत यह लोग आए हैं. पूज्य महंत और एक प्रतिनिधि उनके साथ हैं. वहां के पूर्व उप प्रधानमंत्री विमलेंद्र निधि जी मिलकर शास्त्र विधि से ट्रस्ट को समर्पित करेंगे.
बैठक में लिया जाएगा बड़ा फैसला
अब सवाल उठता है कि क्या नेपाल से लाई गई इन्हीं देव शिलाओं से श्री राम जन्मभूमि मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान होने वाले रामलला की मूर्ति बनाई जाएगी तो इसका जवाब सीधे तौर पर इतना भर है कि शिलाओं के हस्तांतरण के बाद श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठक होगी. इस बैठक के दौरान शास्त्रीय विशेषज्ञ धार्मिक विद्वान और कला की दृष्टि से विशेषज्ञ भी मौजूद होंगे. इसी बैठक के दौरान यह तय होगा कि इन शिलाओं से गर्भ गृह में प्राण प्रतिष्ठित किए जाने वाले रामलला की मूर्ति तैयार होगी या फिर इनका उपयोग राम दरबार या अन्य कहीं किया जाएगा .
कामेश्वर चौपाल ने बताया कि इसमें ट्रस्ट के लोगों ने कुछ निर्णय लिया है कि कितनी बड़ी मूर्तियां बनेंगी और कैसी बनेंगी यानी उनका स्वरूप क्या होगा. इन बिंदुओं पर विचार हुआ हैं. इसके बाद फिर से ट्रस्ट के लोग बैठेंगे. शास्त्रीय विशेषज्ञ और कला की दृष्टि से विशेषज्ञ बैठकर जो निर्णय करेंगे वह आगे किया जाएगा.
जनकपुर और मिथिला के लोगों को है ये आशंका
भले ही अभी तक राम मंदिर ट्रस्ट ने कोई अंतिम निर्णय न लिया हो, लेकिन लोगों ने तो बड़ी शिला को श्री राम और छोटी को माता सीता के रूप में देख भी लिया है मान भी लिया है और पूज भी लिया है. जनकपुर और मिथिला के लोगों को आशंका है तो केवल यह कि जैसे त्रेता में राम आए थे और गए तो घूम कर फिर से मिथिला में नहीं आए, आज फिर से जा रहे हैं तो वापस आएंगे कि नहीं आएंगे.
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल ने बताया कि, हम लोग तो नेपाल के उत्साह से अधिक उत्साहित हो गए. नेपाल के लोग जब तक शिला की खोज हुई थी तब तक इतने उत्सुक नहीं थे और जैसे ही खोज हो गई वैसे ही वह शिला को सीधे-सीधे भगवान राम से जोड़ दिए हैं और उसका नाम वहां पर देवशिला रखा गया, उसके बाद निर्णय हुआ कि पूजा करेंगे, इसके लिए शिला को लेकर जनकपुर गए.
श्रद्धा से लबरेज भावनाओं की कोई सीमा नहीं होती इसीलिए नेपाल से भारत में प्रवेश करते समय देशों की सीमाएं टूट गईं. नेपाल और भारत दोनों तरफ के लोग ऐसे मिल गए जैसे सीता की विदाई हो रही हो, कहीं क्रंदन था तो कहीं आंसू से भरी आंखों से शिला को पकड़ना, छूना यह फिर दुलारा.
कामेश्वर चौपाल ने बताया कि, जैसे हम लोगों ने नेपाल से भारत में प्रवेश किया तो वह बॉर्डर की सीमा टूट गई. भौगोलिक सीमा टूटी और दोनों तरफ के लोग ऐसे मिल गए जैसे मिथिला से सीता की विदाई हो रही है और राम के साथ सीता जा रही हैं. उस समय का दृश्य बहुत कारुणिक भी था .
अब इसे संयोग कहेंगे या फिर देव इच्छा कि जनकपुर से विहार होते हुए जिन रास्तों से यह शिला अयोध्या तक पहुंची है, त्रेता युग में कभी इन्हीं रास्तों से श्री राम बिहार होते हुए जनकपुर गए थे. इसीलिए शिला लेकर आ रहे राम मंदिर ट्रस्ट के लोगों को रास्ते का दृश्य देखकर ऐसा महसूस हुआ मानो त्रेतायुग वापस आ गया हो. कामेश्वर चौपाल ने बताया कि, मुझे लगता है कि, बिहार की सीमा में घुसते और निकलते समय जनसैलाब ही जनसैलाब था. ऐसा लग रहा था कि त्रेता युग वापस आ गया है. संयोग था कि कभी त्रेता युग में इसी मार्ग से होते हुए बिहार गए थे.
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