Baghpat: बागपत के बड़ौत नगर की रहने वाली किशनदेई और जयदेई ने भी 1857 के गदर में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. दोनों वीरांगनाएं ने 30 अंग्रेज सैनिकों को तलवारों से मौत के घाट उतारकर 22 क्रांतिकारियों को बचा लिया था. उसके बाद दोनों वीरांगनाएं शहीद हो गई थी. अंग्रेजों ने सभी क्रांतिकारियों को पत्थर के कोल्हू के नीचे कुचलने के लिए जमीन पर लेटा रखा था. बागपत के लोगों को दोनों वीरांगनाओं की बहादुरी पर तो गर्व है, लेकिन सरकार की बनाई क्रांतिकारियों की सूची से किशनदेई और जयदेई का नाम गायब है. 


क्रांतिकारियों की जान पर बनी तो खौल उठा खून
इतिहासकार डाक्टर महक सिंह ने बताया कि वर्ष 1857 में अंग्रेजी हुकूमत लोगों पर कहर बनकर टूट रही थी. बागपत के बड़ौत नगर में आंदोलन को कुचलने के लिए सैनिकों ने पत्थर का कोल्हू रख रखा था. जिसके नीचे क्रांतिकारियों को कुचला जाता था. जयदेई के परिवार के कई लोगों को अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया तो किशनदेई और जयदेई ने तलवार उठाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया था. किशनदेई ब्राह्मण और जयदेई जाट थी. दोनों में देशभक्ति का जज्बा कूट कूटकर भरा हुआ था. दोनों को इस बात का पता चला कि अंग्रेज सैनिकों ने 22 क्रांतिकारियों को पकड़कर जमीन पर लेटा रखा है और उन्हें पत्थर के कोल्हू से कुचला जाएगा. यह सुन दोनों वीरांगनाओं का खून खौल उठा और वे सैनिकों के बीच पहुंच गई और तलवार से 30 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतारकर सभी क्रांतिकारियों को छुड़ा लिया. उसके बाद अंग्रेज सैनिकों ने दोनों वीरांगनाओं को गोली मार दी, जिसके बाद दोनों शहीद हो गई. 


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सरकार से स्मारक बनाने की मांग
ब्राह्मण देश खाप 84 चौधरी सुभाष शर्मा ने बताया कि दोनों वीरांगनाओं के नाम क्रांतिकारियों की सूची में दर्ज कराए जाएंगे. इनकी पूरी जानकारी प्रशासन को दी जाएगी और सरकार से दोनों के स्मारक बड़ौत नगर में ही बनाने की पुरजोर मांग उठाई जाएगी. बीजेपी के पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित ने बताया कि वीरांगनाओं के नाम के स्मारक बनाने की मुख्यमंत्री से मांग की जाएगी.


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