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Azadi ka Amrit Mahotsav: रक्सा के मिश्र बंधुओं ने आजादी के आंदोलनों में निभाई थी अहम भूमिका, जानें उनकी कहानी

UP News: संतकबीरनगर-मेंहदावल क्षेत्र की मिट्टी में स्वतंत्रता आंदोलन की यादें समाई हुई है. क्षेत्र के रक्सा गांव के मिश्र बंधुओं की देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी.

Independence Day 2022: संतकबीरनगर-मेंहदावल क्षेत्र की मिट्टी में स्वतंत्रता आंदोलन की यादें समाई हुई है. अंग्रेजों से देश को आजाद कराने में यहां के युवाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ चढ कर हिस्सा लिया था. क्षेत्र के रक्सा गांव के मिश्र बंधुओं की देश को आजाद कराने में अहम भूमिका का गुणगान आज भी क्षेत्र के लोगो के जुबां पर आता हैं.

मेंहदावल विकासखंड के ग्राम पंचायत रक्सा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का गांव कहा जाता है. एक ही परिवार के चार सगे भाईयों ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया. आजादी के दीवानों का यह गांव आज भी विकास से महरूम है. रक्सा गांव निवासी पंडित पटेश्वरी प्रसाद मिश्र के 6 पुत्र थे. इसमे लालसा प्रसाद मिश्र सबसे बड़े थे. उनके छोटे भाई श्याम लाल मिश्र, बंशराज और दिजेन्द्र मिश्र थे जिन्होंने आजादी के संघर्ष में अपना योगदान दिया था.

14 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई में कुदे थें लालसा

14 वर्ष की उम्र में पंडित लालसा प्रसाद मिश्र आजादी के आंदोलन में अपनी सहभागिता शुरु कर दी थी. अंग्रेजी शासन के मुख्य स्तम्भ रहे राजा चंगेरा के विरुद्ध वर्ष 1930 में विद्रोह का बिगुल मिश्र बंधुओं ने फूंका था. जिसके बाद वह आंदोलन में चर्चाओं मे आये. सिद्धार्थनगर जनपद के बांसी में स्थित चंगेरा महल के सामने हुए विद्रोह के प्रतिफल में सभी को कठोर यातनाएं भी सहनी पड़ी थी. मिश्र बंधु आंदोलन के दिवाने थे. 

मुखबिरी के कारण मिशन नहीं हुआ पूरा

इनके भतीजे पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य जवाहर लाल मिश्र ने बताया कि मिश्र बंधुओं के बुलाने पर राजा चंगेरा को ठिकाने लगाने के लिए चन्द्रशेखर आजाद भी बांसी आये थे. मुखबिरी के कारण मिशन पूरा नहीं हो पाया और वह वापस चले गये. अंग्रेजी शासन के किरकिरी बने लालसा प्रसाद मिश्र को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर नैनी सेंट्रल जेल भेज दिया. जेल में बंद रहने के दौरान ही उनके इकलौते पुत्र की मौत भी हो चुकी थी लेकिन निरंकुश अंग्रेज सरकार उन्हें पुत्र के अंतिम दर्शन के लिए रिहा तक नहीं किया. आजादी के दीवाने के इरादे स्वतंत्रता आंदोलन से डिगे नहीं. 

उनके भाई भी अंग्रेजों के लड़ाई में शामिल हुए

जेल से छूटने के बाद इनके भाई श्याम लाल, बंशराज और दिजेन्द्र भी अंग्रेजो के विरुद्ध लड़ाई में शामिल हो गये. 1932 में पुनः उन्हें 6 माह की सजा हुई और अंग्रेजों ने लालसा को जेल में डाल दिया. जेल जाने के बाद भाई श्यामलाल ने आंदोलन की कमान संभाली. वे सविनय अवज्ञा आंदोलन मे शामिल हुए. इनको भी सरकार द्वारा 6 माह की कैद और 100 रुपये का जुर्माना लगाया.

इन जेलों में बंद रहे थे

असहयोग आंदोलन, नमक आंदोलन, दांडी यात्रा नील की खेती को बढ़ावा देने के लिए आंदोलन में लालसा मिश्रा ने आरएस पंडित, पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ नैनी सेंट्रल जेल में बंद रहे. वे कमलापति त्रिपाठी, लाल बहादुर शास्त्री, काटजू के साथ जौनपुर जेल में और बस्ती कारागार गोरखपुर के जेलों में बंद रहे.

10 अगस्त 1942 से 19 नवंबर 1944 तक मिश्र बंधुओं को नजरबंद रखा गया. बंशराज मिश्र के भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करने के कारण 3 दिसम्बर 1942 से जून 1943 तक जेल में बंद रहे. 15 अगस्त को देश आजाद हुआ तो मिश्र बंधु खुशी से झूम उठे.

इंदिरा गांधी ने किया था सम्मानित

पंडित लालसा प्रसाद मिश्र के भतीजे जवाहरलाल मिश्र और इनके प्रपौत्र संजय गांधी ने बताया कि आजादी के बाद लालसा प्रसाद विकासखंड के ब्लाक प्रमुख बने और बाद में विधायक के पद को सुशोभित किया था. 15 अगस्त 1972 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें दिल्ली बुलाकर अपने हाथों से सम्मानित किया था. आजादी के दौरान उनके योगदान को सराहा और ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था.

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