Azadi Ka Amrit Mahotsav: भारत को आजादी दिलाने में अनेक वीरों को अपने प्राणों की आहुति दी. हमारा इतिहास ऐसे कई वीरों की कहानियों से पटा हुआ है. यूपी के शामली में भी अनेक वीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया और स्वतंत्रता की राह में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. ऐसे शामली के बलिदानी क्रांतिकारी चौधरी मोहर सिंह का नाम सबसे पहले याद किया जाता है. क्रांतिकारी मोहर सिंह ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे.

 

क्रांतिकारी चौधरी मोहर सिंह की कहानी

शामली के क्रांतिकारी चौधरी मोहर सिंह ने अंग्रेजों की तहसील में आग लगा दी थी, जिसके बाद उन्होंने 6 महीने तक इस तहसील पर कब्जा करके रखा. बाद में अंग्रेजों ने उनकी हत्या कर दी थी और उनके शव को तीन दिन पेड़ पर लटकाएं रखा ताकि हिंदुस्तानियों में दहशत का माहौल हो जाए और कोई दूसरा उनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत न कर सके. आजादी के अमृत महोत्सव बलिदानी मोहर सिंह को खूब याद किया जा रहा है. उनके वंशज आज भी उन्हें याद कर गौरवान्वित हो उठते है तो वहीं शामली का हर शख्स गर्व महसूस करता है.

 

अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में खोला था मोर्चा
चौधरी मोहर सिंह अन्य क्रांतिकारियों के साथ 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और उनकी तोपों के आगे तन गए. कहा जाता है कि शहीद होने के बावजूद क्रांतिकारियों में दहशत फैलाने के लिए उनके शव को तीन दिन तक पेड़ पर लटका कर रखा गया था. शामली शहर के एसटी तिराहे पर स्थित एकता पार्क में चौधरी मोहर सिंह की प्रतिमा लगी है. इस प्रतिमा पर लगे शिलापट्ट पर चौधरी मोहर सिंह की शहादत की दास्तां लिखी है. वहीं अंग्रजी हुकुमत के दौर की वह तहसील की बिल्डिंग आज भी जर्जर अवस्था में खड़ी है.

 

1857 के आंदोलन की अगुवाई की
शहीद मोहर सिंह शामली के जमींदार चौधरी घासीराम के यहां जन्मे थे. उनका नाम आजादी के आंदोलन में अग्रणी सेनानियों में रहा. उन्होंने आंदोलन की योजना मथुरा में गुरु विरजानंद के आश्रम में बनाई थी. चौधरी मोहर सिंह के साथ थानाभवन के काजी नियामत अली खां व महबूब अली खां ने मिलकर शामली तहसील और रेजिडेंसी में आग लगा दी थी. उनकी अगुवाई में नौजवान अलग-अलग टुकड़ियों में अंग्रेजों से मुकाबला कर रहे थे. करीब छह महीने तक तहसील पर क्रांतिकारियों का कब्जा रहा था. 

 

तीन दिन तक पेड़ पर लटकता रहा शव

फतेहपुर के जंगल में अंग्रेजों के साथ क्रांतिकारियों का संघर्ष हुआ था. शिलापट्ट पर दर्ज जानकारी के अनुसार यहां पर 225 पुरुष और 27 महिलाएं शहीद हुए थे. अंग्रेजों ने तोपें लगाकर शामली को चारों ओर से घेर लिया था. इस शिलापट्ट पर दर्ज है कि क्रांतिकारियों में दहशत फैलाने के लिए झिंझाना-करनाल रोड पर मोहर सिंह के शव को तीन दिन तक पेड़ पर लटकाकर रखा गया था. 


शहीद मोहर सिंह के वंशज रामकुमार कहते है कि ये पूरे देश व शामली के गौरव की बात है कि वे उस धरती के वासी है जिस पर अमर बलिदानी क्रांतिकारी मोहर सिंह ने जन्म लिया. उन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. आजादी के अमृत महोत्सव पर देश उन्हें याद कर रहा है, लेकिन हमें उनके आदर्शों पर चलते हुए देश के लिए काम करना है. 

 

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