Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत की आजादी के 75 साल (75 Years Of Freedom) पूरे होने पर हम उन शहीदों को याद कर रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की. ऐसे ही एक कहानी जौनपुर (Jaunpur) से जुड़ी हुई है. जौनपुर शहर से करीब 20 किमी दूर सिरकोनी ब्लॉक का हौज गांव (Hauz Village) कोई मामूली गांव नहीं है. इस गांव के लोगों ने 1857 की लड़ाई में अंग्रेजी हुकूमत के सुपर वाईजर समेत कई अंग्रेज अफसरों की हत्या कर दी थी. जिसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई थी. इस गांव के शहीदों की याद में बने शहीद पार्क को देख आज भी लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. 


गौरवान्वित कर देगी इस गांव की कहानी


सन् 1857 में आजादी का बिगुल बजा तो जौनपुर के युवाओं में भी जंगे आज़ादी का जज़्बा पैदा हो हुआ. सिरकोनी ब्लॉक के हौज गांव के ज़मींदार बालदत्त ने भी युवाओं की एक टोली तैयार कर ली. पांच जून 1857 को पता चला कि जौनपुर के सभी अंग्रेज अफसर अपने सुपर वाईजर के नेतृत्व में वाराणसी जा रहे हैं. बालदत्त ने अपने करीब सौ साथियों के साथ उन्हें रास्ते में घेर लिया और सभी को मौत के घाट उतार दिया और उनके शव वहीं दफन कर दिए गए. इसका पता जब अंग्रेज़ हुकूमत को चला तो सभी के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. इसी दौरान गांव के ही कुछ लोगों की गवाही पर 15 लोगों को फांसी की सजा सुना दी गई. जबकि बालदत्त को काला पानी की सजा सुनाई गई. सजा के दौरान ही उनकी भी मौत हो गई.


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शहीदों की याद में बनाया गया शहीद पार्क


गांव में एक साथ 16 लोगों की मौत के बाद मातम के साथ-साथ गर्व का भी माहौल बन गया. आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान देने वाले इस गांव का नाम पूरे भारत में गूंजने लगा. सन् 1986 में यहां पर शहीदों के सम्मान में एक स्मारक स्तंभ बनाया गया. जाफराबाद से सपा विधायक जगदीश नारायण राय की पहल पर इस स्मारक पर हर 15 अगस्त को मेला लगने लगा. इसमें नेता मंत्री अधिकारी आते थे. 


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